
Gwalior Fort
Gwalior Fort: नरेंद्र कुइया. लियर के किले को अब निजी हाथों में देने की तैयारी है। इसके लिए भोपाल में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में पर्यटन-संस्कृति विभाग ने इंटरग्लोब एविएशन लिमिटेड (इंडिगो एयरलाइंस) के साथ एमओयू किया है। इसमें आगा खान कल्चरल सर्विसेज फोरम (एकेसीएसएफ) को शामिल किया है। अभी 5 साल के करार में किले के संरक्षण और सौंदर्यीकरण होगा। बाद में पांच साल और बढ़ेगा। इसकी फंडिंग इंडिगो एयरलाइंस करेगी, एकेसीएसएफ संरक्षण करेगी।
इनके संरक्षण का कार्य भी वे ही करते हैं। ग्वालियर दुर्ग पर एमओयू (MOU) के बाद की प्रक्रिया शुरू करने से पहले मप्र टूरिज्म(MP Tourism), इंडिगो एयरलाइंस (Indigo Airlines) और एकेसीएसएफ की 100 लोगों की टीम 7 मार्च को शाम 4 बजे किले पर पहुंचेगी।
इस एमओयू में ग्वालियर किले के वि₹म महल, कर्ण महल, गूजरी महल, जहांगीर महल, शाहजहां महल, हुमायू महल और जौहर कुंड सहित कई ऐतिहासिक संरचनाओं के दस्तावेजीकरण और संरक्षण करने की बात कही गई है। जबकि राज्य पुरातत्व विभाग की ओर से संरक्षित स्मारकों के संरक्षण का कार्य पूर्व में भी किया गया है और वर्तमान में भी किया जा रहा है। राज्य पुरातत्व विभाग ने 2016-17 में करीब एक से डेढ़ करोड़ रुपए खर्च कर यहां संरक्षण कार्य किए थे। वहीं अब यहां लगभग 75 लाख रुपए से अधिक खर्च कर रिनोवेशन कार्य किए जा रहे हैं। साथ ही यहां पाथवे का निर्माण कार्य भी जारी है। ऐसे में निजी कंपनी से संरक्षण कार्य कराने की क्या जरूरत आन पड़ी है।
● ग्वालियर किला कंजर्वेशन और इल्यूमिनेशन परियोजना बहुआयामी प्रयास।
● पर्यटकों के लिए सुविधाजनक पहुंच मार्ग, सुविधाओं का विस्तार।
● मौजूदा स्थानों का उपयोग कर कैफे व प्रदर्शनी स्थलों का विकास।
ग्वालियर किले पर बनी भीमसिंह राणा की छत्री पर शासन ने 2022-23 में होटल की योजना बनाई थी। जाट समाज के विरोध के बाद योजना ठंडे बस्ते में चली गई थी। श्योपुर का किला, बलदेवगढ़ का किला, दतिया का राजगढ़ पैलेस राज्य पुरातत्व विभाग से असंरक्षित कर पर्यटन निगम को दिए थे।
ग्वालियर किले पर 50 लाख रु. मासिक आय ग्वालियर दुर्ग पर बने केंद्र-राज्य पुरातत्व विभाग के स्मारकों को देखने विदेशों से सैलानी आते हैं। मासिक आय 50 लाख तक है। विशेष दिनों में यह बढ़ जाती है।
इस एमओयू में ग्वालियर किले के विक्रम महल, कर्ण महल, गूजरी महल, जहांगीर महल, शाहजहां महल, हुमायू महल और जौहर कुंड सहित कई ऐतिहासिक संरचनाओं के दस्तावेजीकरण और संरक्षण करने की बात कही गई है। जबकि राज्य पुरातत्व विभाग की ओर से संरक्षित स्मारकों के संरक्षण का कार्य पूर्व में भी किया गया है और वर्तमान में भी किया जा रहा है। राज्य पुरातत्व विभाग ने 2016-17 में करीब एक से डेढ़ करोड़ रुपए खर्च कर यहां संरक्षण कार्य किए थे। वहीं अब यहां लगभग 75 लाख रुपए से अधिक खर्च कर रिनोवेशन कार्य किए जा रहे हैं। साथ ही यहां पाथवे का निर्माण कार्य भी जारी है। ऐसे में निजी कंपनी से संरक्षण कार्य कराने की क्या जरूरत आन पड़ी है।
निजी कंपनियों को पुरातत्व संरक्षित स्मारकों की जानकारी नहीं होती। वे धरोहरों का संरक्षण कार्य कैसे कर सकती हैं। ऐसे काम पहले भी हो चुके हैं। ये सब मिलीभगत से होते हैं।
-शोभाराम वर्मा, पूर्व डिप्टी डायरेक्टर, राज्य पुरातत्व विभाग
Published on:
06 Mar 2025 09:23 am
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