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खुले आसमान के नीचे ऐसे बन रहा 1752 बच्चों का भविष्य, ये है पूरा मामला

गाजियाबाद में 40 लोग मिलकर 1752 बच्चों को खुले आसमान के नीचे भविष्य बना रहे हैं।

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1752 student get education Under the open sky

गाजियाबाद। वैभव शर्मा। सरकार शिक्षा के अभाव को खत्म करने के लिए अपने स्तर पर प्रदेश के अलग-अलग जनपदों में प्राइमरी स्कूलों के जरिए कोशिश कर रही है। लेकिन, गाजियाबाद में कुछ ऐसे खास स्कूल भी हैं, जहां खुले आसमान के नीचे क्लास लगाकर स्लम एरिया के बच्चों को बेसिक शिक्षा देकर जिंदगी को संवारने का काम किया जा रहा है। यहां के टीचर स्कूल की तरह कोई प्रोफेशनल टीचर नहीं, बल्कि रेलवे इंजीनियर और बैंक के मैनेजर हैं।

निर्भेद फाउंडेशन के इस अभियान के तहत विजयनगर और ट्रांस हिंडन में चार जगहों पर खुली छत के नीचे 1752 बच्चों का भविष्य संवार जा रहा है। ये स्लम एरिया में पहले जाकर बच्चों का सर्वे करते हैं, जिनका किसी कारणवश स्कूल जाना नहीं हो पाया। इसके बाद वहां पर स्कूल की शुरुआत करते हैं। सभी लोग वर्किग होने की वजह से शिफ्ट के हिसाब से बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं।

रेलवे इंजीनियर और यूनियन बैंक मैनेजर ने की शुरुआत

सुशील कुमार मीणा ने बताया कि वो रेलवे में सीनियर सेक्शन इंजीनियर हैं और उनकी दोस्त तरुणा विधेय यूनियन बैंक में मैनेजर हैं। स्लम एरिया के बच्चों को देखकर उनकी जिंदगी के स्तर को अच्छा करने के लिए उन्होंने निर्भेद फाउंडेशन की शुरुआत की। शुरुआत में दोनों ने खुद इंदिरापुरम में झुग्गी-झोपड़ियों में रहनेवाले बच्चों को पढाना शुरू किया। इसके बाद धीरे-धीरे नौकरीपेशा और अन्य वर्ग के लोग जुड़ते चले गए। बच्चों की पढाई के लिए तरुणा ने दो साल की स्टडी लीव ली हुई है। वो खुद अब तक आनंद विहार स्टेशन के कई प्लेटफार्म, अर्थला और हिंडन अंडरपास के काम को अपनी निगरानी में पूरा करा चुके हैं।

40 लोग पढा रहे 1752 बच्चों को

निर्भेद फाउंडेशन के फांउडर सुशील के मुताबिक, उनके साथ में रेलवे में ही सेक्शन इंजीनियर वरुण मलित, रामप्रसाद, केनरा बैंक मालीवाड़ा की अस्टिटेंट मैनेजर शीलू सिंह, बालाजीस कंस्ट्रक्शन के मालिक नीरज गर्ग समेत 40 लोग प्रताप विहार, इंदिरापुरम, वैशाली और वसुंधरा में चार जगह खुले आसमान के नीचे 1752 बच्चों को पढाते हैं। इसके अलावा इनके रोजाना खाने-पीने और पढाई का सामान भी संस्था के ये लोग ही मिलकर अरेंज करते हैं। संस्था का दावा है कि वो किसी से बच्चों की पढाई के लिए कैश नहीं लेती। जिसे मदद करनी होती है, वो संसाधन मुहैया करा देते है।