रामनगर और चित्रकूट की तरह गाजीपुर की भी चलायमान रामलीला है। 400 साल पुरानी रामलीला में रावण दहन भी भव्य और ऐतिहासिक होता है। कई बड़े दिग्गज नेता से लेकर मंत्री तक इस रावण दहन का हिस्सा बन चुके हैं। पर इधर पिछले कई बार से इसके साथ एक मिथक जुड़ गया है कि जो भी इस रावण दहन का हिस्सा बनता है उसे चुनाव में नुकसान होता है।
इसका अंदाजा इसी बात से लगायाजा सकता है कि 2007 में जमानियां विधानसभा सीट से बसपा के टिकट चुनाव जीतकर आए। उस दौरान वह भी गाजीपुर की रामलीला के रावण दहन का हिस्सा बने और रावण दहन भी किया। इसके बाद वह अगला चुनाव हार गए। ऐसा ही कुछ 2012 में पहली बार जीतकर आए तत्कालीन सपा नेता विजय मिश्रा के साथ भी हुआ। वह न सिर्फ पहली बार चुनाव जीते बल्कि अखिलेश सरकार में उन्हें धर्मार्थ कार्य मंत्री भी बनाया गया। विजय मिश्रा ने भी मंत्री रहते गाजीपुर के लंका मैदान में रावण का दहन किया। उन्होंने काफी राजनीतिक नुकसान झेला। मंत्री पद से हटा दिये गए। टिकट मिलना तो दूर, उन्हें सपा छोड़कर बसपा में जाना पड़ा। तब से अभी तक वह लाइम-लाइट से गायब हैं।
कहा जा रहा है कि 2014 की मोदी लहर में गाजीपुर से सांसद बने मनोज सिन्हा के साथ भी इस फैक्टर ने काम किया। मनोज सिन्हा अपने कार्यकाल के अंतिम साल में विजय दशमी के रावण दहन का हिस्सा बने और 2019 में प्रचंड मोदी लहर के बावजूद वो चुनाव हार गए।
हालांकि यह इत्तेफाक भी हो सकता है, लेकिन ऐसे मिथकों पर विश्वास करने वालों की तादाद कम नहीं और ऐसा देखने में आया है कि नेताओं में इस का खास खयाल रखा हाता है। इसी को देखते हुए ऐसी चर्चा है कि शायद इस बार कोई जनप्रतिनिधि रावण दहन में हिस्सा न ले। अगर ऐसा हुआ तो संभव है कि किसी अधिकारी से रावण दहन कराया जा सकता है।
By Alok Tripathi