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जो काम विदेशों में भी नहीं हुआ, वह यूपी के इस शहर ने कर दिखाया

रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर के केस को विदेशी अस्पतालों द्वारा डील न करने पर गाजियाबाद के अस्पताल ने कर दिखाया।

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yogi

गाजियाबाद। मेडिकल के क्षेत्र में भारत दूसरे देशों को कड़ी टक्कर दे रहा है। यह बात एक फिर साबित हो गई है। रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर के केस को विदेशों के अस्पतालों की तरफ से डील न करने के बाद में गाजियाबाद के यशोदा अस्पताल ने अंसभव कारनामे को भी संभव कर दिखाया है। दरअसल, एक मरीज की रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर होने के बाद वह चल फिर नहीं सकता था और मौत की कगार पर पहुंच गया था। पीड़ित की स्थिति को देखते हुए विदेशों के डॉक्टरों ने इलाज से इंकार कर दिया। इसके बाद यशोदा अस्पताल के डॉक्टरों ने मरीज को नई जिदंगी दी।

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सात घंटे तक चला ऑपरेशन

यशोदा अस्पताल के न्यूरो सर्जन डॉ. प्रांकुल सिंघल और रिसर्च सेंटर की टीम ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इसकी जानकारी दी। न्यूरो सर्जन डॉ प्रांकुल सिंघल ने बताया कि उन्होनें रीढ़ की हड्डी की बड़ी गांठ (ट्यूमर) का बेहद पेचीदा ऑपरेशन सफलतापूर्वक किया है। 40 वर्षीय मरीज का यह ऑपरेशन 7 घन्टे से भी ज्यादा चला। यह मरीज जन्म से ही रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर की बीमारी से ग्रस्त था और बचपन से ही परेशानी में था।

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दो ऑपरेशन होने के बाद अस्पतालों ने इंकार

डॉक्टरों के मुताबिक 20 वर्ष की आयु में मरीज का एक ऑपरेशन हुआ था। इसके बाद 24 साल की आयु में उसका दूसरा ऑपरेशन हुआ। केस क्रिटिकल होने पर वह अपने पैरों से चल -फिर नही सकता था और कमर में काफी दर्द था। उसको मल एवं मूत्र त्यागने में भी भारी कठिनाई रहती थी। ट्यूमर की वजह उसके शरीर में सेंसेशन खत्म हो गया था। दिल्ली के बड़े सरकारी एवं निजी अस्पतालों में परामर्श करने के बाद भी उन्होने इंकार कर दिया।

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आपस में चिपके हुए थे नसें और ट्यूमर

डॉ प्रांकुल सिंघल ने बताया कि एनेस्थेटिस्ट डॉ एम एस जुनेजा, डॉ अभिमन्यू जौहरी, ओटी अस्टिटेन्ट विक्रम सुरेश ने उनका साथ दिया। ऑपरेशन को न्युरोमाइक्रोस्कोप की मदद से किया गया। पहले के दो ऑपरेशनों की वजह से नसें एवं टृयूमर आपस में चिपके हुए थे। ऑपरेशन के दो मुख्य लक्ष्य थे पहला ट्यूमर को पूरी तरह से निकलना और दूसरा नसों के गुच्छें को कोई हानि न पहुँचना।

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अब छह महीनों में पैरों पर चलेगा मरीज

डॉ सिंघल के मुताबिक मरीज अब सामान्य रूप से मल, मुत्र त्याग कर रहा है और कमर में दर्द भी खत्म हो गया है। अस्पताल से स्वस्थ होकर छुट्टी के बाद अब वॉकर के सहारे वह चल -फिर भी रहा है। मरीज की फिजियोंथेरैपी भी चल रही है और उम्मीद है छः महीने के अन्दर ही मरीज अपने पाँवों पर खुद ही चलने लगेगा।


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