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हर दिन होती है फतवे पर बहस, क्या आप जानते हैं क्या होता है फतवा

फतवा क्या है, कैसे जारी होता, कौन जारी करता, जानिए

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काहिरा। अक्सर इस्लाम में अजीबोगरीब चीजों के खिलाफ जारी किया गया फतवा सुर्खियां बन जाता है। ऐसा ही एक फतवा पिछले दिनों इजिप्ट में जारी किया गया है। दरअसल, इजिप्ट के एक शीर्ष मुफ्ती ने फेसबुक के खिलाफ फतवा जारी कर दिया है। इजिप्ट के इस्लामिक लीडर मुफ्ती शौकी आलम ने फेसबुक के खिलाफ जारी किए इस फतवे में फेसबुक पर 'LIKE' के विकल्प को इस्लाम विरोधी बताया है। उनका मानना है कि ये धोखाधड़ी और फरेब का प्रतिरूप है। फेसबुक पर 'LIKE' को इस्लाम में विरोधी मानते हुए मुफ्ती शौकी आलम ने फतवा जारी किया है।

सियासी मामले हो या कोई अन्य प्रकरण, जब भी इस्लाम धर्म की बात होती है तो फतवा की बात जरूर होती है। 1989 में वीपी सिंह के जनता दल के पक्ष में वोट करने के लिए फतवा जारी कर जामा मस्जिद के इमाम बुखारी खासे चर्चा में आए थे। इधर आए दिन किसी ने किसी मुद्दे पर फतवा पर बहस होने लगती है। दरगाह आला हजरत बरेली व दारुल उलूम देवबंद सहारनपुर से निकलने वाले फतवों से तो आए दिन सियासी तापमान काफी तेजी से चढ़ता है।

लेकिन यह फतवा है क्या। कैसे जारी होता है यह फतवा। कौन जारी करता है यह फतवा। हर आम इंसान के जेहन में यह सवाल जरूर कौंधता है। आइए जानते हैं फतवा के बारे में, क्या है फतवा का असली मकसद।

फतवा का मतलब यह होता है

मदरसा रजविया मेराजुल उलूम चिलमापुर में कायम दारुल इफ्ता में मुफ्ती खुर्शीद अहमद मिस्बाही अमजदी करीब 20 साल से फतवा दे रहे हैं। पिछले साल सुन्नी बरेलवी मुसलमानों ने इन्हें अपना काजी-ए-गोरखपुर चुना था। मुफ्ती मिस्बाही के अनुसा फतवा अरबी शब्द है इसका अर्थ होता है शरीयत का हुक्म बताना। फतवा दो प्रकार का होता है। पहला फतवा तकरीरी यानी कोई शख्स मुहं जबानी मुफ्ती से किसी मसले में शरीयत के हुक्म को पता करता है। दूसरा फतवा तहरारी होता है यानी लिखित। फतवा तहरीरी लेने के लिए एक कागज पर सवाल लिखकर दारुल इफ्ता में मुफ्ती के सामने पेश किया जाता है। मुफ्ती सवाल का जवाब कुरआन व हदीस की रोशनी में उसी सवाल वाले कागज पर लिखकर दे देता है। जवाब के अंत में दारुल इफ्ता की मोहर व मुफ्ती की दस्तखत होती है। मुफ्ती दिए गए फतवे की एक कापी अपने पास जरुर रखता है। फतवा निःशुल्क दिया जाता है।


इन किताबों की सहायता से दिया जाता है फतवा

मुफ्ती मो. अजहर शम्सी ने बताया कि फिक्ह हनफी में फतावा आलमगीरी, फतावा काजी खां, फतावा शामी, दुर्रे मुख्तार, फतहुल कदीर, फतावा बजाजिया, हिदाया, बेदाया नेहाया, बदा-ए-उशसनाए, अल बहरुर्रायक, अल जौहरतुन नय्यरा, फतावा रजविया शरीफ, बहारे शरीयत, फतावा अमजदिया, आदि की सहायता से फतवा दिया जाता है। यह किताबें अरबी में होती हैं। कुछ किताबें उर्दू में भी होती हैं। इन फतवों से हनफी मजहब के मसले हल किए जाते हैं।


इन मसलों में दिया जाता है फतवा
शम्सी दारुल इफ्ता तुर्कमानपुर में वर्ष 2015 से दर्जनों लिखित व एक हजार से ज्यादा मौखिक फतवा दे चुके मुफ्ती मो. अजहर शम्सी ने मजहबी मामलात, मोबाइल, निकाह, तलाक, संपत्ति बटवांरा आदि पर फतवा दिया है। उन्होंने विभिन्न मसलों पर एक दर्जन किताबें लिखीं व एक लाइब्रेरी भी कायम की। उन्होंने बताया कि बताया कि फतवा देने का हुक्म कुरआन व हदीस से साबित है। मुसलमानों के मजहबी मामलात (नमाज, रोजा, हज, जकात आदि) व पर्सनल लॉ (निकाह, मेहर, तलाक, हलाला, भरण पोषण, विरासत, सम्पत्ति बटवांरा, उत्तराधिकार, वसीयत, वक्फ आदि) के मामलात में फतवा दिया जाता है। फतवा केवल मुफ्ती (पीएचडी के समकक्ष) ही दे सकता है। मुफ्ती की पढ़ाई दो साल की होती है। मुफ्ती की पढ़ाई बड़े मदरसों में ही होती है।


फतवा जबरदस्ती नहीं मनवाया जा सकता
मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार में दारुल इफ्ता की जिम्मेदारी मुफ्ती अख्तर हुसैन अजहर मन्नानी बताते हैं कि फतवा शरीयत (कुरआन व हदीस में दिया गया कानून) का हुक्म होता है जो सवाल करने वाले को बता दिया जाता है। एक प्रकार की सलाह है कि शरीयत में ऐसा करना उचित है या अनुचित। मानना या न मानना सवाल करने वाले के विवेक पर है। लोकतांत्रिक देश में फतवा बाध्यकारी नहीं है यानी फतवा जबरदस्ती मनवाया नहीं जा सकता है। फतवा कुरआन व हदीस की रोशनी में किए गए सवाल का जवाब व रहनुमाई है। फतवा मांगने का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। फतवा बेहतरीन समाज के निर्माण का एक महत्वपूर्ण साधन है। यह व्यवस्था सदियों से चली आ रही है। मुफ्ती अपनी तरफ से कुछ नहीं कह सकता है बल्कि कुरआन व हदीस में जो लिखा है वह उसको ही बयान कर देता है।

फतवा थोपा नहीं जाता

दारुल इफ्ता जामा मस्जिद उर्दू बाजार में मुफ्ती अब्दुल्लाह गाजीपुरी मजाहिरी बताते हैं कि फतवों के बारे में एक गलतफहमी फैली हुई है कि फतवा मुफ्ती अपने तरफ से देते है हालांकि ऐसा बिल्कुल नहीं है बल्कि मुफ्ती कुरआन व हदीस के रोशनी में पूछे गए सवाल का जवाब देते हैं। उलेमा फतवा किसी पर थोपते नहीं है। फतवा किसी व्यक्ति का नाम लेकर भी जारी नहीं किया जाता। फतवा जितना मुस्लिम आवाम पर लागू होता है उतना ही उलेमा पर भी लागू होता है। फतवों से आवाम की रहनुमाई की जाती है। मुफ्ती शरीयत का कानून बनाता नहीं है बल्कि बताता है।


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