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बैंक प्रबंधक ने किया 5 करोड़ का गबन

हाईकोर्ट ने नहीं दी राहत, एफआइआर खारिज करने के लिए पेश किया गया आवेदन खारिज

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ग्वालियर. उच्च न्यायालय ने ८०० किसानों के फर्जी दस्तावेजों के आधार पर ५ करोड़ रुपए का गबन किए जाने के मामले में जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक से जुड़ी उर्वा साख सहकारी समिति के प्रबंधक कालीचरण गौतम के एफआइआर खारिज करने के आवेदन को निरस्त कर दिया। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि यह जनता के धन के गबन का मामला है, जिसमें आरोपी पर गंभीर आरोप है, इस मामले जो धोखाधड़ी की गई है उसकी जांच चल रही है एेसे में आरोपी को कोई लाभ नहीं दिया जा सकता है।
न्यायमूर्ति आनंद पाठक ने आरोपी कालीचरण गौतम के आवेदन को खारिज करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया इस मामले में जो दस्तावेज प्रस्तुत किए गए हैं उन्हें देखते हुए आरोपी के खिलाफ जो एफआइआर दर्ज की गई है उसे खारिज नहीं किया जा सकता। आरोपी कालीचरण गौतम द्वारा उच्च न्यायालय में यह कहते हुए एफआइआर खारिज करने का निवेदन किया गया था कि इस अवधि में बैंक में फर्जी लोन बांटे जाने का घोटाला हुआ उस समय वह समिति का सदस्य नहीं था। शासन की ओर से इसका विरोध करते हुए कहा गया कि आरोपी द्वारा असत्य एवं निराधार तथ्यों पर आवेदन प्रस्तुत किया गया है जो स्वीकार योग्य नहीं है। मुख्य कार्यपालन अधिकारी सहकारी बैंक द्वारा जारी पत्र में स्पष्ट उल्लेख है कि कालीचरण गौतम समिति प्रबंधक संस्था उर्वा में २००७ से २०११ में रहे जो ३० अप्रैल १६ को रिटायर हुए हैं। इसी प्रकार जांच के दौरान कालीचरण गौतम ने अपने कथन में स्पष्ट किया है कि वे केन्द्रीय बैंक मर्यादित शाखा चीनौर में पर्यवेक्षक के पद पर २००८ से जून २०१० तक परस्थ रहे हैं। इस दौरान उनके पास उर्वा समिति के प्रबंधक का भी चार्ज रहा था। कालीचरण गौतम का कहना था कि बैंक द्वारा उक्त जानकारी गलत दी गई थी। न्यायालय ने कहा कि केवल इस आरोप पर की बैंक ने गलत जानकारी दी एफआइआर खारिज नहीं की जा सकती। इस मामले में किसानों की ओर से एक आवेदन न्यायालय में प्रस्तुत कर कहा गया था कि कालीचरण गौतम के आवेदन को खारिज किया जाए। किसानों ने न्यायालय में आवेदन देकर कहा कि गबन की राशि आरोपी कालीचरण गौतम से वसूल करने के आदेश दिए जाएं। कालीचरण गौतम के खिलाफ चीनौर थाने में किसानों के नाम पर फर्जी लोन बांटे जाने पर भादसं की धारा ४०९, ४१९,४२०, ४६७, ४६८, ४७१ सहपठित धारा ३४ के अपराध में दर्ज किया गया है। यह एफआइआर २४ अगस्त १६ को दर्ज की गई। जिसमें कहा गया कि वर्ष १९९९ से २००४ तक याचिकाकर्ता कालीचरण प्रबंधक के पद पर पदस्थ रहा है, अपनी पदस्थी के दौरान आरोपी ने फर्जीवाड़ा किया। इस दौरान जो समिति के सदस्य नहीं थे और जिनकी संस्था के क्षेत्र में कृषि भूमि नहीं थी उनके नाम पर लोन निकाला गया। आठ सौ लोगों को यह लोन बांटे गए।