Budget 2021: खुशखबरी! मिनिमम वेज कोड से सभी कैटेगरी के श्रमिकों को हर महीने मिल सकेगी तय रकम
- Budget 2021 for Laborers : गिग वर्कर्स, भवन और निर्माण श्रमिकों के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए तैयार किया जाएगा पोर्टल
- देश के करीब 50 करोड़ कामकारों को इससे मिलेगा लाभ

नई दिल्ली। कोरोना काल के दौरान लाॅकडाउन के चलते अर्थव्यवस्था चैपट हो गई थी। फैक्ट्रियों एवं कंपनियों के बंद होने से सबसे ज्यादा नुकसान प्रवासी एवं श्रमिकों को हुआ था। रोजाना कमाने खाने के चलते उन्हें रोजी-रोटी की दिक्कत हो गई। ऐसे में मिनिमम वेज कोड में सुधार की मांग काफी समय से की जा रही थी। आखिरकार वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतामरमण ने इसके विस्तार का फैसला किया। इसके तहत अब हर श्रेणी के मजदूरों को इससे लाभ होगा। इसके अलावा श्रमिकों के लिए एक खास पोर्टल भी लांच किया जाएगा। जिसके जरिए गिग वर्कर्स, भवन और निर्माण श्रमिकों के बारे में जानकारी एकत्र की जा सकेगी। इस स्कीम से देशभर के लगभग 50 करोड़ कामगारों को फायदा होगा। उन्हें एक तय समय पर निश्चित रकम मिल सकेगी।
प्रवासी एवं श्रमिकों के लिए लांच किए जाने वाले इस खास पोर्टल का मकसद असंगठित क्षेत्र के कामकारों को दूसरी सुविधाएं उपलब्ध कराना है। ऐसे श्रमिक जो अस्थायी रूप से कार्यरत हैं, इनमें गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर शामिल हैं। उन्हें भविष्य निधि, समूह बीमा और पेंशन जैसी सामाजिक सुरक्षा सुविधाओं का लाभ मिल सकेगा। इसमें उन्हें स्वास्थ्य और बीमा सुविधाएं भी प्रदान की जाएंगी। इस पोर्टल के जरिए श्रमिक एक क्लिक पर सारी जानकारी हासिल कर सकेंगे। मालूम हो कि मिनिमम वेज कोड बिल को 2019 में ही पास कर दिया गया था। कोरोना काल के दौरान इसमें कुछ संशोधन भी किए गए थे।
कौन होते हैं गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर
ऐसे कमर्चारी अस्थायी रूप से कार्य करते हैं। इनमें उबर, ओला, स्विगी और जोमोटो जैसे विभिन्न ई-कॉमर्स व्यवसायों से जुड़े कर्मचारी शामिल होते हैं। इन्हें काम के आधार पर भुगतान किया जाता है। इसलिए इन्हें बीमा या भविष्य निधि आदि से जुड़े लाभ नहीं मिलते हैं।
बिल के जरिए न्यूनतम मजदूरी तय
मजदूरी संहिता अधिनियम 2019 के जरिए दैनिक आधार पर न्यूनतम मजदूरी तय करने का फॉर्मूला बनाया गया था। इसमें पति, पत्नी और उनके दो बच्चों को एक श्रमिक परिवार का मानक माना गया था। इसमें प्रतिदिन एक सदस्य पर के खाने-पीने एवं अन्य जरूरतों को शामिल किया गया था। इसमें बच्चों की शिक्षा का खर्च, चिकित्सा पर होने वाला व्यय एवं आकस्मिक व्यय को भी जोड़ा गया था। इन सब के आधार पर न्यूनतम मजदूरी और वेतन की गणना का हिसाब तय किया गया था। ये हर राज्यों के अनुसर अलग-अलग हो सकते हैं।
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