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ग्वालियर में भाजपा ने कार्यकर्ताओं के सोशल मीडिया पर टिप्पणी करने पर लगानी पड़ी रोक

Gwalior में Mayor पद पर Congress का कब्जा; भाजपा कार्यकर्ता बड़े नेताओं और संगठन पदाधिकारियों पर निकाल रहे भड़ास

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ग्वालियर . ग्वालियर नगर निगम चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा की जीत के इतिहास को पलटकर रख दिया। इस करारी शिकस्त को लेकर अब कार्यकर्ताओं का गुस्सा फूट रहा है। उनकी नाराजगी पार्टी के बड़े नेताओं और संगठन पदाधिकारियों से है। वे उनका नाम लिए बगैर उनपर निशाने साध रहे हैं और हार का ठीकरा उनपर फोड़ रहे हैं। तीन दिन में सोशल मीडिया पर ऐसी सैकड़ों टिप्पणियां आईं जिसके बाद भाजपा जिलाध्यक्ष को सोशल मीडिया पर ऐसी टिप्पणी करने पर पाबंदी लगानी पड़ी है। कार्यकर्ताओं को चेतावनी देते हुए बुधवार को पोस्ट की गई। जिसमें कहा गया कि अब ऐसी टिप्पणी की तो संबंधित पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

निगम चुनाव में महापौर की कुर्सी भाजपा के हाथ से निकल गई है, वहीं वार्डों में भी भाजपा को नुकसान हुआ है। भाजपा कार्यकर्ता इसी को लेकर सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं। सोशल मीडिया पर अब तक जो टिप्पणियां की गईं उनमें पार्टी के कद्दावर नेताओं से लेकर संगठन पदाधिकारी तक शामिल हैं। सिंधिया और तोमर से लेकर कई बड़े नेता कार्यकर्ताओं के निशाने पर आए। सांसद विवेकनारायण शेजवलकर, जिलाध्यक्ष कमल माखीजानी पर हार का ठीकरा फोड़ा जा रहा है। यही वजह रही कि संगठन स्तर पर टिप्पणी करने वाले कार्यकर्ताओं को नसीहत देकर रोकना पड़ रहा है।

जिलाध्यक्ष : जो कहना है पार्टी फोरम पर कहें
कार्यकर्ता : बैठक आपको बुलाना है, बुला लें
इन टिप्पणियों को लेकर भाजपा जिलाध्यक्ष कमल माखीजानी ने भाजपा के ग्रुप में कार्यकर्ताओं को नसीहत देते हुए लिखाञ गत कुछ दिनों से देखने में आ रहा है कि सोशल मीडिया पर पार्टी विरोधी टिप्पणियां कार्यकर्ताओं द्वारा की जा रही हैं। सोशल मीडिया पर इस प्रकार की टिप्पणियां करना अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है। आज दिनांक के बाद यदि ऐसी कोई टिप्पणी सोशल मीडिया पर पाई जाती है तो ऐसे कार्यकर्ता के विरुद्ध कड़ी अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी। पार्टी फोरम पर अपनी बात कहने की स्वतंत्रता है सोशल मीडिया पर नहीं।


इस पर एक नेता ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए लिखा है कि कार्यकर्ता ने क्षेत्र में काम किया उसकी दृष्टि में उसे पराजय के कारण समझ में आ रहे है वो उन्हें व्यक्त कर रहा है। पार्टी या नेताओं के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं कर रहा है, इसलिए अनुशासन हीनता नहीं मानिए। रहा सवाल पार्टी फोरम में बात रखने का तो बैठक आप को बुलाना है कभी रख लीजिए। प्रदेश से कोई बड़ा नेता आ जाए तो बहुत अच्छा रहेगा। 23 का चुनाव कार्यकर्ता के दम पर ही जीत पाएंगे उन्हे सिर्फ और सिर्फ सम्मान चाहिए। इस हार ने 23 के विधान सभा की बात छोडि़ए 24 के लोकसभा चुनाव के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। जोडऩे की जरूरत है तोडऩे की नहीं।
आखिर भाजपा कार्यकर्ता को इतना गुस्सा क्यों है
- ग्वालियर का कांग्रेस महापौर आखिरी बार 57 साल पहले निर्वाचित हुआ था। उसके कार्यकाल के बाद फिर कभी कांग्रेस को ग्वालियर में जीतने का मौका नहीं मिला। पिछली परिषद का कार्यकाल समाप्त होने के दो साल बाद चुनाव हुए। इस तरह करीब 50 साल तक महापौर की कुर्सी से दूर रही कांग्रेस इस बार अपना महापौर बनाने में कामयाब हो गई।
- ग्वालियर भाजपा का गढ़ रहा है और यहां दो केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर व ज्योतिरादित्य सिंधिया भी मोर्चा संभाले हुए थे। आरएसएस की यहां जड़ें जमी हुई हैं। इस सब के बावजूद चुनाव में हार के पीछे संगठन पदाधिकारियों की कमजोर रणनीति और दिग्गजों की गुटबाजी को वजह माना जा रहा है। जमीनी कार्यकर्ता अपनी अनदेखी से नाराज हैं।
- ब्राह्मण वोटर के नुकसान के लिए अनूप मिश्रा को जिम्मेदार ठहराते हुए उनपर गुस्सा निकाला गया। क्षत्रिय-राजपूत वोटर के एकजुट होकर मतदान करने के लिए अपनी पार्टी के क्षत्रिय नेताओं पर क्षेत्रीय-जातिगत राजनीति करने का आरोप मढ़ा गया। सामान्य वर्ग के वार्डों में आरक्षित वर्ग को टिकट देने के लिए भी आक्रोश जाहिर किया गया।
- पार्षद प्रत्याशी बड़े नेताओं ने चुने और जमीनी कार्यकर्ता को महत्व नहीं दिया। यहां तक कि नेताओं के परिवार से महिलाओं को टिकट दिए गए। इसी वजह से कार्यकर्ताओं को बागी बनकर अपनी ही पार्टी के खिलाफ चुनाव लडऩा पड़ा। पार्टी प्रत्याशी अपने लिए वोट मांगते रहे, लेकिन महापौर प्रत्याशी के लिए वोट मांगने से बचते रहे।
(सोशल मीडिया पर टिप्पणियों के आधार पर समीक्षात्मक जानकारी)