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ऑनलाइन गेमिंग बिगाड़ रहा बचपन… बच्चों में बढ़ी हिंसा, सनक व हाई बीपी

मोबाइल और ऑनलाइन गेमिंग की बढ़ती दीवानगी बच्चों का बचपन निगल रही है। छोटी उम्र में सोशल मीडिया और गेम्स का नशा उन्हें मानसिक तौर पर जल्दी बड़ा बना रहा

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ग्वालियर. मोबाइल और ऑनलाइन गेमिंग की बढ़ती दीवानगी बच्चों का बचपन निगल रही है। छोटी उम्र में सोशल मीडिया और गेम्स का नशा उन्हें मानसिक तौर पर जल्दी बड़ा बना रहा है। मनोरोग विशेषज्ञ इसे बेहद खतरनाक मानते हैं। उनके मुताबिक, मोबाइल की लत बच्चों में सहनशक्ति कम कर रही है—गेम रोकने पर वे चिड़चिड़ाते, खीझते और कई बार आक्रामक भी हो जाते हैं। ऐसे में कुछ बच्चे हाई बीपी का शिकार भी हो रहे हैं। यह स्पष्ट संकेत है कि वे डिजिटल एडिक्शन के शिकार हो चुके हैं। कई माता-पिता ने इस लत को बीमारी समझकर बच्चों का उपचार भी करवाया है।

डोपामिन एडिक्शन डॉक्टर दे रहे चेतावनी

मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है कि 10 से 15 वर्ष के बच्चे मोबाइल के सबसे बड़े एडिक्ट बन रहे हैं। इससे उनमें भूख और नींद की कमी, याददाश्त कमजोर होना और व्यवहार में चिड़चिड़ापन जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।

घर-घर की कहानी-मोबाइल की गिरफ्त में होते जा रहे बच्चे

पढ़ाई के बहाने शुरू हुई लत, बाद में बनी आदत : शिक्षक प्रकाश शर्मा बताते हैं कि कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई के चलते बच्चों को स्मार्टफोन दिया गया। इसके बाद मोबाइल उनकी दिनचर्या में इस कदर शामिल हो गया कि अब वे किताबें-कॉपी से दूर होते जा रहे हैं। बच्चे थोड़ा लिखने पर भी ऊब जाते हैं और टोकने पर चिड़चिड़ाते हैं। पढ़ाई का स्तर लगातार गिर रहा है।

ज्योति निवासी रामदास घाटी, बताती हैं कि उनकी बेटी आराध्या कोरोना काल में मोबाइल गेम्स की आदी हो गई। हालात यह हैं कि मोबाइल हाथ में हो तो उसे खाने, नहाने या ब्रश करने की भी सुध नहीं रहती। रोका जाए तो खीझने लगती है।

बहोड़ापुर निवासी सुरेंद्र राजौरिया कहते हैं—घर में नाती-पोते हैं, और तीनों की पहली मांग हमेशा मोबाइल ही होती है। बाहर खेलने-घुमाने ले जाएं तो कुछ देर में ऊब जाते हैं। खाने की थाली के पास भी फोन ही रहता है। फोन हटाया तो खाना ही छोड़ देते हैं। यह समस्या अब हर घर की कहानी बन चुकी है।

एक्सपर्ट व्यू…

दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मोबाइल बिल्कुल न दें, स्क्रीन टाइम तय करें

मोबाइल एडिक्शन के कई मामले इलाज के लिए आ रहे हैं। माता-पिता अक्सर शुरुआत में इसे समस्या नहीं मानते, लेकिन हालात बिगडऩे पर डॉक्टरों के पास पहुंचते हैं। ये एक तरह का डोपामिन एडिक्शन भी है। डॉ. अग्रवाल की सलाह है कि दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मोबाइल बिल्कुल न दें, बड़ी उम्र के बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम तय करें, खाने के दौरान मोबाइल पूरी तरह बंद, अभिभावक खुद भी मोबाइल उपयोग पर नियंत्रण रखें। अगर बच्चा ज्यादा जिद कर रहा है तो उसे समझाइश दें।
प्रोफेसर डॉ. अतुल अग्रवाल, मनोरोग विभाग के प्रोफेसर, जीआरएमसी