
मित्रता कृष्ण और सुदामा की तरह अटूट होना चाहिए
ग्वालियर/सोनागिर. इत्र, मित्र, चरित्र की जिंदगी में बहुत आवश्यकता है। इत्र वस्त्रों में सुगंध पैदा करता है, मित्र जीवन में सुगंध पैदा करता है और चरित्र जगत पूज्य बना देता है। इत्र की सुगंध कुछ घंटों में समाप्त हो जाती है मगर मित्र के चरित्र की सुगंध जीवन भर रहती है। मित्रता कृष्ण और सुदामा की तरह होना चाहिए कृष्ण के राजा बन जाने पर भी सुदामा के प्रति जो बचपन में भाव था वह राजा बनने के बाद भी अटूट रही। मित्र वह नहीं होता जिससे मदद मांगने जाना पड़ता है। मित्र वह होता है जो बुरे वक्त में बिन मांगे ही मदद करने के लिए उपस्थित हो जाए। सुदामा ने नारायण श्री कृष्ण से कुछ मांगा नहीं था मगर सुदामा के घर पहुंचने के पहले कृष्ण ने कुटिया को महल का रूप दे दिया था। यह विचार जैन मुनि प्रतीक सागर ने पुष्पदंत सागर सभागृह में धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। जैन मुनि ने आगे कहा कि जो तुम्हारे मुख पर प्रशंसा करता है और पीठ पीछे आलोचना करता है। वह तुम्हारा कभी हित चिंतक नहीं हो सकता है। मुख पर प्रशंसा करने वाला चापलूस होता है और तुम्हारे पीठ पीछे लोगों के सामने प्रशंसा करने वाला तुम्हारा सच्चा मित्र और हित चिंतक हो सकता है। चापलूस दोस्तों से तो अच्छा है बिना दोस्त रहना।
पुस्तक को अपना मित्र बना लो
जैन मुनि ने आगे कहा कि दुनिया को अपना मित्र बनाने की बजाय पुस्तक को अपना मित्र बना लो वह ऐसा मित्र है जो कभी भी अकेला नहीं छोड़ेगा। मित्र ऐसा चाहिए जो ढाल सरिका होय दुख में तो आगे चले सुख पीछे होए। उन्होंने आगे कहा कि भौतिकता की चकाचौंध में आदमी दुनिया की खबर तो रखता है मगर स्वयं की खबर नहीं है। भारत की धरती स्वर्ग की भूमि से भी सुंदर है। इस भूमि पर हीरे, मोती, माणिक, मूंगा वह सब कुछ है जो एक जीवन जीने के लिए आवश्यकता है। सबसे बड़ी चीज तो यहां अध्यात्म है जो मन को शांति और प्रसन्नता देता है।
Published on:
28 Jul 2020 08:30 pm
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