
गृहमंत्री से मुलाकात के ठीक 2 दिन बाद दिल्ली पुलिस की टीम किंग ऑफ गोंडा यानी बृजभूषण शरण सिंह के लखनऊ और गोंडा में मौजूद घर पर छापेमारी की।
Brij Bhushan Singh: गृहमंत्री का पहलवानों से ऐसे समय मिलना जब खाप पंचायतों नें 9 जून को महापंचायत की धमकी दी थी। यह खाप पंचायतों के प्रभाव को दिखाता है। डेढ़ महीने से चल रहे पहलवानों के प्रदर्शन में कई बार उतार चढ़ाव आए। लेकिन, अभी तक पहलवानों की गृह मंत्री से मुलाकात नहीं हो सकी थी।
अमित शाह से मुलाकात के बाद सोनीपत के मुंडलाना गांव में बजरंग पुनिया ने खाप पंचायतों से रिक्वेस्ट किया था कि वह कोई बड़ा फैसला ना लें। उसके बाद की कहानी हम आपको स्टोरी में बता रहे हैं...
गृहमंत्री से मुलाकात के ठीक 2 दिन बाद दिल्ली पुलिस की टीम किंग ऑफ गोंडा यानी बृजभूषण शरण सिंह के लखनऊ और गोंडा में मौजूद घर पर छापेमारी की। पुलिस ने उनके घर के 15 कर्मचारियों से पूछताछ की। किंग ऑफ गोंडा पर यह कार्यवाई खाप पंचायतों के दिए हुए धमकी से जोड़ कर देखा जा रहा है।
कौन है खाप पंचायत? कैसे बनती है? कितने गांव होते हैं शामिल
एक गोत्र या फिर बिरादरी के सभी गोत्र मिलकर खाप पंचायत बनाते हैं। ये 5 गांवों से लेकर 40 गांव की हो सकती है। यूपी में बालियान खाप बड़ी पंचायतों में से एक है। देशवाल खाप भी यूपी में प्रमुख है।
बालियान खाप की मुखिया इस समय राकेश टिकैत के बड़े भाई नरेश टिकैत हैं। जो गोत्र जिस इलाके में ज्यादा प्रभावशाली होता है, उसी का उस खाप पंचायत में अधिक दबदबा होता है।
कम जनसंख्या वाले गोत्र भी पंचायत में शामिल होते हैं लेकिन प्रभावशाली गोत्र की ही खाप पंचायत में तूती बोलती है। सभी गांव के लोगों को बैठक में बुलाया जाता है, चाहे वे आएं या न आएं...और जो भी फैसला लिया जाता है उसे सर्वसम्मति से लिया गया फैसला बताया जाता है और ये सभी को मानने के लिए बाध्य होता है।
खाप का पहली बार जिक्र जोधपुर के जनगणना रिपोर्ट में मिलता है
कानूनी कागजों में खाप शब्द का प्रयोग पहली बार साल 1890-91 में जोधपुर की जनगणना रिपोर्ट में किया गया था, जो धर्म और जाति पर आधारित थी। कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि 'खाप' शब्द संभवतः 'शक' भाषा के खतप से लिया गया है, जिसका अर्थ है एक विशेष कबीले द्वारा बसा हुआ क्षेत्र।
खापों में पहले जाटों का दबदबा नहीं होता था
कई एक्सपर्ट्स से बातचीत करने के बाद भी सवाल का जवाब नहीं मिल सका कि पहली खाप पंचायत कब चर्चा में आई। लेकिन, यह माना जाता है कि पहली खाप से 84 गांवों के लोग जुड़े थे। साल 1950 में पश्चिमी UP के मुजफ्फरनगर जिले के सोरेम में हुई खाप पंचायत का जिक्र कई रिपोर्ट्स र्में मिलता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि पहले खाप पंचायतों में जाटों की दबदबा नहीं होता था।
आजादी के बाद हुई इस सर्व खाप पंचायत के प्रधान बीनरा निवास गांव के चौधरी जवान सिंह गुर्जर थे। इस खाप पंचायत में पुनियाला गांव के ठाकुर यशपाल सिंह उप-प्रधान थे, जबकि सोरेम गांव के चौधरी काबुल सिंह इसके मंत्री थे।
कुल 3 लोगों के लीडरशिप में जिन खाप पंचायतों की बैठक हुई थी। उसमें चौधरी काबुल सिंह एकमात्र जाट कम्युनिटी से ताल्लुक रखने वाले नेता थे। हालांकि, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों का वर्चस्व है। इसीलिए कई मर्तबा खाप पंचायतों के ताकत और फैसले के वर्चस्व को जाटों से जोड़कर देखा जाता है।
खाप पंचायतें कुल 3 तरह के काम करती हैं, तीसरे का अस्तित्व नहीं बचा
पहली- फैमिली और गांव के लोगों की किसी भी तरह की मामले को सुलझाना।
