प्रोफेसर मंसाराम वर्मा ने कहा कि प्राचीन परंपरा में यज्ञीय सत्रों में अपेक्षाकृत कम पढ़े-लिखे लोग भी गुरु से दीक्षा लेकर यज्ञ को कुशलतापूर्वक सम्पन्न कराते थे। ऐसे शिष्य दीक्षित कहलाते थे। कालक्रम से दीक्षित शब्द उपाधि नाम में प्रयुक्त होने लगा। प्रो० वर्मा ने छात्रों को महाविद्यालय के तीन परिसरों के विषय में परिचय कराते हुए पुस्तकालय, कार्यालय, एवं विभिन्न संकायों के विषय में बताया। दीक्षारम्भ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राजनीति विज्ञान के अध्यक्ष डॉ० शैलेश कुमार ने छात्रों को नई शिक्षा नीति के विषय में विस्तार से बताया। उन्होंने शैक्षिक जीवन में सफल होने के लिए कई उपाय बताए। भूगोल विभाग के अध्यक्ष डॉ रंजन शर्मा ने छात्रों को मोबाइल और इंटरनेट के सीमित और उपयोगी प्रयोग की सलाह दी। डॉ० शर्मा ने कहा कि पुस्तकें छात्रों की वास्तविक मित्र हैं। छात्रों को पुस्तकों का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए। मनोविज्ञान विभाग की अध्यक्ष डॉ० ममता शर्मा ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि लड़कियों को शिक्षा के क्षेत्र में और आगे आना होगा। आज समाज के हर क्षेत्र में महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। संस्कृत विभाग के प्रवक्ता श्रवण कुमार ने कहा कि यह जीवन की दशा और दिशा निर्धारित करने का काल है। हमें आज ही अपना लक्ष्य निर्धारित कर लेना चाहिए। उसके अनुरूप परिश्रम करना चाहिए। कार्यक्रम में अलग-अलग विषयों के सैकड़ों छात्र-छात्राओं ने प्रतिभाग किया एवं प्रश्नों के माध्यम से गुरुजनों से अपनी जिज्ञासाओं को शान्त किया। कार्यक्रम का समापन दीक्षारम्भ के संचालक प्रो० मंशाराम वर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन के साथ किया।