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महाभारतकालीन माता का मंदिर, जिसे मुलगकाल में ध्वस्त कर दिया गया था, फिर सालों बाद पुजारी को आया सपना

Highlights माता का मंदिर जिसके कुंड में स्नान से दूर होता है चर्म रोग करीब साढ़े पांच हजार साल पुराना मंदिर है कमल पर सवार मां काली और भगवान शिव की होती है पूजा

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गाजियाबाद। नवरात्र ( Navratri ) में मां दुर्गा की पूजा अर्चना करना बेहद शुभ माना जाता है और नवरात्र में माता रानी ( Mata Rani ) की पूजा करने के लिए मंदिरों में भक्तों की भड़ लग रही है। इसी के तहत हम आपको पश्चिमी यूपी ( West UP ) के कुछ प्रसिद्ध और ऐतिहासित मंदिरों के बारे में जानकारी ले कर आएं हैं इस बार हम आपको एक ऐसे सिद्ध पीठ मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो कि करीब साढे पांच हज़ार वर्ष पुराना मंदिर है। जहां पर नवरात्र के समय में सप्तमी ( Saptami ) ,अष्टमी ( Ashtami ) ,नवमी ( Navami ) और दशहरे को भव्य मेला लगता है। आसपास के लाखों की संख्या में लोग मेले में पहुंचते हैं और मां भगवती के दर्शन कर यहां पूजा अर्चना करते हैं।

साढ़े पांच हजार साल पुराना है महाकाली का मंदिर

यह मंदिर दिल्ली से सटे गाजियाबाद डासना इलाके में स्थित है। पुरातत्व विभाग के अनुसार यह मंदिर साढ़े पांच हजार साल पुराना सिद्ध पीठ कमल पर विराजमान मां महाकाली का मंदिर है। यह मंदिर महाभारत काल से ही यहां स्थापित है। यहीं पर एक शिवजी का भी मंदिर है जिसे बताया जाता है कि भगवान परशुराम के द्वारा ही इसे स्थापित किया गया था। लेकिन बाद में जब मुगलों का शासन आया तो यह मंदिर ध्वस्त कर दिया गया था। लेकिन उस वक्त मौजूद पुजारी द्वारा स्थापित माता और भोलेनाथ के शिवलिंग को यहां पर बने गहरे तालाब में ही छुपा दिया गया।

पुजारी को आया था स्वप्न

कुछ समय बाद मंदिर के आसपास रह रहे एक पुजारी को स्वप्न आया कि मां महाकाली की मूर्ति और एक शिवलिंग तालाब में छुपाई गई है। उन्हें यहां से निकालकर बाकायदा पहले की तरह इस मंदिर में ही स्थापित किया जाए, क्योंकि यह देवी इस इलाके के रहने वाले लोगों की कुलदेवी हैं। यह सपना पुजारी द्वारा आसपास के गांव के लोगों को सुनाया गया। जिसके बाद आसपास के गांव के लोगों के द्वारा तालाब में खुदाई की गई तो पुजारी के बताए अनुसार मां काली जो कि कमल पर विराजमान थी और एक भव्य शिवलिंग दिखाई दी। जिन्हें लोगों के द्वारा तालाब से निकालकर दोबारा से यहां स्थापित किए गए। तभी से यहां के आसपास के गांव के लोग इस देवी को अपनी कुलदेवी मानते हैं।

मंदिर में 108 किलो के पारद शिवलिंग स्थापित है

मान्यता है कि यहां पर आकर कोई भी भक्त पूरी श्रद्धा भाव से मां दुर्गा या मां महाकाली की विधि विधान से पूजा करता है तो मां भगवती उस भक्तों पर अपनी असीम कृपा बरसाती है। खासतौर से नवरात्र में इस मंदिर में मां भगवती की आराधना करने का बड़ा महत्व बताया गया है ।

इसी मंदिर के परिसर में एक 108 किलो के पारद शिवलिंग है, जिन्हें उसी समय स्थापित किया गया था। इसलिए इस शिवलिंग की पूजा का भी विशेष महत्व है। यहां स्थापित यह पारद शिवलिंग की पूजा किए जाने के बाद भोलेनाथ अपने सभी भक्तों की सभी मनोकामना पूरी करते हैं।

तालाब में स्नान करने से दूर होता है चर्म रोग

यति नरसिंहानंद स्वामी ने बताया कि मंदिर परिसर में ही एक बड़ा तालाब है। जिस तालाब में भोलेनाथ के शिवलिंग और मां काली की प्रतिमा को छुपाया गया था। उस तालाब का भी प्राचीन काल से बड़ा महत्व है। यानी तालाब में यदि कोई भी भक्त चर्म रोग से पीड़ित हो तो वह इस तालाब में आकर स्नान करता है। और इस तालाब की मिट्टी अपने शरीर पर लगाता है तो निश्चित तौर पर उसे चर्म रोग से भी छुटकारा मिल जाता है। ऐसी मान्यता प्राचीन काल से बताते हैं।

यज्ञशाला में 24 घंटे चलता है यज्ञ

मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद स्वामी बताते हैं कि मंदिर प्राचीन काल से ही स्थापित है और करीब साढे 5000 वर्ष पुराना यह मंदिर है। मां भगवती के मंदिर के ठीक सामनेर एक यज्ञशाला है। जहां पर 12 महीने 365 दिन और 24 घंटे हवन कुंड जलती है। यहां पर आने वाले भक्तों भी यज्ञ में आहुति देकर धर्म लाभ उठाते हैं। पुजारी बताते हैं कि भले ही यहां के लोग कहीं दूसरी जगह जाकर बस गए हो लेकिन नवरात्र के समय यानी सप्तमी, अष्टमी, नवमी और दशमी को आकर सभी लोग मां भगवती के दर्शन कर आराधना करते हैं।

दूर-दूर से भी पहुंचते हैं लोग

इसके अलावा पास के ही एक गांव भूड़ घड़ी के रहने वाले सुबोध कुमार गोला ने बताया कि उनका गांव इस मंदिर परिसर से ही लगा हुआ है सभी लोग नवरात्र के समय में इस मंदिर में आकर मां भगवती की आराधना करते हैं। वह खुद भी अब गांव छोड़कर गाजियाबाद चले गए हैं। लेकिन उसके बावजूद भी वह अभी भी नवरात्र के समय में रोजाना आते हैं ।