दूसरा- सामाजिक स्तर पर हर कम्युनिटी के लोगों को जोड़कर रखना।
तीसरा- अपने लोगों और क्षेत्र को किसी भी बाहरी ताकत यानी हमले से बचाना।
खाप पंचायतों के इन तीन कामों में से तीसरे काम का अब कोई वजूद नहीं है। क्योंकि यह इंटरनल सिक्योरिटी का मुद्दा अब सरकार के पास मौजूद है। इसकी जरुरत आजादी से पहले अपने कम्युनिटी को सेफ रखने के लिए हुआ करती थी। आज के दिन में इन पंचायतों का मुख्य काम आपसी विवादों को समय रहते सुलझाना और उनके समाज के बनाये गए नियम और कायदे कानून को ढंग से पालन कराना शामिल है।
पश्चिमी UP, हरियाणा समेत देश के 5 स्टेटस में खाप पंचायतों का असर साफ तौर पर देखा जा सकता है। खाप पंचायतों को लोकप्रिय होने की वजह, कानून के लचीलेपन का ऑल्टर्नेटिव साबित होती हैं।
खाप पंचायत के लोकप्रिय होने के 2 मुख्य कारण हैं, दूसरा कानून के खिलाफ
पहला- समाज और कास्ट के लेवल पर होने वाल आपसी फैमिली झगड़े, जमीन-जायदाद और दूसरे विवादों को खाप काम समय में सुलझा देती है। इससे मामला थाना और कोर्ट के दहलीज पर जाने से पहले ही खत्म हो जाता है।
दूसरा- पंचायतों के फैसले को मानने के लिए सोशल प्रेशर यानी सामाजिक दबाव रहता है। एक जगह कम्युनिटी के बीच रहने के लिए लोगों को पंचायतों के फैसले को मानना जरूरी होता है।
खाप पंचायत को कंगारू कोर्ट भी कहा जाता है
पंचायतों के जो प्रधान होते हैं वो अधिकतर मामलों में सोशल बायकॉट, आर्थिक जुर्माना व किसी अन्य तरह के बैन लगाती हैं। इन पंचायतों पर कई बार दूसरे जाति और धर्म में शादी करने पर विवादित फैसला सुनाने के आरोप भी लगते हैं। इसी वजह से खाप के विरोधी उसे ‘कंगारू कोर्ट’ भी कहते हैं।
लेकिन, खाप के नेता इस तरह के आरोपों को गलत बताते हैं। खाप नेता अब हिंदू मैरिज एक्ट में बदलाव की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि वो इंटरकास्ट मैरेज के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन एक गोत्र और एक गांव में शादी करने पर रोक लगनी चाहिए।
खाप पंचायतों ने हिस्ट्री में कई विवादित फैसले भी दिए हैं। आइए उनमें से उन 5 फैसलों को जानते हैं जो बहुत विवादित बने।
नंबर एक:भाई की सजा बहनों को... उनके संग रेप, नंगा घुमाने तुगलकी फरमान
बात साल 2015 की है। बागपत में एक खाप पंचायत ने दो बहनों के साथ रेप करने और उन्हें निर्वस्त्र करके गांव में घुमाने का आदेश जारी किया था। उन्हें उनके भाई के अपराध की सजा दी जानी थी। उनका भाई एक ऊंची जाति की महिला के साथ फरार हो गया था। खाप पंचायत के इस आदेश के बाद ब्रिटिश संसद तक में मांग उठी कि आरोपी की 23 और 15 साल की बहनों को पर्याप्त सिक्योरिटी प्रोवाइड की जाए।
नंबर दो: लड़कियों के पैदा होने से रोकने के बयान सुनकर आपका खून खौल उठेगा
अपने समुदाय में विवाह को लेकर खाप पंचायतों के नियम बहुत कडे़ हैं। ऐसे बहुत से मामले हुए जिनमें न केवल अतंर्जातीय विवाहों बल्कि पास के गांव में रहने वाले जोड़ों ने अगर शादी की तो उनके परिवार ने ही उनकी जान ले ली। इन घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दो रजामंद वयस्कों को अपनी मर्जी से शादी करने का अधिकार है। खाप पंचायत किसी व्यस्क को अंतर्जातीय विवाह करने से रोक नहीं सकती है।
यह बात साल 2018 की है। कोर्ट के फैसले से नाराज होकर खाप पंचायत के बड़े नेता नरेश टिकैत ने कहा, अगर हमारी पुरानी परम्पराओं में हस्तक्षेप किया गया तो उसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। इतना ही नहीं अगर इस तरह के आदेश पारित होते हैं तो हम न तो लड़कियां पैदा करेंगें और न ही लड़कियों को पैदा होने देंगे। उनका कहना था, या फिर या ये भी हो सकता है कि हम उन्हें पढ़ने ही न दें कि वे ऐसा फैसला ले सकें।
