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फिरोजाबाद

छोटे शहर के दीपक से सीखिए कैसे सपनों के शहर मुंबई में लहराया परचम, देखें वीडियो

मुंबई में संगीतकार के रूप में पहचान बना रहे दीपक अग्रवाल कहते हैं- बॉलीवुड में संघर्ष असीमित हैं।

फिरोजाबादSep 25, 2018 / 05:24 pm

suchita mishra

Deepak agrawal

Deepak agrawal

फ़िरोज़ाबाद। यदि आपको आभास होता है कि आप अपने सपने सच कर सकते हैं तो आप बिलकुल सही हैं। अपना सपना फ़िरोज़ाबाद के वाशिंदे दीपक अग्रवाल संगीत और गीत के जुनून के बल पर फ़िल्म के लिए विख्यात और चुनौतियों से भरे शहर मुम्बई में पूरा कर रहे हैं। जब उनकी यात्रा के बारे में पूछा गया तो दीपक जवाब देते हैं कि बॉलीवुड में संघर्ष असीमित हैं,लेकिन माता पिता के आशीर्वाद और अग्रजों के स्नेह की ताकत से संघर्षरत हूं। “यात्रा अभी शुरू हुई है और लोगों को मुझसे बहुत अपेक्षाएं हैं। बड़ा आसमान है।’
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ऐसे शुरु हुआ गीत लेखन का बीजारोपण

फ़िरोज़ाबाद में एक मध्यम परिवार में 4 नवंबर1989 में जन्मे उत्साही युवक दीपक ने कहा कि दुकान चलाने वाले उनके पिता अशोक अग्रवाल को मुशायरा और कवि सम्मेलनों को सुनने का शौक था। इस कारण क्लास आठवीं में पढ़ने के दौरान ही गीत लिखने लगा था। पापा के संग वे भी मुशायरा सुनने जाते थे।
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सपनों में पंख लगाने को 2009 में मुंबई आए

दृढ़ निश्चयी दीपक अपने सपनों को पंख लगाने के लिए मुंबई महानगर के लिए फ़िरोज़ाबाद से वर्ष 2009 में निकल पड़े। सीखने की ललक ने पीछे मुड़ कर देखने का वक्त ही नहीं दिया। कठिन और प्रतिकूल स्थितियों के बावजूद आंखों में बड़ा लक्ष्य है। दीपक ने फ़िरोज़ाबाद में ही शास्त्रीय और लोक संगीत की शिक्षा ली। संगीत और गीत लेखन के जुनून को आगे बढ़ाने के लिए 12 वीं तक ही शिक्षा पाई है।
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jeena isi ka naam hai
‘जिंदगी फिफ्टी-फिफ्टी’ में गीत से मिला ब्रेक

2013 के शुरुआत में दीपक ने ज़िन्दगी 50-50 फिल्म का टाइटल सांग लिखा। इस गीत को संगीत दिया विवेक कर ने और बप्पी लाहिरी ने अपने सुरों से सजाया। विवेक कर के संगीत निर्देशन में दीपक का यह पहला गीत था। दीपक ने एक दशक से कम समय में 9 फिल्मों के लिए गीत लिखे हैं। दिल का शुकुन शीर्षक से 2013 में गीतों का अलबम भी रिलीज़ हुआ है।
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ऐसे सजे संगीत के सुर
निर्देशक कुणाल सिंह अपनी फिल्म “खेल तो अब शुरू होगा” के लिए एक नए संगीतकार की तलाश कर रहे थे,तभी एक दिन उनकी मुलाकात दीपक से हुई। उन्होंने दीपक से शीर्षक गीत की रचना करने की पेशकश की और इस तरह दीपक ने एक संगीतकार के रूप में भी अपनी पहचान बनानी शुरू की। यह फिल्म 2016 में रिलीज़ हुई।
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इन फिल्मों के लिए लिखे गीत

“एक कहानी जूली की” (2016), “जीना इसी का नाम है” (2017), “रक्तधार” (2017), जैसी फिल्मों में उन्होंने एक संगीतकार के रूप में काम किया। “ऊप्स अ देसी” (2013), “हम बड़े आशिक मिज़ाज” (2016), “खेल तो अब शुरू होगा”(2016) में दीपक ने गीत लिखे “जीना इसी का नाम है” का शीर्षक गाना काफी लोकप्रिय रहा और एक संवेदनशील संगीतकार के रूप में दीपक ने बॉलीवुड में अपनी पहचान बनायी। इस प्रेरणादायक रचना को लोगों ने खूब सराहा। 2018 में बनी फिल्म “तिश्नगी” का एक खूबसूरत सूफी गीत “सूफी सलाम” को दीपक ने अपने शब्दों से सजाया। इस गीत को मशहूर फनकार राहत फ़तेह अली खान साहब ने अपनी आवाज़ दी। इसी साल प्रदर्शित हुई फिल्म “जाने क्यों दे यारों” में एक गीत “बारी बारी” की रचना भी दीपक ने की।
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संगीत निर्देशक

दीपक अग्रवाल ने आने वाले समय में अपने फिल्मी करियर के लिए कुछ योजनाएं बनाई हैं। उन योजनाओं पर दीपक पूरी तरह से जुट चुके हैं। लव इन अ टैक्सी (2018),सीक्रेट ऑफ़ सेल्फी (2018) डार्क लाइफ (2019),सहित कुछ अन्य फिल्में बतौर संगीत निर्देशक उनकी झोली में आई हैं।

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