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मनोज सिन्हा बनाम अफजाल अंसारी, ग्राउंड रिपोर्ट में जानिये क्या है गाजीपुर का मूड

गाजीपुर में विकास की बात के साथ यहां हावी है जातिगत राजनीतिबसपा विधायक मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी से कांटे के मुकाबले में फंसे केंद्रीय राज्य मंत्री मनोज सिन्हा।

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Manoj Sinha vs Afzal ansari

अफजाल अंसारी मनोज सिन्हा

गाजीपुर से अभिषेक श्रीवास्तव
गाजीपुर जिला मुख्यालय से लगभग ३० किलोमीट दूर देवा और दुल्लहपुर शंकरसिंह गांव। जखनिया विधानसभा के इन गांवों का जिक्र इसलिए कि केंद्रीय राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने सांसद आदर्श ग्राम के तहत सबसे पहले इन्हीं को गोद लिया था। तस्वीर कुछ बदली हुई है, लेकिन पूरी तरह नहीं। आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी है। कोई कहता है सजातीय क्षेत्र में तो काम करा दिया गया, लेकिन दूसरी जातियों की उपेक्षा की गई। फिर भी लोग दबी जुबान ही सही मनोज सिन्हा को नंबर देने से नहीं हिचकिचाते। लेकिन जब वोट देने की बात आती है तो यही तबका जातियों के बंधन में बंधा नजर आता है। मतदाताओं का मूड देखकर साफ लगता है कि २०१४ में भाजपा ने भले ही 32452 मतों से यह सीट जीत ली थी, लेकिन इसबार उसे लोहे के चने चबाने पड़ रहे हैं। कारण साफ है महागठबंधन के तहत यह सीट बसपा को दी गई है और प्रत्याशी के तौर पर बाहुबली मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी मैदान में हैं। मुख्तार परिवार का गाजीपुर में अपना जनाधार है और पिछले चुनाव में उनके परिवार से यहां कोई मैदान में नहीं था। ऐसे में केंद्रीय राज्य मंत्री को विकास कार्य कराने के बावजूद सीट बचाने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है। उधर, सपा का वोटबैंक भी बसपा के साथ जुड़ रहा है, जो राजनीतिक पंडितों को परेशानी में डाल रहा है और वे यह तय नहीं कर पा रहे कि ऊंट किस करवट बैठेगा।

दरअसल, ठेठ पूर्वांचल और भोजपुरी पट्टी की सबसे हॉट सीट में से एक गाजीपुर कांटे के मुकाबले में फंसी नजर आ रही है। मोदी का चेहरा भाजपा के लिए कुछ प्लस कर रहा है, लेकिन सपा-बसपा गठजोड़ का पिछला अंतर इतना है कि उसे पाटना आसान नहीं। कांग्रेस ने अपने सहयोगी पार्टी जनअधिकारी पार्टी के प्रत्याशी अजीत प्रताप कुशवाहा को मैदान में अपने सिंबल पर उतारा है।

भाजपा ने दिया नारा, प्रगतिशील गाजीपुर या ज्वलनशील गाजीपुर

अगर यहां विकास कार्यों की बात करें तो मनोज सिन्हा ने रेल राज्य मंत्री रहते हुए कई ट्रेनों का संचालन कराया।गाजीपुर रेलवे स्टेशन समेत जिले में आने वाले कई छोटे-बड़े स्टेशनों का विकास कार्य कराया। साथ ही यहां रेलवे का ट्रेनिंग सेंटर भी गाजीपुर शहर में स्थापित कराया। पीपीपी मोड में हर प्रमुख चौराहे अथवा ग्रामसभा में आधुनिक शौचालयों का निर्माण कराया। केंद्र सरकार से फोरलेन का कार्य शुरू करवाया। ऐसे में भाजपा ने चुनाव को लेकर यहां नया नारा दे दिया है जनता को प्रगतिशील गाजीपुर चाहिए अथवा ज्वलनशील गाजीपुर। दरअसल, भाजपा इस नारे से मुख्तार परिवार पर सीधा निशाना साध रही है। उनके आपराधिक पृष्ठभूमि को मुद्दा बनाया गया है, साथ ही चुनाव को मोल्ड करने के लिए ध्रुवीकरण का सहारा लिया जा रहा है, ताकि कास्ट फैक्टर को तोड़ा जा सके।

तब आया था गाजीपुर चर्चा में, पूरा संसद रोया था
बात 1962 की है। गाजीपुर सीट से कांग्रेस नेता विश्वनाथ गहमरी चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। गहमरी अपने साथ गाय के गोबर से गेहूं छानकर संसद ले गए और इस क्षेत्र की बदहाल स्थिति को बयां किया। यह ऐसा मौका था जब पूरा संसद रोया था। पहली बार देश ने जाना था कि गाजीपुर कितना बदहाल है।


गोबर से गेहूं छानकर संसद में ले गए और वहां दिखाया कि गाजीपुर की गरीबी ओर पिछड़ेपन का क्या हाल है तो पूरी संसद रोयी थी। पहली बार देश ने जाना था कि गाजीपुर में कितनी बदहाली है। हालांकि तब से लेकर अबतक में काफी बदलाव आया है। फिर भी यहां उस स्तर का विकास नहीं हुआ जो जिले की क्षमता के अनुरूप हो सकता था। गाजीपुर में आज भी माफियातंत्र हावी है। जातियों में वैनमस्यता साफ दिखती है। यह जिला आज भी बनारस पर अधिक निर्भर है।

बसपा का नहीं खुला है अबतक खाता
अगर लोकसभा चुनावों की बात करें तो यहां दलित और यादव मतदाताओं की संख्या अधिक है। लेकिन सपा का प्रभाव अधिक रहता है। २०१४ के चुनाव तक यहां बसपा मुकाबले में रहने के बावजूद कभी सीट जीत नहीं पाई। अगर पिछले चुनाव की बात करें तो उस समय भाजपा यहां सबसे कम वोटों से चुनाव जीती थी। भाजपा के मनोज सिन्हा 306929 वोट पाकर जीते थे तो सपा की शिवकन्या कुशवाहा 32452 वोट से हारी थीं। उन्हें 274477 मत मिले थे, जबकि बसपा के कैलाशनाथ सिंह यादव को 241645 वोट मिले थे।









यह हैं प्रमुख जातियां

















यादव- 3.75 से 4.00 लाखबिंद- 1.50 से 1.75 लाख
दलित- 3.00 से 3.50 लाखकुशवाहा- 1.50 से 1.75 लाख
क्षत्रिय- 1.75 से 2 लाखमुस्लिम- 1.50 से 1.75 लाख