
शहरवासियों से गुनिया नदी की पुकार, मुझे बचा लो, मेरा अस्तित्व खत्म हो रहा
गुना. मैं गुनिया नदी हूं...। मेरा नाम आपके शहर के लोगों ने ही रखा है। मुझे गर्व है कि मैं उन चुनिंदा नदियों में शामिल हूं जिसके किनारे मानव सभ्यता का कोई शहर विकसित हुआ और यही मेरा दुर्भाग्य भी है कि एक विकसित शहर ने मेरे ही अस्तित्व को नकारते हुए मुझे नष्ट होने के लिए छोड़ दिया। नदियों की उम्र नहीं होती। हां इतिहास होता है, जो आप लोग ही बनाते हैं।
मुझे इतना याद है कि सदियों से मैं उन अनगिनत धाराओं में बेपरवाह बहती रहती थी, जो बारिश के दौरान पैदा होती थी। फिर 1844 में मेरी तमाम बहती धाराओं को एक जगह पर रोक दिया गया। वहां एक तालाब बना, जिसे आप सिंगवासा के नाम से जानते हैं। यहां से आपके शहर और मेरे बीच एक साझेदारी की शुरूआत हुई। मैंने उसे अपना पानी दिया। बदले में उसने मेरा संरक्षण दिया। यहां से आपके गुना का एक शहर के रूप में विकसित होन का सिलसिला भी शुरू हुआ। सिंगवासा से आगे करीब 500 मीटर तक मेरा पानी आज भी बहुत हद तक बना हुआ है। अंग्रेजों के समय बनाए गए स्टॉप डैम के पीछे मेरे पानी का इस्तेमाल लोग घरेलू जरूरतों के लिए करते हैं। यहां मैं 200 से 250 अधिक फीट तक फैल जाती हूं पर मेरे अस्तित्व के पुराने चिन्ह यहीं खत्म हो जाते हैं। इसके लिए कालापाठा तक आते-आते शहर के नाले मुझमें मिलने लगते हैं। मैं हैरान हूं कि आपका कानून मेरे करीब 500 मीटर के अस्तित्व को पूरी तरह नकार देता है और उसके बाद मैं फिर अचानक पैदा हो जाती हूं। घनी बस्तियों के बीच में बहते हुए कई पुल-पुलियों से होकर बहती रहती हूं। घोसीपुरा, हनुमान कॉलोनी, राधा कॉलोनी, विद्युत मंडल की कॉलोनी ऐसी तमाम बस्ती के लोग मेरे शरीर पर रोजाना लाखों लीटर गंदा पानी डाला जाता है। आज की पीढ़ी को तो मेरी हालत देखकर यकीन ही नहीं होगा कि सिर्फ 50 साल से मैं शहर की जलापूर्ति का अहम हिस्सा थी।
सन 1960 तक बड़े पुल के पास शहर की जल सप्लाई मेरे पानी से होती थी। यही नहीं 1980 तक यहां से कुछ ही दूरी पर धोबीघाट भी था। आज तमाम गंदगी को समेटे हुए मैं हूं। आपके शहर के रपटे के बाद पहुंचकर मुझे फिर याद आता है कि यहां मुझे देवी की तरह पूजा जाता था। शहर की नई पीढ़ी भी मंदिर घाट को जानती है। वहां मुझमें भुजरिया सिराई जाती थीं। लोग नहाते थे। लोग मेरे पानी से पवित्र हो जाते थे और आज... अगर मेरे पानी के छीटें मंदिर जाते हुए किसी शख्स पर पड़ जाएं तो उसे दुबारा नहाने जाना पड़ता है। रपटे से आगे जाते हुए मैं और गंदी होती जाती हूं। 40 साल पहले यहां शहर का ड्रेनेज सीधे मुझमे खोल दिया गया।
अपने सफर के अंतिम चरण में मैं सब्जी के खेतों के पास से गुजरती हूं। मेरा इतिहास और वर्तमान यही है। मैं जीवनदायिनी नदी से एक गंभीर खतरे में तब्दील हो चुकी हूं अब तो मेरे पानी के मुहाने भी बंद कर दिए हैं अब तो भू माफिया भी मेरे सीने को पाटकर प्लाटिंग कर रहे हैं। कोई मेरी न तो पुकार सुन रहा है और न मुझ पर अत्याचार करने वालों पर कार्रवाई कर रहा है। मुझे बचा लो मैं आपके जलस्रोत को रिचार्ज कराती रहूंगी और साफ पानी बहकर बोटिंग भी चलवाने की कार्ययोजना को मंजूर करा दूंगी।
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नदी किनारे लोगों ने बना लिए मकान
सिंगवासा से बहकर आ रही गुनिया नदी किनारे लोगों ने मकान बना लिए हैं। कई लोगों ने नदी किनारे खाली जमीन को अपनी बताकर बेच कर लाखों कमाए। इनमें वे भी लोग शामिल हैं जो सत्ता से जुड़े हैं। शहर के करीब 10 वार्डों से बहकर पिपरौदा में जाकर नेगरी नदी में मिलने वाली इस नदी में कई जगह अतिक्रमण हो गया है। तेज बहाव में यहां पर खतरा बना रहता है। इसके बाद भी प्रशासन ने कार्रवाई नहीं की।
अतिक्रमण की चपेट में गुनिया नदी
गुनिया नदी जिसमें कभी साफ पानी बहता था, वह आजकल जहां एक ओर अतिक्रमण से सकरी हो गई है, वहीं दूसरी ओर बड़े पुल के पास बन रहे सीवर ट्रीटमेन्ट की मिट्टी और मुरम ने इस नदी को और सकरी कर दिया है। सौ फीट चौड़ी नदी आज काला पाठा, लूशन का बगीचा और बसंत बिहार कालोनी आदि के आसपास 100 फीट की गुनिया नदी 20 फीट में तब्दील हो गई।इसके साथ ही पानी के मुहाने भी बंद हो गए हैं।
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शहर के प्रबुद्धजनों ने ये दिए सुझाव
नदी के दोनों ओर रोड बनाकर रिकवर किया जा सकता है।
जगह-जगह पार्किंग की जगह निकल सकती है।
अतिक्रमण हटाकर पूरी तरह से साफ किया जाए।
कब्जा करने वालों पर केस दर्ज कर जेल भेजा जाए।
प्रशासन सख्ती से काम करे, नागरिक उनके साथ हैं।
सरकार अपने आधिपत्य में ले और काम करने फंड उपलब्ध कराए।
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Published on:
05 Aug 2023 12:36 pm
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