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देश में 90 फीसदी  लोगों को अच्छा नहीं लगा सनातन विरोधी बयान: विद्यानंद सरस्वती

सनातन धर्म आज भी है और आगे भी रहेगा। जो तत्व चैतन्य रूप से विद्यमान रहा है, उसे कोई नष्ट नहीं कर सकता है

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देश में 90 फीसदी  लोगों को अच्छा नहीं लगा सनातन विरोधी बयान: विद्यानंद सरस्वती

देश में 90 फीसदी  लोगों को अच्छा नहीं लगा सनातन विरोधी बयान: विद्यानंद सरस्वती


ग्वालियर. हमारे सनातन धर्म की जड़ें इतनी गहरी और मजबूत हैं कि उसे खत्म करने के बयानों से उन लोगों के अपने सिद्धांतों की ही हानि हो रही है। देश के 90 फीसदी लोग ऐसे हैं जिन्हें यह बयान अच्छा नहीं लगा है। मेरा मानना है कि यह लोग ऐसे बयान देकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का प्रचार कर रहे हैं। रही बात सनातन धर्म की तो यह पहले था, आज भी है और आगे भी रहेगा। जो तत्व चैतन्य रूप से विद्यमान रहा है, उसे कोई नष्ट नहीं कर सकता है। यह बात स्वामी विद्यानंद सरस्वती ने पत्रिका से बातचीत के दौरान कही। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी को मैं में राष्ट्रीयता की भावना है। 2024 ही नहीं 2029 में भी मोदी सरकार ही बने। स्वामी विद्यानंद सरस्वती यहां श्रीमद्भागवत कथा का वाचन करने आए हैं।

हिंदुत्व ठीक हो जाए, रामराज्य अपनेआप आ जाएगा
ङ्क्षहदुत्व और रामराज्य की बात पर उन्होंने कहा कि बस पहले ङ्क्षहदुत्व ठीक से हो जाए, राम राज्य तो अपने आप आ जाएगा। युवाओं के धर्म-संस्कृति से भटकाव के सवाल पर उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि आज का युवा धर्म की तरफ आकर्षित हो रहा है। उनकी प्रवृत्ति दिखावे वाली नहीं है, लेकिन विवेक से उनका झुकाव धर्म की ओर है।

राजनेताओं की देन है इंडिया-भारत विवाद
देश में हो रही इंडिया और भारत की चर्चा पर उन्होंने कहा कि ये विवाद तो राजनेताओं की देन है। भारत तो भारत ही है और भारत ही रहेगा। राजा भरत के नाम पर इस देश का नाम भरत पड़ा था। ज्ञानवापी पर उन्होंने कहा, जो हो रहा है, सब अच्छा हो रहा है। धीरे-धीरे सब बाहर खुलकर आता जा रहा है।


जीवन में सत्संग जरूर करना चाहिए
उन्होंने कहा कि जो खुद के सम्मान की परवाह किए बगैर दूसरों के सम्मान की रक्षा करते हैं, उनके मान की ङ्क्षचता भगवान करते हैं। व्यक्ति को जीवन में सत्संग जरूर करना चाहिए, इससे व्यक्ति मोह रहित हो जाता है। कितना किसके संग रहना है, उसका क्या परिणाम हो रहा है, यह आपको स्वयं तय करना होगा। जिसका कर्म धर्म के लिए न हो, और जिससे वैराग्य उत्पन्न न हो, वो तो जीवित ही मृतक के समान हैं। साधक के जीवन में जब नविधा भक्ति आ जाती है तो उसके जीवन में ज्ञान का उदय हो जाता है।

विकारों की जला देती है भक्ति
किसी के सामने सिर झुकाने से पहले एक हजार बार सोचो और विचार करो कि जिसके सामने हम सिर झुका रहे हैं वो उसके लायक भी या नहीं। यह विचार स्वामी विद्यानंद सरस्वती ने रंगमहल में श्रीमद्भागवत कथा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि विभीषण ने राम की शरण ली तो वह लंकेश हो गया, लेकिन राम स्वयं समुद्र की शरणागत हुए,लेकिन वो उस लायक नहीं था। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार जठारग्नि उदर के भीतर अग्नि प्रदीप्त कर भोजन को पचा देती है, उसी तरह भक्ति विकारों को जलाकर चित्त को कुंदन की तरह दमका देती है। काम कब हमारे अंतस में प्रवेश कर जाता है हमें पता भी नहीं चलता है। सिर्फ शरीर प्राप्ति की इÓछा ही काम नहीं हैं। सांसारिक कामनाएं इसी श्रेणी में आती हैं, जब हम काम से मुक्त हो जाते हैं तो सुख और दुख दोनों में ही सम पर बने रहते हैं।


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