
Sita sagar talab, Datia
ग्वालियर. अंचल के तालाब अतिक्रमण में डूब गए हैं। हालात यह हैं कि तकरीबन 200 तालाब दम तोड़ चुके हैं। जो तालाब बच गए हैं उनमें पानी घटता जा रहा है और कब्जा बढ़ता जा रहा है। यही हाल रहा तो आने वाले दशक में अंचल के बचे हुए तालाबों में से आधे से ज्यादा का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। हैरानी इस बात की है तालाबों के सौंदर्यीकरण के लिए तो योजनाएं बन रही हैं, लेकिन उनको अतिक्रमण मुक्त कराने के प्रयास सिर्फ दिखावा हैं। ग्वालियर में तालाब अतिक्रमण के कारण सिकुड़ चुके हैं, जितना हिस्सा बचा है वो गंदगी की चपेट में है। जैसे-जैसे गंदगी इसको लीलती जाएगी, भूमाफिया के लिए जगह खाली होती जाएगी। दतिया जैसे अनेक उदाहरण हैं जहां तालाब के सौंदर्यीकरण और पाथवे निर्माण के दौरान उसका पुराना आकार ही खत्म कर दिया गया। खूबसूरती के नाम पर उसकी सिमटी हुई सीमाएं ही अब उसका आकार बन गई हैं, भले ही यह पहले से काफी छोटा हो गया।
दतिया के इस उदाहरण से समझिए तालाबों को खत्म करने का खेल...
तालाब के किनारों पर पाथवे बनाया, वैधानिकता के दायरे में लाए कब्जा
दतिया शहर का सीता सागर अपनेआप में नायाब था। इस प्राचीन तालाब को साइफन प्रणाली के आधार पर बनाया गया था जिससे इसके भरते ही पानी अन्य छोटे-बड़े तालाबों को भरता था। लेकिन इसके कैचमेंट एरिया को भूमाफिया ने निगलना शुरू किया। तालाब में पानी कम होने लगा, नतीजा यह हुआ कि इस पर निर्भर बाकी तालाबों में पानी कम हुआ। जलभराव कम होने से इन तालाबों को भी भू माफिया ने निशाना बनाकर निर्माण करने लगा। हद तो यह हुई कि नगर पालिका ने तालाब के सीमित जलभराव वाले क्षेत्र को दायरा मानकर पाथवे बना दिया। इस तरह अवैध रूप से किए गए कब्जे अब तालाब की सीमा से बाहर हो गए।
ग्वालियर - निगम सीमा के 5 तालाबों में है अतिक्रमण
जिले में 11 बड़े और प्राचीन तालाब हैं। इनमें अमरोल तालाब रियासतकालीन है। पारसेन और सिमिरिया ताल गांव में भी बड़े तालाब हैं। अमरोल तालाब के जीर्णोद्धार में अभी तक 1.29 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। इसके बाद भी यह तालाब पूरा नहीं भरा है। ग्वालियर नगर निगम सीमा में भी पांच तालाब हैं, इन तालाबों की जमीन पर अतिक्रमण है, जिसे हटाने में प्रशासन की नाकामी लगातार सामने आई है।
शिवपुरी - 13 तालाबों का अस्तित्व खत्म कर दिया अतिक्रमणकारियों ने
रियासत काल में शिवपुरी शहर में 18 तालाब हुआ करते थे, लेकिन पिछले छह दशक में यहां तालाब के कैचमेंट एरिया में कब्जा करने का सिलसिला ऐसा चला कि 13 तालाबों का अस्तित्व ही खत्म हो गया। मनियर तालाब अतिक्रमण की चपेट में है, यह भी खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है।
मुरैना - जिले में छह प्राचीन और विशाल तालाब हैं। इनमें जौरी में अतिक्रमण चारों तरफ से किया जा रहा है। वहीं जौरा खुर्द में 28 बीघा तालाब का सिविल लाइन थाना की तरफ कैचमेंट में पक्के निर्माण कर लिए गए हैं।
