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स्प्रिंकलर व ड्रिप सिस्टम से फसल में पानी देकर बचा रहे 50% तक भूजल

खेती में नवाचार: गर्मी में तीसरी फसल लेने किसान अपना रहे उन्नत तकनीक

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स्प्रिंकलर व ड्रिप सिस्टम से फसल में पानी देकर बचा रहे 50% तक भूजल

स्प्रिंकलर व ड्रिप सिस्टम से फसल में पानी देकर बचा रहे 50% तक भूजल

गुना . कहते हैं समय और जरूरत मानव स्वभाव को बदल देती है। ऐसी ही स्थिति अब किसान की हो गई है। जिले का किसान अब दो फसल के बाद तीसरी फसल तथा साल भर सब्जी की खेती भी करने लगा है। इससे उसकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो रही है। वहीं समय के साथ भूजल स्तर में कमी आने की समस्या से निपटने के नए तरीके भी उसने खोज लिए हैं। इस विकल्प का नाम है स्प्रिंकलर और ड्रिप पद्धति। इसका उपयोग कई किसान कर रहेे हैं। जो गांव सहित आसपास के गांवों के किसानों के लिए प्रेरणा का काम कर रहे हैं। ऐसे ही किसानों से पत्रिका ने चर्चा की और अनुभव भी जाना।

पूरे इलाके में आदर्श बना किसान

करोद निवासी कैलाशनारायण उपाध्याय (74) ने बताया कि वे कई वर्षों से खेती करते आ रहे हैं। ट्यूबवेलों की संख्या बढ़ने से पानी का दोहन होने लगा है। जिसके परिणाम अब गर्मी के दिनों में गिरते जल स्तर के रूप में सामने आने लगे हैं। जब उनके खेत में लगे बोर का पानी कम हुआ तो फसल पर संकट आ गया। ऐसे में उन्होंने कृषि विभाग के अधिकारियों से जानकारी ली। तब उन्हें स्प्रिंकलर और ड्रिप सिस्टम से सिंचाई के फायदे और सिंचाई करने के तरीके भी बताए। तब से इस पद्धति द्वारा सिंचाई करते हुए 10 साल से ज्यादा समय हो चुका है। अब तो गांव के ही नहीं आसपास गांव के भी किसान यही तरीका अपनाने लगे हैं। बोर में कम पानी होने के बाद भी वे मूंग, बाजरा के साथ सब्जी भी उगा सकते हैं। स्प्रिंकलर पद्धति से 30 से 40 और ड्रिप सिस्टम से 60 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है।

ऐसे काम करते हैं

सिंचाई के दोनों सिस्टम स्प्रिंकलर मतलब फव्वारा द्वारा सिंचाई एक ऐसी पद्धति है जिसके द्वारा पानी का हवा में छिड़काव किया जाता है और यह पानी भूमि की सतह पर कृत्रिम वर्षा के रूप में गिरता है। कुल मिलाकर स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति बरसात की बौछार का अहसास देने वाली सिंचाई पद्धति है। इसमें पानी को प्रेशर के साथ पाइप के जाल द्वारा फैलाकर स्प्रिंकलर के नोजिल तक पहुंचाया जाता है। जहां से यह एक समान वर्षा की बौछारों के रूप मे जमीन में फैलता है। जबकि ड्रिप सिस्टम में उद्यानिकी फसलों को जड़ में पानी दिया जाता है। इसे टपक पद्धति भी कहा जाता है। इन दोनों पद्धति से सिंचाई करने से न सिर्फ पानी की बचत होती है बल्कि पैदावार में इजाफा होता है।

यह बोले विशेषज्ञ

कृषि विभाग की आत्मा परियोजना (एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी) के ब्लॉक टेक्नीकल अधिकारी प्रमोद श्रीवास्तव ने बताया कि सिंचाई की दो पद्धतियां हैं, जो ग्रेन और उद्यानिकी फसल के लिए काफी उपयोगी हैं। स्प्रिंकलर पद्धति का उपयोग ग्रेन (अनाज) तथा ड्रिप सिस्टम का उपयोग उद्यानिकी फसलें जैसे सब्जी उत्पादन में किया जाता है। स्प्रिंकलर पद्धति से पानी की बचत का प्रतिशत 30 से 40 और ड्रिप सिस्टम से 50 से 60 प्रतिशत पानी की बचत होती है। उद्यानिकी विभाग के सौरभ गुप्ता ने बताया कि इन दोनों पद्धति का लाभ अधिक संख्या में किसान लें इसलिए सरकार किसान की आर्थिक स्थिति और भूमि के हिसाब से सब्सिडी भी देती है। बड़े किसानों को 45 प्रतिशत तथा छोटे किसानों को 55 प्रतिशत तक सब्सिडी उपलब्ध कराई जाती है।