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तानसेन के साथ अगर इधर भी नजरें इनायत हों….गंदगी और अतिक्रमण की चपेट में हस्सू-हद्दू खां स्मृति सभागार

- भारतीय शास्त्रीय संगीत में ग्वालियर घराने की गायन शैली को पहचान देने वाले हस्सू खां-हद्दू खां की स्मृति में बना सभागार की बेकद्री, दीवार को बना डाला शौचालय

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तानसेन के साथ अगर इधर भी नजरें इनायत हों....गंदगी और अतिक्रमण की चपेट में हस्सू-हद्दू खां स्मृति सभागार

तानसेन के साथ अगर इधर भी नजरें इनायत हों....गंदगी और अतिक्रमण की चपेट में हस्सू-हद्दू खां स्मृति सभागार

ग्वालियर. भारतीय शास्त्रीय संगीत में ग्वालियर घराने की गायन शैली को पहचान देने वाले हस्सू खां-हद्दू खां की स्मृति में बना सभागार इन दिनों बेकद्री झेल रहा है। रामाजी का पुरा बहोड़ापुर क्षेत्र में एबी रोड पर बने सभागार में कहने को तो ध्रुपद केंद्र चलाया जा रहा है लेकिन इसकी दीवारें जर्जर हालत में हैं। यहां तक किन इन दीवारों को ही लोगों ने यूरिनल बना डाला है। इसके साथ ही इस सभागार के बाहर अतिक्रमण के साथ गंदगी और कचरे का जमावाड़ा भी देखा जा सकता है। एक ओर जहां शहर में तानसेन समारोह की तैयारियां जारी हैं वहीं दूसरी ओर हस्सू खां-हद्दू खां सभागार पर नजरें इनायत हो जाएं शायद यहां हालात बदल जाएंगे।

कौन थे हस्सू खां-हद्दू खां
हस्सू-हद्दू खां ग्वालियर घराने के स्तंभ माने जाते थे और ग्वालियर घराने की ख्याल गायकी के विकास का श्रेय भी इन्हीं को जाता है। इनमें हस्सू बड़े थे और हद्दू छोटे। हस्सू-हद्दू खां नत्थन पीर बख्श के वंशज थे। ये पहले लखनऊ में रहते थे और पिता की मृत्यु के बाद दादा ने पालन-पोषण किया। बाद में ग्वालियर में बस गए और यहीं से ग्वालियर घराने का सूत्रपात हुआ। 2012 में सांसद नरेंद्र सिंह तोमर ने इस सभागार का लोकार्पण किया था और इसके साथ-साथ राजा मानसिंह कला एवं संगीत विवि के ध्रुपद केंद्र का भी शुभारंभ किया गया था। यहीं पर हस्सू-हद्दू खां की मजार भी बनी हुई है।

सभी को परेशानी होती है
हस्सू-हद्दू खां सभागार के अंदर की व्यवस्थाएं तो हम करते हैं। इसमें यहां के पार्क का भी ध्यान रखा जाता है। लेकिन बाहर की व्यवस्था हमारे बूते के बाहर है। बाहर अतिक्रमण, गंदगी, कचरा डालने जैसी कई समस्याओं से सभी को परेशानी होती है।
- अभिजीत सुखदाणे, गुरु, ध्रुपद केंद्र