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डेढ़ सौ साल पुराना है एमपी का ये सराफा बाजार, 94 फीसदी खरे आभूषण ही बेच सकते थे व्यापारी

Patrika Shubhotsav 2024 भरोसे के बाजार सीरीज में आज हम आपको लेकर चल रहे हैं ग्वालियर के महाराज बाड़ा स्थित सराफा बाजार में, इसका रोचक इतिहास ही इसे बनाता है भरोसे का बाजार...

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Patrika Shubhotsav 2024

Patrika Shubhotsav 2024: ग्वालियर में महाराज बाड़े से जुड़ा सराफा बाजार शहर में सोने-चांदी का प्रमुख बाजार है। आम दिनों में तो यहां खरीदारों का जमघट रहता ही है लेकिन, त्योहारों के सीजन में इनकी तादाद काफी बढ़ जाती है। करीब डेढ़ सौ वर्ष से भी अधिक पुराने सराफा बाजार ने कई पड़ाव देखे हैं। भले ही समय बदल चुका हो पर आज भी ग्राहक यहीं आकर गहनों की खरीदारी करने में विश्वास करते हैं।

फैक्ट

- छोटे-बड़े करीब 500 से ज्यादा व्यापारी
-1860 के करीब शुरू हुआ बाजार

सचिव ने पूरे बाजार के लिए बनाया था नियम

बताया जाता है कि पहले अधिकांश सोने-चांदी के गहने सराफा बाजार में ही कारीगरों द्वारा बनाए जाते थे। व्यापारियों को ठोस सोने-चांदी के गहने तैयार करने पर अधिक ध्यान रहता था। सोना-चांदी व्यवसायी संघ के अध्यक्ष पुरुषोत्तम जैन ने बताया कि सराफा बाजार के तत्कालीन सचिव टीकमचंद बाफना ने पूरे बाजार के लिए एक नियम बना दिया था कि वही दुकानदार सोनेे के गहने बेच पाएगा जिसकी शुद्धता 94 फीसदी या उससे अधिक होगी। इसकी जांच भी सराफा बाजार के सचिव के यहां करवानी पड़ती थी।

1947 में बनी सराफा एसोसिएशन

सोना-चांदी व्यवसायी संघ को 1928 में बनाया गया था। वैधानिक तौर पर यह संस्था वर्ष 1947 में अस्तित्व में आई जब इसका रजिस्ट्रेशन हुआ।

दीपावली पर महत्व

सिंधिया रियासतकाल में यहां कुछ लोगों को दुुकानें (चबूतरे) आवंटित किए गए थे। उस समय यहां करीब 50 सोने-चांदी की दुकानें हुआ करती थी, धीरे-धीरे इस जगह का नाम सराफा बाजार पड़ गया। सोने-चांदी का बाजार होने के कारण दीपावली के त्योहार पर इस बाजार का महत्व काफी बढ़ जाता है।

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