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व्यवस्थाओं की खरल में घुट रही अनदेखी की दवा

सवाईमाधोपुर. भारत में विकसित हुई आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को अपना वजूद बचाए रखने में खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। आलम यह है कि औषधालयों में मरीजों के लिए पर्याप्त दवा तक उपलब्ध नहीं है।सरकारी रासायनशाला से मांग अनुरूप दवाओं की आपूर्ति नहीं होने से चिकित्सक भी बेबस हैं।

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सवाईमाधोपुर. भारत में विकसित हुई आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को अपना वजूद बचाए रखने में खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। आलम यह है कि औषधालयों में मरीजों के लिए पर्याप्त दवा तक उपलब्ध नहीं है। सरकारी रासायनशाला से मांग अनुरूप दवाओं की आपूर्ति नहीं होने से चिकित्सक भी बेबस हैं। सबसे बड़ा घाटा बीमारियां झेल रहे लोगों को हो रहा है।

आयुर्वेद निदेशालय अजमेर के अधीन जिले भर में 84 आयुर्वेद औषधालय संचालित हैं। वहीं जिला मुख्यालय, गंगापुर सिटी व शिवाड़ में अ-श्रेणी के आयुर्वेद चिकित्सालय हैं। इनको सरकार की रसायनशाला से छह माह में महज 30 हजार रुपए की दवाएं उपलब्ध हुई हैं। संभाग मुख्यालय भरतपुर स्थित राजकीय आयुर्वेदिक रसायनशाला से दवाओं की आपूर्ति की जाती है। वर्ष में दो बार जुलाई व फरवरी माह में मिलने वाली दवाओं की खेप से ही पूरे साल रोगियों का उपचार किया जाता है।

ऊपर से तय होती दवाएं

दवाओं की आपूर्ति से पूर्व जरूरत की दवाओं का मांग-पत्र लिया जाता है, लेकिन आपूर्ति के लिए औषधियों की सूची रसायनशाला स्तर पर तय होती है। सभी औषधालयों को समान बजट की जैसी दवाओं की आपूर्ति की जाती है। ऐसे में मरीज आने पर नुस्खा अधूरा रह जाता है।

चूर्ण की मात्रा चखने लायक

अगस्त माह में औषधालयों में हुई आपूर्ति में चूर्ण की मात्रा चखने के मानिद ही है। यदि नुस्खा तैयार करें तो चूर्ण 20 रोगियों के हिस्से में ही आता है। विभागीय सूत्रों के अनुसार रसायनशाला से आधा किलो से एक किलो की मात्रा में चूर्ण मिला है।

30 हजार रुपए की दवाओं की आपूर्ति हुई है। गत आपूर्ति की तुलना में बजट दोगुना हुआ है। इससे औषधालयों में उपचार की स्थिति सुधरेगी।

गिर्राज तिवाड़ी, जिला आयुर्वेद अधिकारी, सवाईमाधोपुर।


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