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आयु रक्षित वाराही धर्म रक्षति वैष्णवी, 34 वां शक्तिपीठ माँ वाराही देवी के दर्शन मात्र से दूर हो जाते सारे कष्ट, जाने इस मंदिर से जुड़ी मान्यताएं

गोंडा नवरात्रि के मौके पर जगतजननी माँ वाराही के दरबार मे माता का दरबार सजा हुआ है। जहां उनके भक्तों का तांता माँ वाराही के चौखट पर आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लग रहा है। माँ वाराही का उल्लेख शिव पुराण व देवी भागवत में मिलता है। सतयुग से ही जगतसंचालिका माँ वाराही यहाँ पर भक्तों का कल्याण कर रही हैं।

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ब्रह्मांड के 51 शक्तिपीठों में विख्यात यह 34 वां शक्तिपीठ है। जिसे उत्तरी भवानी के नाम से भी जाना जाता है। गोंडा जनपद मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर बेलसर क्षेत्र में यह पौराणिक मन्दिर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि सती माता के पार्थिव शरीर को जब शंकर भगवान वियोग में भ्रमण कर रहे थे। तभी देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने जगत कल्याण के लिये अपने सुदर्शन चक्र से उनके पार्थिव शरीर को छिन्न-भिन्न कर दिया था। और उनके शरीर के अंग 51 स्थानों पर गिरे जो बाद में शक्ति कहलाये। उन्हीं शक्तिपीठो में से एक है माँ वाराही देवी का ये स्थान जो 34 वां शक्तिपीठ के तौर पर जाना जाता है। यहां पर मा सती के पीछे के दो दांत गिरे थे। जहां पर आज भी दो छिद्र मौजूद हैं जिनकी गहराई आज तक नही मापी जा सकी है। ऐसी मान्यता है कि सालों पहले किसी ने ऐसा करने का प्रसास किया था तो उनकी देखने की शक्ति चली गई थी। इसके बाद इस छिद्र में करीब 4000 मीटर धागे में एक पत्थर बांध कर डाला गया था मगर कुछ पता नहीं चल पाया। यहां यूं तो रोजाना हजारों भक्त दर्शन करते हैं लेकिन नवरात्र में यहाँ रोज लाखों भक्तों का जमावड़ा रहता है और भगवती का आशीर्वाद लेकर अपने घरों को लौटते हैं।

आयु रक्षित वाराही धर्म रक्षति वैष्णवी। जी हाँ दुर्गा कवच में मां वाराही देवी का वर्णन आयु की रक्षा करने के तौर पर मिलता है और माँ का उल्लेख पुराणों में सभी का कल्याण करने वाली देवी माँ के रूप में हुआ है। गोण्डा मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर बेलसर ब्लाक के उमरी गाँव में स्थित वाराही देवी (उत्तरी भवानी) की पौराणिक मान्यता है। यहां के विद्वान बताते है कि अपने पिता के घर पति शिव का अंश न देखकर अपमान न सह पाने के कारण सती मां अग्नि में प्रवेश कर गईं और उनके शरीर को लेकर जब शंकर भगवान समाधि लेने जा रहे थे। तो विष्णु भगवान ने जगत कल्याण के लिये अपने चक्र से उनके शरीर को छिन्न भिन्न कर दिया था। और उनके शरीर के अंग 51 स्थानों पर गिरे उसी में से एक अंग जबड़ा इस स्थान पर गिरा और ये स्थान 34 वें शक्ति पीठ वाराही देवी के नाम से जाना जाने लगा। दूसरी मान्यता यहाँ से यह भी जुड़ी हक़ी की हिरण्याक्ष नामक राक्षस से जब भगवान विष्णु ने पृथ्वी को बचाने के लिये जब वाराह अवतार लिया था तो यहीं पर उनके आवाहन पर माँ वाराही देवी का प्रादुर्भाव हुआ था और तभी से इस स्थान को वाराही देवी के रूप में पूजा जा रहा है। यहाँ पर लोगों का मानना है कि इस मंदिर में मांगी गई सारी मन्नतें पूरी हो जाती है।