
सीएम योगी
गोरखपुर. नब्बे के दशक की बात थी। पहाड़ी क्षेत्र का रहने वाला एक युवक उत्तराखंड के कोटद्वार डिग्री काॅलेज में चुनाव लड़ने की सोचा। यार-दोस्तों के कहने पर उसने छात्रसंघ चुनाव में पर्चा भी भर दिया। चूंकि, बीजेपी के छात्र संगठन में वह सक्रिय था इसलिए यह भरोसा भी था कि उसे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का समर्थन भी हासिल हो जाएगा।
लेकिन यह भरोसा उसे टूटते देर न लगी। संगठन के कुछ लोगों की मनमर्जी की वजह से युवक को टिकट नहीं मिल सका। युवक भी अपनी जिद्द का पक्का था, ठान लिया था सो पीछे कैसेे हटता। अब उसके पास बगावत के सिवा कोई दूसरा रास्ता न था इसलिए बागी होकर चुनाव लड़ा। चुनाव में जिस समर्थन की आस थी वह नहीं मिली और राजनीतिक धोखेबाजी के चलते यह युवक चुनाव हार गया। शायद यह इस युवक के राजनीतिक सफर की पहली सबक थी।
जीवन में मिली इस हार से अपनी जीत का मार्ग प्रशस्त करने वाला यह युवक कोई और नहीं बल्कि यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी थे। यह योगी आदित्यनाथ का दृढ़ निश्चय ही था कि जीवन की तमाम आपाधापी का सामना करते हुए सूबे की सर्वाेच्च सियासत की अहम किरदार हैं। जिस पार्टी के छात्र संगठन ने उनको एक छोटे से पद के लिए टिकट देने में कोताही की, उसी संगठन के मुख्य घटक व कद्दावरों ने उनको बुलाकर मुख्यमंत्री पद पर आसीन कर दिया।
उत्तराखंड के पंचूर गांव के रहने वाले अजय सिंह विष्ट यानि योगी आदित्यनाथ कोटद्वार में बीएससी किए हैं। वहां पढ़ाई करने के दौरान छात्रसंघ का चुनाव लड़े। राजनीति में रूचि ही उनको छात्रसंघ चुनाव में उतरने की इच्छा जागृत की होगी। अजय सिंह विष्ट 90 के दशक में ही गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ के संपर्क में आ गए थे।
उनसे इतना प्रभावित हुए कि छात्रसंघ चुनाव हारने के कुछ ही महीनों बाद गोरखपुर आने का मन बना लिया। परिवारीजन के ना नुकुर के बाद भी अजय सिंह नहीं माने और अंततः तत्कालीन पीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ से दीक्षा लेकर योगी आदित्यनाथ हो गए। 1992 में गोरखपुर पहुंचने के बाद आदित्यनाथ पीछे मुड़कर नहीं देखे। गोरखपुर में आने के बाद उन्होंने महंत अवेद्यनाथ की राजनीतिक विरासत भी संभालनी शुरू कर दी।
उनके चुनाव का पूरा प्रबंधन युवा योगी आदित्यनाथ ही करते थे। उनकी राजनीतिक कार्यकुशलता को देखते हुए ही महंत अवेद्यनाथ ने उनको अपनी सीट से 1998 में पहला चुनाव लड़ाया। फिर क्या था पांच बार सांसद रहे योगी आदित्यनाथ का गोरखपुर में इतना प्रभाव हो गया कि गोरखपुर शहर और देहात सीटों पर उनकी पसंद के ही प्रत्याशी चुनाव जीत पाते।
Input-धीरेंद्र गोपाल
Published on:
18 Sept 2017 12:20 pm
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