
ग्वालियर। हर साल करीब 2 हजार करोड़ के काले पत्थर के वैध-अवैध कारोबार पर राजनीतिक दलों से संरक्षित कारोबारी या फिर पुराने खनन व्यवसाइयों ने कब्जा जमा लिया है। सामान्य लोग इस क्षेत्र में पत्थर निकालना भी चाहें तो सिंडिकेट टिकने नहीं देता है। स्थिति यह है कि अकेले बिलौआ माइनिंग क्षेत्र में 60 फीसदी खदानें अंतरण के आधार पर क्रेशर कारोबारियों के कब्जे में हैं। इन कारोबारियों में वर्तमान में प्रदेश सरकार के मंत्री सहित केन्द्रीय राजनीति में अच्छा खासा मुकाम बनाए नेताओं के समर्थक शामिल हैं। माइनिंग विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार अधिकतर पुरानी खदानें किसी न किसी सामान्य व्यक्ति के नाम पर रही हैं, जबकि वर्ष 2009 से लेकर 2017 तक जितनी भी खदानें हुई हैं, उनमें से अधिकतर खदानें रसूखदार लोगों ने कराई हैं। बाद में पट्टा धारकों ने अंतरण के नाम पर या तो खदान बेच दी है या फिर किसी अन्य क्रेशर संचालक से पार्टनरशिप करके रकम वसूल कर चुप्पी साध ली है। इनमें से छह खदानें तो कलेक्ट्रेट में पदस्थ रहे एक सेवानिवृत कर्मचारी ने तो अपने बेटे-बहू, भाई आदि के नाम पर लीज कराने के बाद बेच दी थीं। इसके अलावा मथुरा क्षेत्र से आए एक कारोबारी ने 2014 से 2017 के बीच लीज के सबसे ज्यादा आवेदन लगाए हैं। वर्तमान स्थिति यह है कि जिले के लगभग हर क्षेत्र में परोक्ष या अपरोक्ष रूप से इस कारोबारी का आवेदन लगा है। इसके साथ ही प्रदेश सरकार में मंत्री के भाई और राष्ट्रीय राजनीति में अच्छा खासा रसूख रखने वाले एक नेता के करीबी पत्थर के कारोबार में ग्वालियर के अलावा छतरपुर, भांडेर सहित दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में भी अपनी जड़े जमा चुके हैं।
यह है एक खदान की कीमत
-पत्थर के कारोबारियों ने लीज धारकों से 0.05 हैक्टेयर की खदान को खरीदने में एक करोड़ पचास लाख रुपए तक खर्च किए हैं। जबकि दो हैक्टेयर या इससे अधिक रकवे की खदानों को खरीदने में पचास लाख रुपए से लेकर एक करोड़ पचास लाख रुपए प्रति हैक्टेयर तक खर्च किये गए हैं। खदान का अंतरण करने से पहले इस कारोबार में गहरे तक जड़े जमाए कारोबारी जगह के हिसाब से कीमत लगाकर अंतरण की शर्तों को पूरा किया है।
सरकारी नियम ही बना बचाव का साधन
-खदानें हथियाने के लिए माइनिंग कारोबारियों ने अंतरण के नियम को ही सरकारी कार्रवाई से बचाव के लिए इस्तेमाल किया है।
-राजनीति के जरिए कारोबार में आए खनिज कारोबारियों ने आर्थिक रूप से कमजोर विश्वासपात्र लोगों को खदान का पट्टा हासिल करने के लिए टूल बनाया है।
-खदान की लीज होने के बाद लीजधारक से सिर्फ शुरुआती शुल्क जमा करवाया जाता है और सुनियोजित रूप से उत्खनन से संबंधित कोई गतिविधि नहीं की जाती है।
-लगातार करीब तीन साल तक खदान बंद रखने के बाद पट्टा धारक से शासन को काम करने में असमर्थता का आवेदन दिलवाया जाता है। इसके लिए सबसे बड़ा आवेदन बाजार की अनुपलब्धता को सहारा बनाया जाता है।
