scriptजब कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उठा ली तलवार, जानिए फिर क्या हुआ | Jyotiraditya Scindia raised sword worship latest news | Patrika News

जब कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उठा ली तलवार, जानिए फिर क्या हुआ

locationग्वालियरPublished: Oct 09, 2019 04:18:45 pm

Submitted by:

monu sahu

jyotiraditya scindia history : सिंधिया घराने में दशहरे का पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।

Jyotiraditya Scindia

जब कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उठा ली तलवार, जानिए फिर क्या हुआ

ग्वालियर। मध्यप्रदेश में यूं तो हर त्योहार का अपना महत्व है, लेकिन यदि चंबल संभाग में त्योहार मनाने की बात की जाए तो ग्वालियर की अपनी अलग ही बात है। जी हां हम बात कर रहे हैं सिंधिया राजपरिवार की है। वैसे तो सिंधिया राजपरिवार की कई परंपराएं हैं,लेकिन इनमें सबसे खास परंपरा है २०० साल पुरानी, जिसे सिंधिया परिवार आज भी जींवत रखे हुए हैं। दशहरे के मौके पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia ) ने मंगलवार की सुबह जय विलास पैलेस में सिंधिया राज परिवार के अनुसार विशेष पूजा अर्चना की। वे सिंधिया घराने के परंपरा के मुताबिक पारंपरिक वेशभूषा में आए थे।
यह भी पढ़ें

मैसूर जैसा था ग्वालियर के दशहरे के वैभव, आज भी राजघराना निभाता है शमी पूजन की परंपरा, देखें वीडियो

उनके साथ उनके परिवार के सदस्य भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए। इसके बाद वह सीधे राजसी पोशाक में गोरखी स्थित अपने कुलदेवता की पूजा करने देवघर पहुंचे, जहां उन्होंने पूजा-अर्चना की। सिंधिया के साथ उनके पुत्र महाआर्यमन भी थे। इसके बाद शाम को २०० साल पुरानी अपनी परंपरानुसार पूजा के लिए मांढरे की माता पर पहुंचे। यहां पुलिस बैंड ने परंपरागत अगवानी की। इसके बाद विधि के साथ चबूतरे पर देव स्थापित करने के बाद उन्होंने शमी पूजन किया। पूजन उपरांत उन्होंने राजघराने की तलवार उठाई और उसे शमी वृक्ष से स्पर्श किया। स्पर्श करते ही सोने का स्वरूप मानी जाने वाली इन शमी की पत्तियों को सरदारों ने लूटा और सिंधिया और उनके पुत्र को भेंट दी।
यह भी पढ़ें

Dussehra 2019 : ज्योतिरादित्य ने शाही परंपरा के अनुसार देवघर में की पूजा, देखें वीडियो

यहां बता दें कि सिंधिया घराने में दशहरे का पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। शाम को शमी पूजा के साथ ही दशहरे के दूसरे दिन भी सिंधिया पैलेस में मेल मुलाकात का सिलसिला चलेगा। इससे पहले सुबह ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी शाही पंरपरा के अनुसार दशहरे की पूजा की। वे सुबह गोरखी बाड़ा स्थित देवघर पहुंचे,जहां उन्होंने दशहरा की विशेष पूजा की। इस दौरान ने अपने पांरपरिक भेष-भूषा में दिखाई दिए। इसके बाद वह शाम को मांढरे की माता के मंदिर के पास वाले मैदान में शमी पूजन भी किया। इस दौरान सिंधिया परिवार और मराठा सरदारों के परिवार मौजूद रहे।
यह भी पढ़ें

यहां हाथी-घोड़ों पर सवार होकर निकला करते थे राजा और सरदार, अब ऐसे मनाया जाता है दशहरा



राजसी पोशाक में करते हैं शमी पूजन
दशहरे के दिन सिंधिया राजघराने की परंपरानुसार शाम को शमी पूजन किया जाता है। इसमें राजघराने के परिवार के मुखिया द्वारा तलवार को शमी के पेड़ से स्पर्श कराया जाता है, इससे गिरने वाली शमी की पत्तियों को सिंधिया रियासत में रहे सरदार लूटते हैं, शमी की पत्तियों को सोने का प्रतीक माना जाता है। मांढरे की माता मंदिर पर लगे शमी के वृक्ष का हर साल पूजन किया जाता है। इसके लिए सिंधिया परिवार के मुखिया राजसी पोशाक पहनते हैं।
यह भी पढ़ें