नंबर तीन: लड़कियों के जींस पहनने, मोबाइल और इंटरनेट इस्तेमाल पर आपत्ति
मुजफ्फरनगर के सोरम गांव में खाप महापंचायत को खाप पंचायतों का मक्का कहा जाता है। साल 2014 में इसी गांव में हुई एक खाप पंचायत में तुगलकी फरमान जारी किया गया था। इस पंचायत में यह तय किया गया कि लड़कियों के जींस पहनने, उनके फोन और इंटरनेट यूज करने पर बैन लगाया जाए। कुछ लड़कियों के घर से भागने के बाद समाधान के रूप में यह ऐलान किया गया था। यह बैन केवल यूपी में ही नहीं बल्कि हरियाणा में भी लगा था।
नंबर चार: बेटियों के नाम जमीन की, बुजुर्ग महिला पर 40 लाख का जुर्माना, सामाजिक बहिष्कार
कई मौकों पर खाप पंचायतों ने अपने तुगलकी फैसले से यह साबित किया है कि उनके लिए लड़कों के आगे लड़कियों का कोई वजूद नहीं है। बात राजस्थान की है। लेकिन, सामाजिक सरोकार वाली खबर है तो उत्तर प्रदेश से भी ताल्लुकात रखती है।
बात ऐसी है कि भीलवाड़ा में एक बुजुर्ग महिला अपनी तीन बेटियों के नाम जमीन करना चाहती थी। लेकिन महिला के ससुराल वाले यह नहीं चाहते थे। मामला खाप पंचायत तक पहुंचा। इसके बाद अगस्त 2018 में खाप पंचायत ने बुजुर्ग महिला पर 40 लाख का जुर्माना लगाकर उसे समाज से बहिष्कृत कर दिया। इस फैसले को पढ़कर खाप के नियम और कायदे पर सवालिया निशान तो आपके मन भी उठ रहे होंगे।
नंबर पांच:रेप रोकने के लिए शादी की उम्र घटाकर हो 15 साल
जुलाई 2010 में हरियाणा की सर्व खाप जाट पंचायत ने फरमान जारी किया कि लड़कियों की शादी के लिए उनके बालिग होने का इंतजार नहीं करना है। उनकी शादी अब 15 साल में ही कर देनी है। रेप की घटनाओं में हो रही बढ़ोतरी पर अंकुश लगाने के लिए यह आदेश जारी किया गया था।
मतलब गजब है रेपिस्ट को ना रोक पाओ तो इसकी सजा लड़कियों को दो। इन्हीं कुछ मनमर्जी वाले फैसले से खाप को पुरे देश में विरोध झेलना पड़ा।
तुगलकी फरमान जारी करने के लिए खाप पंचायतों को कहां से मिलती है ताकत ?
खाप पंचायत को वास्तविक ताकत उससे जुड़े लोगों और उनके बीच खाप की सर्वमान्यता से मिलती है। लोगों को बुलाकर जब खाप कोई फैसला लेती है तो लोकल स्तर पर प्रशासन और सरकार भी अलर्ट हो जाती है और बेवजह हस्तछेप करने से बचती है।
पिछले साल किसान आंदोलन को सफल बनाने में खापों ने काफी अहम भूमिका निभाई थी। इसके कारण केंद्र सरकार ने जो तीन नए कृषि कानून बनाए थे, उन्हें वापस ले लिया। उत्तर भारत के 5 राज्यों की राजनीति को खाप सीधे प्रभावित कर सकती है। यही वजह है कि हर राजनीतिक दल खाप प्रधानों से बेहतर रिश्ता बनाए रखना चाहते हैं। उनके नेताओं को सरकारें तवज्जो भी देती हैं।
बृजभूषण शरण सिंह और रेसलर प्रोटेस्ट की मौजूदा स्थिति क्या है?
दिल्ली पुलिस के पूछताछ के लिए बृजभूषण के घर आने के बाद बृजभूषण अभी दिल्ली में हैं। रेसलर प्रोटेस्ट अभी खत्म हो गया है। तीनों पहलवान रेलवे में नौकरी करते हैं। वो अपने-अपने नौकरी पर लौट चुके हैं। बृजभूषण के खिलाफ पोक्सो एक्ट के तहत मुकदमा लिखवाने वाली नाबालिगलड़की अपने बयान से मुकर गई है।
इस वजह से यह केस कमजोर होता हुआ नजर आ रहा है।लेकिन, बृजभूषण शरण सिंह का अपने इलाके यानी अपने संसदीय सीट पर पकड़ और मजबूत होती नजर आ रही है। यह सवाल है कि क्या बीजेपी बृजभूषण शरण सिंह को 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाती है या बृज भूषण अपनी जगह अपने बेटे को टिकट दिलवाने में कामयाब हो जाते हैं।
Updated on:
07 Jun 2023 11:02 am
Published on:
07 Jun 2023 10:38 am
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