
प्रतीकात्मक तस्वीर
CG News: गरियाबंद जिले में सरकारी योजनाओं में भारी लूटमार है। यहां के जिम्मेदार शादी जैसे पवित्र बंधन में भी घपले-घोटालों को अंजाम देने से नहीं चूक रहे। 2020 से 2022 के बीच आदिम जाति विकास विभाग ने 15 ऐसे जोड़ों की शादी करवा दी, जो पहले से बाल-बच्चे वाले थे। कई के बच्चे तो ग्यारहवीं-बारहवीं पढ़ रहे थे। ये सब सिर्फ इसलिए क्योंकि अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देने के लिए सरकार हर जोड़े को 2.50 लाख रुपए देती है। बस इन्हीं पैसों पर हाथ साफ करने के लिए बंटी-बबली जोड़ों की दोबारा शादी कर 37.50 लाख अंदर कर लिए गए।
सबकुछ जिले में बैठे अफसरों की नाक के नीचे चलता रहा। शिकायत मिली, तब प्रशासन ने जांच बिठाई। घोटाला सिद्ध भी हुआ। कलेक्टर दीपक कुमार अग्रवाल ने इस केस में सालभर पहले ही राजिम थाने को एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे। हैरतअंगेज तौर पर आज तक एक भी शख्स के खिलाफ न एफआईआर दर्ज हुई। बताते हैं कि सभी बंटी-बबली जोड़ों ने पूरे पैसे लौटा दिए, इसलिए कार्रवाई नहीं हुई।
यहीं फंसता है सबसे बड़ा पेंच। केस में पैसों की रिकवरी से ज्यादा उन अफसर-कर्मचारियों पर कार्रवाई जरूरी है, जिनकी शह पर पूरे भ्रष्टाचार को अंजाम दिया गया। ये वो गंदी मछलियां हैं, जो पूरे सिस्टम को गंदा करती हैं। समझिए, जिले के प्रशासनिक मुखिया का लिखित आदेश जारी होने के एक साल बाद भी सिद्ध घोटाले में कार्रवाई नहीं हो पाई है।
पुलिस की अपनी मजबूरी है। वो तब तक कार्रवाई नहीं कर सकती, जब तक विभागीय जांच में अफसर-कर्मचारी दोषी सिद्ध नहीं हो जाते। अब सबकुछ आदिम जाति विकास विभाग के कंधों पर है। इसी विभाग के अफसर-कर्मचारियों ने भ्रष्टाचार किया है। बाकी सरकारी शब्द तो है ही… ‘प्रक्रिया’
पूरे मामले में आदिम जाति विकास विभाग के अफसरों से बात की गई, तो उनका कहना है कि मामले में पूर्व मंत्री ताम्रध्वज साहू की भी भूमिका है। इन आवेदनों की उन्हीं ने अनुमोदना की थी। क्या सभी 15 आवेदनों की अनुमोदना पूर्व मंत्री ने की थी? इसका जवाब नहीं मिल पाया है। अगर हां, तब उनकी भी भूमिका संदिग्ध मानी जानी चाहिए। हालांकि, यह विभाग की अपनी गलती छिपाने की स्ट्रैटजी है।
समझिए, मंत्री पूरे राज्य के होते हैं। हजारों आवेदनों की अनुमोदना करते हैं। हर व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से जानना संभव नहीं है। इस घोटाले में सीधे तौर पर हर वो अफसर-कर्मचारी जिम्मेदार है, जिन्होंने जोड़ों के सत्यापन से लेकर इनकी शादी कराने तक का काम किया है। जोड़ों के वैरिफिकेशन के लिए ग्राउंड पर यही लोग थे।
घपले वाली इन शादियों ने आर्य समाज की 150 साल पुरानी विवाह परंपरा की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। दरअसल, दोबारा अंतरजातीय विवाह करने वाले 15 जोड़ों की शादी 15 से 20 साल पहले हो चुकी थी। सरकारी योजना का लाभ उठाने के लिए 2019-20 में राजिम के आर्य समाज मंदिर से दोबारा इनके विवाह सर्टिफिकेट तैयार करवाए गए।
ऐसे में सवाल ये कि आर्य समाज में क्या ऐसी किसी की शादी हो जाती है? किसी को भी सर्टिफिकेट जारी कर दिया जाता है? अगर हां, तो इसका कहां, कैसे और कितना गलत इस्तेमाल किया जा रहा होगा, इसकी कल्पना भी मुश्किल है। ऐसे में प्रशासन को घोटाले के साथ आर्य समाज मंदिर में होने वाली शादियों को भी गंभीरता से लेते हुए इसकी वृहद जांच कराने की जरूरत थी। अफसोस है कि इतनी गंभीर गड़बड़ी पर भी अब तक एक ढेले का काम नहीं हुआ है।
Published on:
11 Apr 2025 02:30 pm
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