Indian Air Force Day 2019 : जानिए क्यों मनाया जाता है वायुसेना दिवस, कहां से लिया है भारतीय वायुसेना का आदर्श वाक्य



Jyotiraditya Scindia
पूजन के दौरान पहनते हैं सौ गज की पगड़ी
शमी पूजन के दौरान पगोटे (पगड़ी) को पहना जाता है। महाराष्ट्रीयन पद्धति से बनी ये पगड़ी सौ गज की होती है। इसे राजा और सरदार पहनते हैं।
जिस तलवार से शमी के पेड़ को छुआ जाता है, उसका मूठ रत्न जडि़त होता है। साथ ही पूजन करने वाले सदस्य गले में मोतियों का कंठा पहनते हैं। उनकी पोशाक के रूप में अंगा, जाकेट, चूड़ीदार पजामा और जयपुरी जूतियां भी शामिल रहती हैं।
यह भी पढ़ें

तीसरे बच्चे को लेकर पति को था ‘शक’, DNA से हुआ ‘कैरेक्टर टेस्ट’ तो निकला ये

आठवीं पीढ़ी का नेतृत्व कर रहे ज्योतिरादित्य
ज्योतिरादित्य सिंधिया शाम को परंपरागत वेश-भूषा में शमी पूजन स्थल मांढरे की माता पर पहुंचेगे। वहां लोगों से मिलने के बाद शमी वृक्ष की पूजा की जाती है। इसके बाद म्यांन से तलवार निकालकर जैसे ही शमी वृक्ष को लगाते है। हजारों की तादाद में मौजूद लोग पत्तियां लूटने के लिए टूट पड़ते हैं। लोग पत्तियों को सोने का प्रतीक के रूप में ले जाते हैं।
सुबह निकलती थी सवारी
महल से जुड़े एसके कदम ने बताया कि दशहरे पर शमी पूजन की परंपरा सदियों पुरानी है। उस वक्त महाराजा सुबह तकरीब 8.30 से 9 बजे अपने लाव-लश्कर व सरदारों के साथ महल से निकलते थे। फिर सवारी गोरखी पहुंचती थी। यहां देव दर्शन बाद यहां शस्त्रों की पूजा होती थी। दोपहर तक यह सिलसिला चलता था। महाराज आते वक्त बग्घी पर सवार रहते थे। लौटते समय हाथी के हौदे पर बैठकर जाते थे। शाम को शमी वृक्ष की पूजा के बाद महाराज गोरखी में देव दर्शन के लिए जाते थे।
Jyotiraditya Scindia
1811 में शुरू हुआ चल समारोह

सिंधिया परिवार के राज पुरोहित चंद्रकांत शेंडे के मुताबिक 1811 में दौलतराव सिंधिया ने दशहरे पर चल समारोह की शुरुआत की थी।


चल समारोह जयविलास पैलेस से निकाला जाता था और गोरखी प्रांगण में होते हुए वापस पैलेस पर पहुंचकर संपन्न होता था। चल समारोह सुबह 9.30 बजे शुरू होता था, जिसमें हाथी, घोड़े, बघ्घी, पालकी आदि के साथ सेना चलती थी।

गोरखी देवघर पहुंचने पर कुलदेवता, शस्त्रों के साथ राज चिह्न की पूजा की जाती थी। दौलतराव के बाद के ङ्क्षसधिया राजाओं ने भी इसे कायम रखा और ये समारोह आपातकाल तक निकाला जाता रहा।

शहर में जहां से भी यह निकलता था, लोग घरों से निकलकर इसका स्वागत करते थे। चल समारोह में निकलने वाले हाथियों को हौदे (सिंहासन) से सजाया जाता था, जिस पर राजा बैठते थे और घोड़ों पर सरदार सवार रहते थे।
दशहरा दरबार में पहुंचे थे लोग
संग्राम कदम,केशव पांडे के मुताबिक दशहरे पर जयविलास पैलेज के ऊपर दरबार हॉल में दशहरा दरबार लगता था। इसमें जमींदार व सरदार महाराज से मिलने के लिए आते थे। महाराज सरदार परिवारों से मिलने के बाद लोगों से मिलते थे। रिवाज के रूप में उपहार देने की परंपरा भी थी।

ट्रेंडिंग वीडियो