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कैराना और नूरपुर उपचुनाव में कांग्रेस की इस चाल ने विपक्ष को बनाया अटूट चट्टान, बुरी तरह फंसी भाजपा

कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाली भाजपा को हराना कांग्रेस की पहली प्राथमिकता

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मेरठ. फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को मिली हार के बाद यूपी के कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा उपचुनाव को लेकर यहां विपक्ष की जो एकजुटता दिखी है। उसके पीछे कांग्रेस की बड़ी चाल है। दरअसल, कांग्रेस अब उपचुनाव में खुद चुनाव लड़ने के बजाए कांग्रेसमुक्त भारत का नारा देने वाली भाजपा को मजबूत विपक्षी उम्मीदवार देकर हराने पर आमादा है। यही वजह है कि कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने अभी तक किसी उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है। माना जा रहा है कि कांग्रेस इस उपचुनाव में अपना उम्मीदवार उतारने के बजाए भाजपा को हराने के लिए विपक्षी उम्मीदवार का समर्थन करेगी। कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों भी का यही मानना है कि सपा और रालोद का गठबंधन कांग्रेस के इशारे पर ही हुआ है। इस उपचुनाव में कांग्रेस की खोमोशी पर जब पत्रिका संवाददाता ने प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष इमरान मसूद से बात की तो उन्होंने भी साफ कर दिया कि हमारे लिए मुद्दा प्रत्याशी उतारने का नहीं है। मुद्दा भाजपा को हराने का है। जो भाजपा को हराएगा, हम उसके साथ खडे़ हैं। हालांकि, इस पर अंतिम फैसला हाईकमान 10 मई को लेगा। इससे पहले कांग्रेसी नेता और आईपीएल के चेयरमैन राजीव शुक्ला ने भी अपने सहारनपुर दौरे के दौरान राजनैतिक बयान दिया था कि कांग्रेस विपक्ष को एकजुट करने में लगी है। कैराना में प्रत्याशी उतारने के मुद्दे पर उनका कहना था कि कांग्रेस 10 मई के बाद अपने प्रत्याशी की घोषणा करेगी।

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इसलिए कांग्रे नहीं लड़ना चाहती है चुनाव
दरअसल, राजनीतिक हलकों में ये चर्चा है कि अब कांग्रेस अलग से लड़ती भी है तो इससे भाजपा विरोधी मतों को बांटने का आरोप लगेगा। ऐसी परिस्थिति में 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में प्रदेश के क्षेत्रीय दलों का गठबंधन भी कांग्रेस को अपने से अलग कर सकता है। परेशानी यह भी है अगर कांग्रेस यहां पर अकेले चुनाव लड़ती है तो उसकी हालत गोरखपुर और फूलपुर की तरह हो जाएगी। जहां उसके उम्मीदवार कुछ हजार वोट ही पा सके थे। अलग से लड़कर और किसी मुस्लिम को उम्मीदवार बनाकर वह महागठबंधन को ही नुकसान पहुंचाएगी, जिसका सीधा फायदा भाजपा को होगा। इसी लिए फिलहाल कांग्रेस इस चुनाव से अपना प्रत्याशी उतारने से परहेज कर रही है।

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औपचारिक तौर पर अनुरोध का इंतजार
अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए अब कांग्रेस चाहती है कि महागठबंधन उसे औपचारिक तौर पर ही कह दे कि अपना उम्मीदवार न खड़ा करें। वह इस पर भी सहमत हो जाएगी। इस तरह से वह 2019 के लोकसभा चुनावों में सपा और बसपा के गठबंधन में शामिल होने की संभावना भी बनाए रख सकती हैं। अगर ऐसा होता है तो इस उप चुनाव के साथ ही 2019 के लिए भी यूपी में महागठबंधन का रास्ता साफ हो जाएगा। यही वजह है कि कांग्रेस के इस चाल में भाजपा घिरती नजर आ रही है। अगर कांग्रेस ने भी सपा और रालोद के उम्मीदवार के समर्थन का ऐलान कर दिया तो भाजपा के लिए इन दो सीटों को भी बचाना मुश्कल हो जाएगा।

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ये हैं भाजपा और सपा-रालोद गठबंधन के उम्मीदवार

भाजपा ने सहानुभूति की लहर का फायदा उठाने के लिए दोनों ही सीटों पर दिवंगत नेताओं के परिवार की महिला प्रत्याशियों पर भरोसा जताया है। भाजपा सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद खाली हुई कैराना लोकसभा सीट से भाजपा ने उनकी बेटी मृगांका सिंह को टिकट दिया है। वहीं, नूरपुर विधानसभा सीट के विधायक लोकेंद्र सिंह की सड़क दुर्घटना में मौत के बाद खाली हुई सीट पर उनकी पत्नी अवनी सिंह को प्रत्याशी बनाया गया है। गौरतलब है कि कैराना से रालोद की प्रत्याशी तबस्सुम हसन और नूरपुर से सपा के उम्मीदवार नईमुल हसन दावा ठोक रहे हैं।

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