-असमर्थतता का आवेदन मिलने के बाद खनिज विभाग पट्टा धारक से काम करने में अक्षम होने का शपथपत्र लेता है। इसके साथ ही सहमति भी ली जाती है।
-शपथ पत्र जमा होने के बाद सिंडिकेट में शामिल तीन से चार लोग अंतरण के लिए आवेदन लगाते हैं।
-अंतरण आवेदन में 40 हजार रुपए प्रति वर्ष के हिसाब से तीन साल का शुल्क करीब 1 लाख 20 हजार रुपए जमा कराने की शर्त को स्वीकार किया जाता है, इसके बाद दस्तावेजी औपचारिकताएं पूरी होने के साथ ही वैध तरीके से खदान सरकार से लीज धारक और लीज धारक से खनन कारोबारी के हिस्से में चली जाती है।
इतना निकल रहा पत्थर
-बिलौआ, पारसेन, बेरजा सहित अन्य स्थानों को मिलाकर करीब 752 लाख घनमीटर काला पत्थर हर साल निकालकर गिट्टी के रूप में विक्रय हो रहा है।
यहां हैं खदानें
-बिलौआ, रफादपुर, लखनपुरा, सूखा पठा, बेरजा, पारसेन, जखौदा, जखारा, कर्रा, गंगापुर, लदेरा, पदमपुर खेरिया, बेहटा सहित अन्य स्थानों पर करीब 185 खदानें हैं। इनमें से 81 खदानों पर लीज कराने वालों ने क्रेशर नहीं लगाकर या तो खदान बेच दी या फिर किसी रसूखदार को पार्टनर बनाकर खदान अंतरित कर दी है। अकेले बिलौआ क्षेत्र में ही 42 क्रेशर अंतरण के आधार पर संचालित है।
ऐसे भी होती है कमाई
-लीज कराने वाले क्रेशर न लगाकर 150 रुपए प्रति टन के हिसाब से पत्थर बेच रहे हैं। इससे बगैर क्रेशर लगाए ही अच्छी खासी कमाई लीज धारक के हिस्से में आ जाती है, जबकि सरकार को यूनिट न लगाने का झांसा देकर गुमराह कर दिया जाता है। निमयानुसार पत्थर की खदान की लीज क्रेशर आधारित दी जाती है।
यह उत्पादन कर गणित
-करीब 47 बड़े क्रेशरों पर हर महीने 60 हजार यूनिट से लेकर 3 लाख 64 हजार यूनिट तक बिजली की खपत है।
-दो यूनिट बिजली में एक टन गिट्टी का
निर्माण होता है।
-बिजली की खपत के हिसाब से देखें तो एक बड़ा क्रेशर एक महीने में करीब 1 लाख 75 हजार टन गिट्टी बना रहा है।
राजस्व जमा करने में भी छल
-सरकार क्रेशर संचालकों से रॉयल्टी घनमीटर में लेती है।
-क्रेशर संचालक बाजार में घनफीट के हिसाब से बिक्री करते हैं।
-खनिज के जानकारों के हिसाब से अगर ईमानदारी से रॉयल्टी ली जाए तो सरकार के खजाने में 200 करोड़ रुपए अतिरिक्त पहुंच सकेंगे। जबकि वर्तमान में यह औसतन 80 करोड़ रुपए के आसपास सिमटा है।
"क्षेत्र में आने के बाद से लगभग पूरा समय कोविड-19 संक्रमण की रोकथाम में ही निकल रहा है। माइनिंग को लेकर फोकस है, रेत के अवैध उत्खनन और परिवहन पर कार्रवाई जारी है। प्रशासन, वन, पुलिस के अधिकारियों की संयुक्त टास्क फोर्स अपना काम कर रही है। पत्थर के उत्खनन और गिट्टी उत्पादन को लेकर अलग से जानकारी मांगी जाएगी।"
कौशलेन्द्र विक्रम सिंह, कलेक्टर
Published on:
22 Jul 2020 05:43 pm
बड़ी खबरें
View Allग्वालियर
मध्य प्रदेश न्यूज़
ट्रेंडिंग
