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रथ पर सवार होकर निकले श्री लक्ष्मीनारायण,भजनों पर थिरके श्रद्धालु

रथ पर सवार होकर निकले श्री लक्ष्मीनारायण,भजनों पर पर थिरके श्रद्धालु

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रथ पर सवार होकर निकले श्री लक्ष्मीनारायण,भजनों पर थिरके श्रद्धालु

ग्वालियर। जनकगंज स्थित श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर की ओर से छत्री मंडी प्रांगण में श्री वैभव लक्ष्मी यज्ञ का आयोजन कराया जा रहा था। पूर्णाहुति के साथ मंगलवार को यज्ञ का समापन किया गया। पूर्णाहुति में ढोली बुआ महाराज, कैबिनेट मंत्री नारायणङ्क्षसह कुशवाह शामिल हुए। इस मौके पर भगवान श्री लक्ष्मीनारायण की शोभायात्रा निकाली गई। भगवान श्री लक्ष्मीनारायण रथ पर सवार होकर निकले। जगह-जगह फूलमाला एवं पुष्प वर्षा के साथ उनका स्वागत किया गया। बैंडबाजे की ध्वनि पर भगवान का स्तुति गायन किया गया।

श्रद्धालु नाचते गाते शोभायात्रा में शामिल हुए। यह शोभायात्रा यज्ञशाला से शुरू हुई और नई सड़क पाटनकर बाजार होते हुए मंदिर पहुंची। यज्ञ में शामिल हुए संतों एवं आचार्यों ने श्रद्धालुओं को भगवान नारायण को प्रिय तुलसी दल समर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त करने को कहा। श्रद्धालुओं ने भगवान को तुलसी, फूल मालाएं समर्पित कीं।

'नंद के आनंद भयो...पर थिरके श्रद्धालु
इसके साथ ही शहर के सनातन धर्म मंदिर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया। कथा वाचक प्रज्ञा भारती ने भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कथा का वर्णन करते हुए भजनों की प्रस्तुति दी। नंद के आनंद भयो जय कन्हेया लाल की,भजन पर पांडाल में बैठे श्रद्धालु झूम उठे। कई श्रोता जमकन थिरके। प्रज्ञा भारती ने श्रीमद्भागवत कथा का वर्णन करते हुए श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया। उन्होंने बाल सखाओं के साथ माखन चोरी की कथा सुनाई। इससे पहले कथा वाचक भारती ने निगुण और सगुण ब्रह्म की भक्ति के बारे में बताया।

उन्होंने बताया िक जैसे कटोरी और ग्लास में रखे पानी को फ्रीज में रखने पर अलग-अलग आकार के बर्फ के गोल में बदल जाता है। इसी तरह भक्ति निगुण की करो या फिर सगुण की। दोनों ही भक्ति के मार्ग को खोलते हैं। उन्होंने कहा कि भगवान सर्व व्यापी है। इसलिए हर पल ईश्वर का स्मरण करते रहे। जब आप स्मरण करेंगे तो वो अपनी आवाज जरुर सुनेंगे।

उन्होंने भौतिकवादी सुख सुविधाओं पर व्यंग्य करते हुए कहा कि मनुष्य के हाथ गले में और कपड़ों में चैन है, लेकिन जीवन में चैन नही है। इसी तरह घर सारे सुख-सुविधाएं होने के बाद भी मानव के जीवन में संतोष नहीं है। उन्होंने कहा कि जो हरिभजन में लीन हो जाता है उसके जीवन में आनंद ही नहीं परमानंद होता है।