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जब मनमोहन सिंह ने अपने को देश का ‘कर्जदार’ बताकर बने थे ‘असरदार सरदार’

1991 के बजट भाषण में मनमोहन सिंह ने अपनी जिंदगी के रखे कुछ अनछुए पहलु 1991 के मनमोहन सिंह के बजट को उदारीकरण का भी बजट कहा जाता है मनमोहन के उस बजट ने विदेश निवेश और आसान आयात के खोले थे रास्ते

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Manmohan Singh

When Manmohan Singh described himself as 'debtor' the country

नई दिल्ली। देश के सभी महान लोगों ने अपने आपको देश का कर्जदार बताया। फिर चाहे वो भगत सिंह हों, या फिर महात्मा गांधी, देश के महान वैज्ञानिक और देश के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद हों फिर दुनिया के महानतम अर्थशास्त्रियों में से एक और देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह। अब आप कहेंगे कि इस फेहरिस्त में मनमोहन सिंह का नाम क्यों? तो आपको बता दें कि यह हमने अपने आपसे नहीं लिखा। बल्कि उन्होंने खुद ऐसा कहा था कि वो देश के कर्जदार है जिसको वो कभी नहीं चुका पाएंगे। आखिर कब और किन संदर्भों में उन्होंने ऐसा कहा? आखिर यह ऐतिहासिक क्षण कौन सा था? आइए आपको भी बताते हैं...

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1991 का वो ऐतिहासिक बजट
बात करीब 30 साल पुरानी है, जब देश के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव थे। देश की आर्थिक स्थिति तो पूरी दुनिया इकोनॉमिक क्राइसिस से गुजर रही थी। लेकिन पूरी दुनिया के पास मनमोहन सिंह नहीं थे। वो थे सिर्फ भारत के पास वो भी वित्त मंत्री के रूप में। जानकारों की मानें तो उनके जैसा वित्त मंत्री देश में कभी हुआ और ना कभी हो सकता है। उन्होंने 1991 में कर दिखाया वो कोई नहीं कर सकता। खासकर उनके बजट भाषण ने भारत की हैसियत, तकदीर और वल्र्ड इकोनॉमी में जगह तीनों चीजें बदलकर रख दी। इस बजट को उदारीकरण के नाम से नाम से भी जाना जाता है। जिसने देश में आयात को आसान बनाया, विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया और देश की सरकारी कंपनियों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने का काम किया। सबसे अहम बात देश से लाइसेंस राज को खत्म कर दिया।

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बजट भाषण में जीवन के अनछुए पहलू
1991 के बजट भाषण को इसलिए भी ऐतिहासिक माना जाता है क्योंकि उन्होंने अपने बजट भाषण में कुछ ऐसा किया था, जैसा पहले कभी किसी ने नहीं किया। उन्होंने अपनी जिंदगी के कुछ अनछुए पहलुओं को अपने बजट भाषण में रखा। अपने जीवन की बेहद भावुक बातें कहीं, जिनसे उन्होंने काफी कुछ सीखा था। उस वक्त उन्होंने अपने बजट भाषण में कहा था कि वो हर साल सूखे का कहर झेलने वाले गांव के एक गरीब परिवार में पैदा हुए थे। वह गांव अब पाकिस्तान का हिस्सा है। यूनिवर्सिटी में मिलने वाले स्कॉलरशिप और अनुदान के कारण वो भारत में कॉलेज में पढ़ सके और उसके बाद इंग्लैंड जा पाए। इस देश ने मुझे बेहद अहम विभागों का कार्यभार सौंपकर उन्हें सम्मानित किया है। यह वह कर्ज है, जिसे वो कभी नहीं चुका सकते।