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विचारधारा के अनुरूप इतिहास लिखा जाने लगा हैः प्रो विश्वनाथ तिवारी

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के 36वें दीक्षांत सप्ताह पर आचार्य विश्वम्भर शरण पाठक स्मृति व्याख्यान

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गोरखपुर। ‘इतिहास और मनुष्य तभी से हैं जब से मानव समाज है। इतिहास वहां से शुरू होता है जहां से मानव सभ्यता का विकास प्रारंभ होता है। इतिहास मानव सभ्यता का इतिहास होता है। इतिहास तथ्यों का संकलन करते हुए उसका लेखन करता है तो साहित्य कल्पना के उपयोग से तथ्यों को उद्घाटित करने का महत्वपूर्ण कार्य करता है।
ये विचार साहित्य अकादमी नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो विश्वनाथ प्रसाद तिवारी के हैं। दीक्षांत सप्ताह में प्राचीन इतिहास, पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित आचार्य विश्वम्भर शरण पाठक स्मृति व्याख्यान में ‘‘साहित्य और इतिहास’’ विषय पर अपने संबोधन में प्रो तिवारी ने कहा कि साहित्य कल्पना, मिथक और फेण्टेसी के द्वारा सत्य का अनुसंधान करता है। साहित्य में वर्णित कल्पना असत्य नहीं होती। व्यक्ति के निजी वेदना को साहित्य में इस तरह उद्घाटित किया जाता है कि निजी रहते हुए सार्वजनिक हो जाता है। विम्ब और प्रतीकों के माध्यम से साहित्यकार इतिहास का सहारा लेकर मनुष्य की अन्तः वेदना को पकड़ता है और उसकी अभिव्यक्ति अपनी रचना में करता है।’
कवि आलोचक और सम्पादक प्रो तिवारी ने कहा कि इतिहास के तथ्य साहित्य में आकर एक नया रूप ग्रहण कर लेते हैं। आज साहित्य और इतिहास परस्पर करीब हो रहे हैं। जहां उपन्यास शोधपरक लिखे जा रहे हैं। वही इतिहास कल्पनात्मक है। उत्तर आधुनिक इतिहासकारों का जिक्र करते हुए आपने कहा कि इतिहास कभी हमारे सामने शुद्ध रूप में नहीं आता। इतिहास घटना न होकर एक निर्मिति है। यहीं आकर इतिहास में विचारधारा प्रवेश करती है और विचार धारा के अनुरूप इतिहास लिखा जाने लगता है।
‘अयोध्या’ और ‘पद्मिनी’ की चर्चा करते हुए प्रो तिवारी ने कहा कि ‘सवाल्टर्न हिस्ट्री’ के रूप में समाज में दबे-कुचे, पिछड़े लोगों का इतिहास तो लिखा जा रहा है लेकिन लोकचित्त के इतिहास को दरकिनार किया जा रहा है।
अतिथियों का स्वागत करते हुए प्राचीन इतिहास, पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग के अध्यक्ष प्रो राजवन्त राव ने कहा कि बिना स्मृति के संरक्षण के कोई समाज जीवित नहीं रह सकता। इतिहास के अभिलेखों को कविता ही कहा गया है। इतिहास और साहित्य में मूलभूत कोई अन्तर नहीं होता। मनुष्य के समग्र जीवन को स्थापित करना इतिहास और साहित्य दोनों का कार्य होता है। इतिहास और साहित्य में अन्तर तिथि एवं क्रम के आधार पर किया जाता है जो सम्पूर्णतः सत्य नहीं है।
कार्यक्रम की अध्यक्ष करते हुए विवि कुलपति प्रो वीके सिंह ने कहा कि साहित्य समाज का दपर्ण होता है। किसी भी समय के राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक आदि स्थितियों को जानने-समझने के लिए उस समय का साहित्य पढ़ना जरूरी होता है। साहित्य और इतिहास की व्याप्ति समुद्र के समान है।
संचालन प्रो दिग्विजय नाथ मौर्य और आभार ज्ञापन प्रो ईश्वरशरण विश्वकर्मा ने किया।
इस अवसर पर विभाग के शिक्षक, शोध छात्र एवं छात्राओं के अतिरिक्त विश्वविद्यालय के विभिन्न संकायाध्यक्ष, शिक्षक छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।


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