
घरेलू बचत 5 साल के निचले स्तर पर पहुंची, बेरोजगारी बढ़ी, आय की कमी
भारतीय परिवारों की बचत पांच साल के निचले स्तर पर आ गई। बढ़ती महंगाई ने आम लोगों की खरीद क्षमता को कुंद कर दिया है। इसके अलावा लॉकडाउन के कारण लोगों को अपनी बचत में सेंध लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा। महामारी के कारण आई बेरोजगारी और आय की कमी के कारण लोगों घर चलाने के लिए बचत का इस्तेमला ही अंतिम उपाय था। 2020-21 में 15.9 प्रतिशत की तुलना में, 2021-22 में परिवारों की सकल वित्तीय बचत 10.8 प्रतिशत रही। तीन वित्तीय वर्षों में यह 12 फीसदी थी। हालांकि शुरू में लॉकडाउन के दौरान लोगों ने स्वास्थ्य पर खर्च करने की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए अपने धन को बचाया। लेकिन एक बार प्रतिबंधों में ढील के बाद वे खर्च करने में लग गए। अर्थशास्त्रियों ने कहा, इससे उनकी बचत में कमी आई और एक ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई जब खर्च आय से अधिक हो गया। ऐसी स्थिति भी आई जब आय का साधन न होने के बावजूद खर्च बढ़ गया। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार घरेलू बचत के आंकड़े 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद के 2.5 प्रतिशत तक गिर गए, जबकि बीमा, भविष्य निधि और पेंशन फंड जैसे अन्य बचत राशियों का हिस्सा सकल वित्तीय बचत का 40 प्रतिशत तक चला गया। 2021-22 में शेयरों और डिबेंचर का हिस्सा भी 8.9 प्रतिशत के पांच साल के उच्च स्तर पर था, जबकि छोटी बचत की हिस्सेदारी 16 साल के उच्च स्तर 13.3 प्रतिशत पर पहुंच गई थी।
निवेश बढ़ाने के लिए बचत को प्रोत्साहित करना आवश्यक
बचत में गिरावट के पीछे महंगाई प्रमुख कारण रही है और निवेश बढ़ाने के लिए बचत को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।देश की बचत में भारतीय परिवारों की हिस्सेदारी करीब 60 फीसदी है, लेकिन इसमें धीरे-धीरे गिरावट आ रही है। कम घरेलू बचत उधारकर्ताओं को विदेशी बाजारों में उजागर करती है, भारत की बाहरी स्थिति को कमजोर करती है और बाहरी ऋण को बढ़ाती है। भारत की बचत दर 15 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई थी, क्योंकि वित्त वर्ष 20 में सकल घरेलू बचत जीडीपी का 30.9 प्रतिशत थी, जो वित्त वर्ष 2012 में 34.6 प्रतिशत के शिखर से नीचे थी। घरेलू बचत 2012 में जीडीपी के 23 प्रतिशत से गिरकर 2019 में 18 प्रतिशत हो गई।
Published on:
28 Nov 2022 11:32 am
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