नाटक की कहानी
एक परिव्राजक (गुरु) और उनका शांडिल्य (शिष्य) शिक्षा, ज्ञान, विज्ञान और योग विद्या संबंधित चर्चा करते हुए वाटिका में प्रवेश करते हैं। यमदूत सर्प बनकर वसंतसेना गणिका के प्राणों का हरण कर लेता है। बसंत सेना की सखी दुख में माता को यह समाचार सुनाने जाती है। वसंतसेना के प्रेम में लिप्त शांडिल्य का विलाप सुन परिव्राजक योग विद्या से वसंतसेना के शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं। वसंतसेना जीवित होकर परिव्राजक के समान व्यवहार करने लगती है। वसंतसेना की मां इसका प्रभाव समझती है, उधर भूलवश वसंतसेना नाम की दूसरी स्त्री के प्राण हरने के कारण यमदूत को यमराज के विरोध का सामना करना पड़ता है और वहीं यमदूत लौटकर वसंतसेना को चलता फि रता देखकर समझ जाता है कि वसंतसेना के शरीर में परिव्राजक क्रीड़ा कर रहे हैं। इसलिए वह गुरु के शरीर में वसंतसेना के प्राण डाल देते हैं और गुरु जीवित होकर स्त्रियों की भांति व्यवहार करने लगती हैं। इस पर बहुत ही हास्य और व्यंग्य का माहौल पैदा होता है। अंत में यमदूत दोनों के प्राणों की अदला-बदली करता है।
व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करता है रंगमंच
कार्यक्रम के प्रारंभ में डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने विश्व रंगमंच दिवस के संदेश को सभी के समक्ष प्रस्तुत करते हुए कहा कि आज थिएटर को समाज के प्रत्येक वर्ग से जोडऩे की आवश्यकता है । हमें सर्वप्रथम अपने बच्चों में रंगमंच के प्रति सकारात्मक संस्कार देने की जरूरत है। क्योंकि रंगमंच व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करता है और वह उसे यह सोचने पर मजबूर करता है कि समाज में उस व्यक्ति का क्या महत्व और उद्देश्य है, जिससे वह समाज को कुछ अच्छा दे सके। आभार आर्टिस्ट कंबाइंड के सचिव डॉक्टर संजय लघाटे ने व्यक्त किया।