भिण्ड - जिले में छोटे-बड़े एक हजार तालाब थे, जिनमें से 200 तालाब अतिक्रमण की चपेट में आकर अस्तित्व पूरी तरह खो चुके हैं। भू माफिया अब भी करीब 300 तालाबों के कैचमेंट एरिया में कब्जा कर निर्माण करा रहा है।
पत्रिका ने बचाया इन तालाबों को
भुजरिया तालाब- अमृतम जलम अभियान में पत्रिका ने शिवपुरी के इस तालाब को संरक्षित किया। आज यहां १२ महीने पानी रहता है।
बड़ोखर तालाब- मुरैना के इस प्राचीन तालाब को पत्रिका के अभियान में संरक्षित किया गया, प्रशासनिक स्तर पर पहल नहीं होने से भू माफिया यहां पहुंच गया है।
तालाबों की हकीकत
जिले में 11 बड़े और प्राचीन तालाब हैं। इनमें अमरोल तालाब रियासतकालीन है। पारसेन और सिमिरिया ताल गांव में भी बड़े तालाब हैं। अमरोल तालाब के जीर्णोद्धार में अभी तक 1.29 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। इसके बाद भी यह तालाब पूरा नहीं भरा है। ग्वालियर नगर निगम सीमा में भी पांच तालाब हैं, इन तालाबों की जमीन पर अतिक्रमण है, जिसे हटाने में प्रशासन की नाकामी लगातार सामने आई है।
-जिला पंचायत ने मनरेगा योजना के जरिये जिले के 400 तालाबों में काम कराया है। इन तालाबों पर करीब 2 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। 100 तालाब शासकीय जमीनों पर नए बनाए गए हैं। इन तालाबों में भरने वाली पानी का लाभ अगले वर्ष से मिलना शुरू होगा।
-शहर में स्वर्णरेखा नदी के उद्गम स्थल के रूप में पहचान रखने वाला हनुमान बांध है। इस तालाब में 350 चिन्हित अतिक्रमण हैं। वर्ष 2015 में हाईकोर्ट के आदेश पर अतिक्रमण हटाने की शुुरुआत हुई थी, लेकिन राजनीतिक दबाव की वजह से यह कार्रवाई पूरी नहीं हो सकी।
-मुरार नदी के उद्गम स्थल के रूप में पहचान रखने वाला रमौआ बांध की जमीन पर बीते वर्षों में लगातार अतिक्रमण बढ़ा है। इस बांध की 6 हैक्टेयर भूमि किसानों के माध्यम से शहर के भू माफिया ने कब्जा ली है। नदी को जोडऩे वाले बांध के मुहाने पर करीब 30 फीट चौड़ी दीवार बना दी है। इस दीवार को हटाने के लिए तीन वर्ष पहले कार्रवाई हुई थी, लेकिन यह कार्रवाई पूरी नहीं हो सकी।
-शहर के उत्तर-पूर्वी छोर पर मौजूद जड़ेरुआ बांध भी अतिक्रमण की चपेट में है। इस बांध के चारों ओर भू माफिया का कब्जा है। बहाव क्षेत्र की 14 बीघा भूमि पर भी अतिक्रमण है। इसको हटाने के लिए प्रशासन ने अभी तक कोई उल्लेखनीय कार्रवाई नहीं की। बीते वर्ष बांध को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बनी थी। पर्यटन विभाग के माध्यम से पूरी होने वाली इस योजना की अभी तक शुरुआत नहीं हो सकी है।
-मामा का बांध, वीरपुर बांध, हाथीखाना तालाब के कैचमेंट एरिया में भी अतिक्रमण होने से इन बांधों की जल भराव क्षमता लगातार कम हो रही है। वीरपुर बांध में जहां ईंट भट्टे और किसानों का कब्जा है, वहीं हाथीखाना तालाब के कैचमेंट की जमीन पर लोगों ने बाउंड्री बनाकर खत्म कर दिया है। इस तालाब को शहर में मौजूद छत्री के रास्ते बैजाताल से जोडऩे वाली नहर भी जगह-जगह से गायब हो गई है।
Published on:
06 Jan 2022 11:48 pm
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