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बलात्कार के आरोपी को जमानत की शर्त, दो फलदार पौधे लगाकर उनकी देखभाल करेगा

हाईकोर्ट ने कहा-यह प्रयास केवल एक वृक्ष के रोपण का प्रश्न न होकर बल्कि एकविचार के अंकुरण का

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बलात्कार के आरोपी को जमानत की शर्त, दो फलदार पौधे लगाकर उनकी देखभाल करेगा

बलात्कार के आरोपी को जमानत की शर्त, दो फलदार पौधे लगाकर उनकी देखभाल करेगा

ग्वालियर. बलात्कार के आरोपी को दो फलदार पौधे लगाकर उनकी देखभाल औैर सुरक्षा व्यवस्था करने की शर्त पर जमानत दी गई। उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ में जस्टिस आनंद पाठक ने जमानत याचिका स्वीकार की। जस्टिस ने कहा कि आरोपी फल देने वाले या नीम-पीपल के पौधे रोपेगा। आवेदक का यह कर्तव्य है कि पौधरोपण के साथ पौधपोषण भी करे।
याचिकाकर्ता को पौधे लगाने का तरीका भी सुझाया गया। बताया गया कि विशेष रूप से तीन-चार फीट के पौधे लेकर उनको तीन से पांच फीट का गड्ढा करके रोपा जाए जिससे वह शीघ्र विकसित हो सकें। संभव हो तो तपोवन नर्सरी ग्वालियर, वन विभाग से पौधे लेकर रोपें। याचिकाकर्ता को रिहा किए जाने के 30 दिन में आदेश की अनुपालना करनी होगी। इसके लिए पौधरोपण के सभी फोटो प्रस्तुत करना होंगे। बता दें कि याचिकाकर्ता को 28 फरवरी 2020 को विदिशा से 376 सहित अन्य धाराओं में गिरफ्तार किया गया था। याचिकाकार्ता के वकील ने कहा, उसके खिलाफ झूठा मामला दर्ज किया गया है।


जरा सी लापरवाही भी नजरअंदाज नहीं होगी
जस्टिस पाठक ने कहा, वृक्षों की प्रगति पर निगरानी रखना विचारण न्यायालय का कर्तव्य है, क्योंकि पर्यावरण क्षरण के कारण मानव अस्तित्व दांव पर है और न्यायालय अनुपालन के बारेे में आवेदक द्वारा दिखाई गई किसी भी लापरवाही को नजरअंदाज नहीं कर सकता है। इसलिए आवेदक अनुपालन के संबंध में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करे। इसकी एक संक्षिप्त रिपोर्ट प्रत्येक तीन माह में रखी जाएगी। पौधरोपण में या उनकी देखभाल में आवेेदक की ओर से की गई कोई भी चूक आवेदक को जमानत का लाभ लेनेे से वंचित कर सकती है। आवेदक को अपनी पसंद के स्थान पर इन पौधों को रोपने की स्वतंत्रता होगी। वह इन रोपेे गए पेड़ों की ट्री गार्ड या बाड़ लगाकर सुरक्षित कर सकता है या फिर उनके सुरक्षा उपायों का खर्च वहन कर सकता है।


यह निर्देश एक परीक्षण के तौर पर दिया गया है
न्यायालय ने यह निर्देश एक परीक्षण के तौर पर दिए हैं, ताकि हिंसा और बुराई के विचार का प्रतिकार, सृजन एवं प्रकृति के साथ एकाकार होने में सामंजस्य स्थापित किया जा सके। अभी मानव अस्तित्व के आवश्यक अंग के रूप में दया, सेवा, प्रेम एवं करूणा की प्रकृति को विकसित करने की आवश्यकता है क्योंकि यह मानव जीवन की मूलभूत प्रवृतियां हैं और मानव अस्तित्व को बनाए रखने के लिए इनका पुनर्जीवित होना आवश्यक है। यह प्रयास केवल एक वृक्ष के रोपण का प्रश्न न होकर बल्कि एकविचार के अंकुरण का है।