
Govt dependent on rbi wma facility due to critical financial situation
नई दिल्ली। कभी आपने स्टूडेंट रहते हुए हॉस्टल लाइफ जी है? हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के पास महीने के आखिर में रुपए खत्म हो जाते हैं, ऐसे में उन्हें पॉकेट मनी आने तक उधार पर ही रहना पड़ता है। ऐसे ही कुछ हालत देश की सरकार के भी हो चले हैं। सरकार की माली हालत इतनी बिगड़ चुकी है कि रोज के खर्च भी राजकोषीय खजाने से पूरे नहीं हो पा रहे हैं। जिसकी वजह से सरकार को क्रेडिट पर जीना पड़ रहा है। जिसका दबाव आरबीआई को झेलना पड़ रहा है। ताज्जुब की बात तो ये है कि सरकार वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में आरबीआई से लिमिट से दोगुने से भी ज्यादा रुपया ले चुकी है। पढिय़े रिपोर्ट...
रुपयों की किल्लत, वेज एंड मीन्स का सहारा
केंद्र सरकार को देश चलाने के लिए रोजमर्रा के खर्च के लिए आरबीआई के सामने हाथ फैलाने पड़ रहे हैं। वास्तव में रुपयों की किल्लत होने पर सरकार वेज एंड मीन्स सुविधा का यूज करती है। जिसके तहत सरकार को लोन और एडवांस मिलता है। वेज एंड मीन्स की भी एक लिमिट होती है। खास बात ये है कि सरकार इस लिमिट को भी काफी आगे तक क्रॉस कर चुकी है। साथ ही और ज्यादा रुपयों की डिमांड कर रही है। जानकारों की मानें तो सरकार की रेवेन्यू से कमाई अपने उच्च स्तर पर होने के बावजूद वेज एंड मीन्स पर डिपेंड होना पड़ रहा है तो मतलब साफ है कि सरकार की माली हालत काफी बुरी है।
दोगुने से ज्यादा रुपए ले चुकी है सरकार
सरकार वेज एंड मीन्स की सुविधा के तहत लिमिट के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा रुपए आरबीआई से ले चुकी है। रिपोर्ट के अनुसार 31 जनवरी को खत्म हुए सप्ताह में सरकार ने वेज एंड मीन्स के तहत रिजर्व बैंक से 73545 करोड़ रुपए का लोन लिया है। जबकि सरकार और आरबीआई के बीच कांट्रैक्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2019-20 की दूसरी छमाही में सरकार किसी भी समय रिजर्व बैंक से वेज एंड मीन्स के तहत 35000 करोड़ रुपए तक ले सकती है। आपको बता दें कि वेज एंड मीन्स के दिए रुपयों पर आरबीआई सरकार से रेपो रेट के हिसाब से ब्याज लेती है। ओवरड्राफ्ट होने पर 2 फीसदी ज्यादा टैक्स देना पड़ता है।
Updated on:
13 Feb 2020 06:23 pm
Published on:
13 Feb 2020 06:21 pm
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