
गुना नगर पालिका पर कांग्रेस और भाजपा का रहा कब्जा, फिर भी शहर की जनता से दूर विकास
गुना. गुना नगर पालिका में अध्यक्ष चुने जाने के कार्यकाल से लेकर अभी तक का इतिहास देखा जाए तो इन 74 सालों में सबसे अधिक कांग्रेस का कब्जा रहा है। भाजपा इन सालों में उस समय अपना अध्यक्ष चुन पाई जब जनता द्वारा अध्यक्ष का चुनाव सीधे होने लगा। लेकिन गुना शहर के विकास पर नजर डाली जाए तो इंदौर-भोपाल की तर्ज पर गुना का विकास नहीं हो पाया, जबकि इस संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी सिंधिया घराना करता रहा है।
यह बात अलग है कि गुना संसदीय क्षेत्र और गुना शहर की विधानसभा में अलग-अलग पार्टी का प्रतिनिधित्व विकास में रोड़ा बना रहा।हाल ही में प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने नगरीय निकाय के अध्यक्ष व महापौर का चुनाव पार्षदों के जरिए कराने की घोषणा की है, इस घोषणा के बाद राजनीतिक माहौल गरमा गया है। गुना नगर पालिका के अध्यक्ष पद के दावेदार पार्षद के जरिए बनने की दौड़ में दोनों पार्टी के नेता लग गए हैं।
पार्षदों का रहता था भरपूर दबाब
पार्षदों द्वारा चुने जाने वाले अध्यक्ष कार्यकाल के बारे में जानकार बताते हैं कि पुरानी व्यवस्था में पार्षदों का अध्यक्ष पर काफी दबाब रहता था, विकास के एक-एक मुद्दे पर पार्षद उन पर दबाब बनाते थे। जनता ने सीधे अध्यक्ष को चुना तो अध्यक्ष अपने स्तर पर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हो गए, इससे शहर के विकास के समीकरण गड़बड़ाए ही नहीं बल्कि वार्डों का विकास भी समानता से नहीं हुआ, जिससे परिषद में पार्षदों ने अध्यक्ष पर गंभीर आरोप लगाए, वहीं जनता भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित होती रही।
ऊषा हरि विजयवर्गीय को चुना था पार्षदों ने
हाल ही में प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने नगरीय निकाय में अध्यक्ष के चुनाव जनता द्वारा सीधे न कराकर पार्षदों के जरिए कराए जाने की घोषणा की है। पूर्व के इतिहास को देखा जाए तो सन् 1994-95 में आखिरी बार पार्षदों द्वारा गुना में कांग्रेस की ऊषा हरी विजयवर्गीय को चुना था। सन् 2००0 में पूर्व मु यमंत्री दिग्विजय सिंह ने यह प्रक्रिया बदली और नगरीय निकाय के अध्यक्ष व महापौर का चुनाव पार्षद के जरिए न कराकर सीधे जनता द्वारा चुने जाने की प्रक्रिया शुरू कराई। जिसके तहत सबसे पहले अध्यक्ष भाजपा के सूर्यप्रकाश तिवारी बने थे। इस प्रक्रिया के तहत आखरी अध्यक्ष राजेन्द्र सलूजा होंगे। जिनका कार्यकाल मात्र दो माह का शेष बचा है। नगर पालिका के अध्यक्ष रहे सूर्यप्रकाश तिवारी बताते हैं कि गुना नपा में दो-तीन बार प्रशासक भी रह चुके हैं।
सोनी को देना पड़ा था इस्तीफा
नई व्यवस्था में अविश्वास प्रस्ताव को लेकर जो आशंका जताई जा रही है, उसके शिकार गुना नगर पालिका में कांग्रेस नेता रतन सोनी हो चुके हैं। साढ़े तीन दशक पूर्व डा. महावीर जैन और रतन जैन दोनों अध्यक्ष पद के दावेदार थे। रतन सोनी बाजी मारकर अध्यक्ष बन गए थे। अविश्वास प्रस्ताव पारित होता कि इससे पहले रतन सोनी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। बाद में कांग्रेस नेता नेमीचन्द्र जैन कुछ समय के लिए अध्यक्ष बने थे।
Published on:
29 Sept 2019 02:02 am
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