
Mafia has its eyes on government lands
शहर में जमीनों के भाव आसमान छू रहे हैं। इन सरकारी जमीनों पर माफिया की नजर है। रिकॉर्ड में हेराफेरी कर जमीन कब्जे में ली। कब्जे के आधार पर जिला कोर्ट में दावा पेश कर रहे हैं। इन दावों में सरकार गायब हो गई है। पिछले दो साल में जिला न्यायालय में सरकारी व मंदिर की जमीन को लेकर करीब 250 दावे आए हैं। इन दावों में जो जमीन है, उसकी कीमत करोड़ो में है। इन दावों में शासन की ओर से पैरवी के लिए न वकालत नामा आया है। न जवाब दावा पेश किया जा रहा है। शासन एक पक्षीय (एक्स पार्टी) होने की स्थिति हैं। सरकारी जमीनों के इस बंदरबाट को लेकर अतिरिक्त शासकीय अधिवक्ता गिरीश शर्मा ने राज्य शासन, विधि विधाई विभाग को पत्र लिखा है।
दरअसल जिला कोर्ट मेें पैरवी के लिए शासकीय अधिवक्ताओं के बीच कार्य विभाजन है। किस शासकीय अधिवक्ता को कहां पैरवी के लिए उपस्थित होना है। न्यायालय में जो केस लग रहा है, उसकी पैरवी की जिम्मेदारी उसी अधिवक्ता की रहती है। पैरवी के लिए जब आवाज लगती है तो शासकीय अधिवक्ता संबंधित अधिकारी को जानकारी नहीं देते है। इस कारण केस चलता रहता है। लंबे समय तक जब शासन का जवाब नहीं आता है तो उसे एक्स पार्टी हो जाता है। दो लोगों ने जो आपस में वाद लगाया, उसे राजनीमा के तहत खत्म कर देते हैं। सिटी सेंटर क्षेत्र की जमीनों को लेकर 70 दावे आए हैं।
- दो लोग आपस में जमीन विवाद का दावा पेश करते हैं। दावे में शासन को भी प्रतिवादी बनाया जाता है। जब इस मामले की सुनवाई होती है। विवाद करने वाले व्यक्ति उपस्थित होते हैं। दावे को लंबा खींचा जाता है। शासन जब जवाब के लिए उपस्थित नहीं होता है तो उसे एक्स पार्टी किया जाता है।
- शासन के एक्स पार्टी होने से जवाब नहीं आता है। जमीन की वास्तविक स्थिति कोर्ट के समक्ष नहीं आती है। एक पक्षीय आदेश वादियों के पक्ष में हो रहे हैं। एक पक्षीय आदेश होने के बाद उसकी जानकारी आगे नहीं बढ़ती है। जब अपील का समय निकल जाता है तो नामांतरण के लिए आदेश पेश करते हैं।
- कोर्ट के आदेश पर जमीन का नामांतरण पेश किया जाता है। नामांतरण के वक्त रिकॉर्ड देखा जाता तो वह शासकीय निकलती है। इसके बाद अपील की चिंता होती है। देर से अपील पेश करने पर शुरुआत में ही खारिज होने की संभावना रहती है।
- जिले में मंदिरों की जमीनें सबसे ज्यादा खुर्दबुर्द हुई हैं। माफिया ने दावे लगाकर अपने नाम जमीनें कराई हैं। दावे में माफी औकाफ को पार्टी ही नहीं बनाया जा रहा है। जो सरकारी वकील पैरवी के लिए जा रहे हैं, वह भी इसकी जानकारी कोर्ट को नहीं देते हैं।
- माफी की जमीन के खसरों में बदला हुए हैं। ग्वालियर एसडीएम ने माफी की जमीनें निजी नाम से हुए हुई थी। उन्हें फिर से माफी के नाम किया है।
- सिटी सेंटर क्षेत्र की जमीनों के दावे सबसे ज्यादा आ रहे हैं, क्योंकि सिटी सेंटर पर चरनोई व वनभूमि अधिक है। यहां पर जमीनों की कीमत भी आसमान छू रही है।
केस:1- महलगांव हल्के की 315 बीघा जमीन की एक पक्षीय डिक्री हुई थी। यह जमीन कलेक्ट्रेट के सामने स्थित है। अपील का समय निकलने के बाद शासन को जानकारी मिली। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट तक केस लड़ा। उसके बाद दावा फिर से सुना गया। शासन को पता चला तब तक विद्या विहार बस गया।
केस-2: एसपी ऑफिस की जमीन की भी एक पक्षीय डिक्री हो चुकी है। जमीन पर एसपी ऑफिस बन गया। 15 साल बाद जमीन की डिक्री की जानकारी शासन को मिली। एसपी ऑफिस की जमीन की डिक्री श्रीलाल व पूरन के नाम हुई थी। शासन की अपील खारिज हो चुकी है।
इतनी बीघा जमीन के दावे
-झांसी रोड - 800 बीघा
-लश्कर - 300 बीघा
- मुरार - 650 बीघा
-घाटीगांव-150
- सभी तहसीलदारों को दावों में वकालतनामा व जवाब पेश करने के लिए पत्र लिखा है। तहसीलदार अपने क्षेत्र की जमीनों के दावों में उपस्थित होंगे। हमें सूचना पत्र प्राप्त होने पर तत्काल केस प्रभारी नियुक्त करते हैं।
नरेश गुप्ता, एसडीएम मुरार व जेसी शाखा प्रभारी
सरकारी जमीनों के करीब 250 से अधिक दावे चल रहे हैं। शासन को पार्टी बनाया है, लेकिन जवाब दावा पेश नहीं किया गया। इस कारण शासन एक्स पार्टी होने वाला है। इसको लेकर शासन स्तर तक शिकायत की है। जिससे जवाब पेश हो सके।
गिरीश शर्मा, अतिरिक्त शासकीय अधिवक्ता
Published on:
19 Aug 2025 11:12 am
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