ग्वालियर में बीड़ी बनाने का काम थोक में किया जाता है। इसलिए इसकी मांग बेहद अधिक होती है। वहीं शहर में सैकड़ों जगह बीड़ी बनाने का कार्य किया जाता है। जहां से बीड़ी बनाकर बड़ी फैक्ट्रियों को भेज दी जाती है। जहां से फैक्ट्री संचालक अपना मोनो लगाकर बीड़ी बेचने का कारोबार करते है। बता दें कि अंचल में तेंदूपत्ता की पैदावार कम ही होती है। ऐसे में तेंदूपत्ता की अधिक डिमांड होने पर बीना, बबीना और झांसी के आस-पास के इलाकों से तेंदूपत्ता शहर में लाया जाता है। इन इलाकों के किसानों से कुछ लोगों द्वारा तेंदूपत्ता खरीदकर इकठ्ठा कर लिया जाता है और इसके गठ्ठर बना लिए जाते है। तेंदूपत्ता को लाने का कार्य सबसे अधिक मात्रा में महिलाओं द्वारा किया जाता है, जिससे महिला होने के कारण उन पर कोई कार्रवाई नहीं करें। वहीं तेंदूपत्ता के गठ्ठर लाने वाली महिलाओं से झांसी से ट्रेन में चलने वाले आरपीएफ के जवानों द्वारा 100 से 150 रुपए प्रति गठ्ठर के हिसाब से लिए जाते है। तब जाकर महिलाएं गठ्ठरों को लेकर प्लेट फॉर्म 3 और 4 से होते हुए शहर के विभिन्न भागों में भेजा जाता है।