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दक्षिण विधायक पाठक ने उठाए सवाल… 2005 के बाद मांझी जाति को अजा प्रमाण पत्र पर रोक, फिर भी ग्वालियर विधानसभा में बनाए गए

जिले में 2005 के बाद से बाथम समाज के लोगों को मांझी जनजाति में नहीं माना गया है, इसके बाद भी शासकीय सेवा सहित अन्य लाभ लेने के लिए ग्वालियर विधानसभा में मांझी...

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दक्षिण विधायक पाठक ने उठाए सवाल... 2005 के बाद मांझी जाति को अजा प्रमाण पत्र पर रोक, फिर भी ग्वालियर विधानसभा में बनाए गए

ग्वालियर. जिले में 2005 के बाद से बाथम समाज के लोगों को मांझी जनजाति में नहीं माना गया है, इसके बाद भी शासकीय सेवा सहित अन्य लाभ लेने के लिए ग्वालियर विधानसभा में मांझी जाति के सबसे ज्यादा प्रमाण पत्र बनवाए गए हैं। जबकि ग्वालियर दक्षिण और ग्वालियर पूर्व विधानसभा में प्रमाण पत्र बनाने में पक्षपात किया गया है। जिले में एक विधानसभा के लोगों को ज्यादा फायदा दिए जाने पर दक्षिण विधानसभा के विधायक प्रवीण पाठक ने आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि मांझी समाज को ट्राइबल सर्टिफिकेट मिलता है। यह सिर्फ ग्वालियर विधानसभा के ही लोगों को ज्यादा क्यों दिए गए हैं, बाकी की विधानसभाओं के हितग्राहियों से पक्षपात क्यों किया गया है। सबसे ज्यादा प्रमाण पत्र तत्कालीन समय में ग्वालियर तहसील से ही जारी हुए हैं। तहसीलों के क्षेत्र बंटने के बाद फर्जी तरीके से अनुसूचित जन जाति प्रमाण पत्र बनवाने के मामले सामने भी आ चुके हैं।
दरअसल, अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्रों में फर्जीवाड़े की शिकायतें सामने आने के बाद हुई जांच में तीन स्थानों पर निवासरत 11 लोगों के प्रमाण पत्र फर्जी निकले थे। इन लोगों ने गोंड जनजाति के प्रमाण पत्र बनवा लिए थे। इस जनजाति की जनसंख्या जिले में लगभग शून्य होने की वजह से शक की वजह बनी। बारीकी से जांच हुई तो लश्कर क्षेत्र में मुख्य दायरा पंजी के साथ समानांंतर बनाई गई एक और दायरा पंजी मिली। इस मामले में छह वर्ष पहले सेवानिवृत हो चुके लिपिक राजाराम सेन का नाम सामने आया। सेवानिवृत लिपिक से पूछताछ हुई तो उसने बताया कि वर्ष-2011-12 में अलग से बनी जो दायरा पंजी सामने आई है, उसमें उसकी राइङ्क्षटग नहीं है। इसके बाद 11 फर्जी अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र निरस्त कर दिए गए। इन प्रमाण पत्रों के निरस्त होने के बाद अन्य फाइलों की जांच शुरू होने से पहले ही दबा दी गई। इसके बाद से अभी तक यह जांच फाइलों में ही दफन है।


इन क्षेत्रों के लोगों ने बनवाए थे फर्जी प्रमाण पत्र

गेंडे वाली सड़क
- ङ्क्षप्रस गोंड पुत्र हीरालाल का नाम 447/11-12बी-121 गोंड जनजाति मेें दर्ज था।
- राधिका गोंड पुत्री हीरालाल का नाम 448/11-12बी-121 गोंड जनजाति मेें दर्ज था।
- दिव्या गोंड पुत्री हीरालाल का नाम 449/11-12बी-121 गोंड जनजाति मेें दर्ज था।

लधेड़ी
- गौरव पुत्र मुन्नालाल का नाम 487/11-12बी-121 गोंड जनजाति मेें दर्ज था।
- प्रमोद कुमार पुत्र हेतराम का नाम 495/11-12बी-121 गोंड जनजाति मेें दर्ज था।
- वीरेन्द्र पुत्र सीताराम का नाम 496/11-12बी-121 गोंड जनजाति मेें दर्ज था।
- किशन पुत्र वासुदेव का नाम 499/11-12बी-121 गोंड जनजाति मेें दर्ज था।
- राहुल पुत्र मुन्नालाल का नाम 506/11-12बी-121 गोंड जनजाति मेें दर्ज था।
- हेतराम पुत्र किशोरीलाल का नाम 516/11-12बी-121 गोंड जनजाति मेें दर्ज था।
- विनोद पुत्र हेतराम का नाम 496/11-12बी-121 गोंड जनजाति मेें दर्ज था।

सूबे की गोठ
- हाकिम ङ्क्षसह पुत्र खरगाराम का नाम 502/11-12बी-121 गोंड जनजाति मेें दर्ज था।


एक विस को प्रमाण पत्र मिलने से सवाल खड़ा होता है
मांझी समाज को ट्राइबल सर्टिफिकेट मिलता है। सिर्फ ग्वालियर विधानसभा के लोगों को कैसे मिल गए, यह प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है। जबकि बाकी विधानसभा के लोगों को यह प्रमाण पत्र नहीं मिलता। आदिवासी समुदाय के नाम पर भी कुछ प्रमाण पत्र निरस्त होने की जानकारी सामने आ चुकी है। इसके बाद यह जांच आगे नहीं बढ़ी।
प्रवीण पाठक, विधायक-दक्षिण विधानसभा

शिकायत आने पर जांच करा लेंगे
अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र अगर किसी ने गलत तरीके से बनवाए हैं तो इसकी शिकायत आने पर जांच करा लेंगे। पूर्व में हुई जांच को लेकर संबंधित अधिकारी से जानकारी लेते हैं।
कौशलेन्द्र विक्रम ङ्क्षसह, कलेक्टर