11 दिसंबर 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

भ्रष्ट अधिकारियों को लेकर हाईकोर्ट का अहम फैसला, चीफ जस्टिस को भेजा मामला

MP High Court: भ्रष्ट अफसरों पर जांच के लिए अभियोजन की स्वीकृति का मामला, हाईकोर्ट ने दिखाई सख्ती....

2 min read
Google source verification
MP High Court Gwalior

MP High Court Gwalior (फोटो सोर्स: सोशल मीडिया)

MP High Court: हाईकोर्ट की युगल पीठ ने भ्रष्ट अधिकारियों की अभियोजन स्वीकृति पर अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा, सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार रोकने किसी भी लोक सेवक पर आरोपों की जांच के लिए लोकायुक्त और उप लोकायुक्त एक स्वतंत्र निकाय बनाया है। भ्रष्टाचार की जांच की अनुमति नहीं दिए जाने से लोकायुक्त अधिनियम 1981 का मूल उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। यदि लोकायुक्त किसी के खिलाफ जांच कर रहा है और अभियोजन की मंजूरी नहीं दी जाती है तो, लोकायुक्त बिना दांत का बाघ बन जाएगा।

भ्रष्ट अफसरों पर जांच के लिए अभियोजन की स्वीकृति का मामला

अभियोजन स्वीकृति को लेकर अलग-अलग बेंचों का अलग आदेश है। कोर्ट ने मामले को फुल बेंच को भेजना उचित समझा। इसके लिए इसे चीफ जस्टिस के सामने रखा जाए। दरअसल विशेष स्थापना पुलिस ने अलग-अलग भ्रष्ट अफसरों पर जांच के लिए अभियोजन की स्वीकृति मांगी थी, पर सामान्य प्रशासन विभाग ने अफसरों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी, जिससे मामले की जांच आगे नहीं बढ़ सकी। इसको लेकर विशेष स्थापना पुलिस ने 2020 में 6 याचिका दायर की, जिसमें अभियोजन स्वीकृति खारिज करने के फैसले को चुनौती दी।

हाईकोर्ट ने 22 नवंबर को बहस के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था। गुरुवार को न्यायालय में अपना फैसला सुनाते हुए मामला लार्जर बेंच को भेजा है। इसके लिए तीन बिंदु भी निर्धारित किए हैं। गौरतलब है कि 2021 व 2022 में जबलपुर व इंदौर की युगल पीठ ने अभियोजन स्वीकृति को लेकर फैसले दिए, जिसमें स्पष्ट किया कि अभियोजन स्वीकृति निरस्त करने के फैसले को विशेष स्थापना पुलिस न्यायालय में चुनौती नहीं दे सकते।

कोर्ट ने इन सवालों के जवाब के लिए मामला भेजा लार्जर बेंच में

1.क्या विशेष स्थापना पुलिस के पास किसी दोषी लोक सेवक के विरुद्ध लगाए गए आरोपों के संबंध में सामान्य प्रशासन द्वारा निरस्त की अभियोजन स्वीकृति को चुनौती देने का अधिकार है या नहीं।

2. क्या विशेष स्थापना पुलिस की भूमिका केवल मामले की जांच करने या जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने तक सीमित है।

3. क्या मध्य प्रदेश लोकायुक्त एवं उप लोकायुक्त अधिनियम 1981 और विशेष स्थापना अधिनियम 1947 को एक साथ रखकर देखा जाए तो यह धारणा बनती है कि विशेष स्थापना पुलिस मामले की जांच कर सकती है। मामले को निष्कर्ष तक पहुंचा सकता है। जिसमें अभियोजन की मंजूरी देने से इनकार करने को चुनौती देना भी शामिल है।

अभियोजन स्वीकृति बना भ्रष्ट अफसरों की ढाल

- मध्य प्रदेश में भ्रष्ट अफसरों की शिकायत आने या चालान पेश करने की कार्रवाई की जाती है तो अभियोजन स्वीकृत पर मामला अटक जाता है। चालान पेश नहीं होने से भ्रष्ट अधिकारी नौकरी जारी रहती है। वे सेवानिवृत्त भी हो जाते हैं।

-ग्वालियर क्षेत्र में 60 प्रकरण अभियोजन स्वीकृति के लिए अटके हुए है। विभाग से उनकी अभियोजन स्वीकृति नहीं मिली है।

ये भी पढ़ें: नहीं आएगी जिला अध्यक्षों की सूची, भाजपा में घमासान के चलते बदला नियुक्ति का फार्मुला

ये भी पढ़ें: भांजा लेकर आया दुल्हन, मामा बोला ये तो तुम्हारी मामी बनेगी, फिर जो हुआ वो कर देगा हैरान