
20 साल से रामलीला में यह किरदार निभा रहे ‘शरीफ खान’, कुछ ऐसी है इनकी कहानी
जयसिंह गुर्जर@ श्योपुर/ग्वालियर। ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान...,राष्ट्रपिता महात्मा गांधी बापू का ये प्रिय भजन भले ही आज के दौर में सांप्रदायिकता की आढ़ मेंं छिप रहा हो, लेकिन कई ऐसे भी लोग हैं, जो सांप्रदायिकता से कोसों दूर सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल बने हुए हैं। ऐसे ही हैं मंचीय कलाकार हैं शरीफ खान, जिन्होंने भगवान राम की लीला को ही अपनी आजीविका बना लिया है। वे बीते 20 सालों से रामलीलाओं में एक पेशेवर कलाकार के रूप में विविध चरित्र भूमिकाएं निभा रहे हैं। वर्तमान में श्योपुर की 70वीं रामलीला में वे अपने अभिनय को जीवंत कर रहे हैं।
मुरैना जिले के कैलारस निवासी और हाल में ग्वालियर में रहने वाले शरीफ खान को धार्मिक वर्जनाओं को तोड़ते हुए अपनी कला के धर्म को जी रहे हैं। अपने पिता से पुश्तैनी काम के रूप में मिले शरीफ को इस काम में काफी अच्छा लगता है, यही वजह है कि उन्होंने रामलीला को ही अपना व्यवसाय बना लिया। जिसके चलते उन्हें पूरे साल श्योपुर सहित देश और प्रदेश में कहीं न कहीं रामलीलाओं में अभिनय करने को बुकिंग मिलती रहती है।
शरीफ खान यूं तो रामलीला के किसी भी कैरेक्टर का रोल प्ले कर सकते हैं, लेकिन ज्यादातर वे महिला प्रधान भूमिका में ही नजर आते हैं। उन्हें रामचरित मानस की न केवल पूरी जानकारी है बल्कि कई चौपाईयां और दोहे तो उन्हें कंठस्थ भी हो चुके हैं। यही नहीं किसी भी भूमिका के मंचन के लिए जब मंच पर उतरते हैं तो पहले भगवान का नाम भी लेेते हैं। श्योपुर में चल रही 70वीं रामलीला में शरीफ खान केवट रानी सहित कई अन्य भूमिकाएं निभा चुके हैं।
सभी धर्मों का करता हूं सम्मान
शरीफ खान के मुताबिक पिछले 20 साल से तो वे स्वयं रामलीलाओं का मंचन कर रहे हैं और ये काम उन्हें उनके पिता जुगनू खान से मिलेे। उनके पिता जुगनू ने भी कई वर्षों तक रामलीलाओं में भूमिकाएं निभाई। धर्मों को लेकर शरीफ खान कहते हैं कि हमारे बुजुर्गों ने कभी धार्मिक भेदभाव नहीं सिखाया। मजहब भगवान ने नहीं बनाए बल्कि हम लोगों ने ही तय किए हैं, ऊपर से केवल मानव आता है और हमने उसे धर्म-जाति में बांट दिया। राम-रहीम सब एक हैं और मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूं।
Published on:
02 Oct 2019 04:50 pm
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