सद्भावना के रंग बिखेर रहा मुस्लिम एक ओर जहां दूषित मानसिकता के चलते कासगंज जैसे दंगे हो रहे हैं वहीं दूसरी ओर एक खुदा का नेक बंदा समाज में सद्भावना के रंग बांट बिखेर रहा है। प्राचीन होली की परंपरा को जीवित रखने के साथ ही गंगा-जमुनी सभ्यता को भी बनाए हुए हैं। तहसील क्षेत्र के गांव धीरपुरा निवासी मुन्ने खां उर्फ मुन्नालाल की गीतों की होली के बिना रंग भी बेरंग नजर आते हैं। हर वर्ष धीरपुरा में दौज के दिन होली का आयोजन किया जाता है। जिसमें शामिल होने के लिए करीब दो दर्जन आस-पास गांवों के लोगों शामिल होने आते हैं। होली के गीत, रसिया, ढोला और लावनी गाकर एक दूसरे को होली की बधाई देते हैं।
होली गुरू हैं मुन्ने खां वहीं होली गुरू बने मुन्ने खां सर्व समाज के लोगों को होली के गीत सिखाने का काम करते हैं। इनके द्वारा प्रसिद्ध रसिया ‘इस दिन अकेली क्यों ठाड़ी’ व गीत ‘पुत्र गणेश मनावें राखों मेरी लाज्यट के अलावा लावनी ‘बय दे रे चंदन बिरवा्यट से क्षेत्रवासियों में सद्भावना की अलख जगाते हैं।
द्वेष भावना को दूर करते हैं मुन्ने खां कहते हैं चुनाव के दौरान लोगों में फैली द्वेष भावना को होली के माध्यम से दूर किया जा सकता है। सभी को मिलकर त्योहार मनाने चाहिए। मिलकर त्योहार मनाने से त्योहार का आनंद भी दो गुना हो जाता है। मंदिर जाने से क रंग लगने के बाद न कोई हिन्दू होता है और न ही मुसलमान। वह मंगलवार को हनुमान मंदिर पर भजन करने जाते हैं। वह अन्य ग्रामीणों को भी अपना हुनर बांटते हैं।