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25 साल में ग्वालियर की स्वर्ण रेखा सिर्फ नाला ही बन सकी, नदी बनाने के सिर्फ सपने दिखाई गए

25 साल में ग्वालियर की स्वर्ण रेखा सिर्फ नाला ही बन सकी, नदी बनाने के सिर्फ सपने दिखाई गए

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25 साल में ग्वालियर की स्वर्ण रेखा सिर्फ नाला ही बन सकी, नदी बनाने के सिर्फ सपने दिखाई गए

स्वर्ण रेखा को टेम्स नदी की तरह बनाने का था वादा, दो सौ करोड़ खर्च, फिर भी नहीं चली नाव

ग्वालियर। ढाई दशक से हर चुनाव में नेता स्वर्ण रेखा नदी को टेम्स नदी की तरह विकसित कर साफ पानी बहाने और नाव चलाने का सपना दिखात रहे, लेकिन अब तक यह सपना अधूरा ही है। दो सौ करोड़ रुपए से अधिक खर्च करने के बाद भी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और फैक्ट्रियों से निकलने वाली गंदगी स्वर्ण रेखा में घुलती गई और अब यह केवल प्रदूषित नाला बनकर रह गई है। साल-दर-साल बढऩे वाले प्रदूषण ने पानी की जरूरत को पूरा करने के साथ भूजल स्तर को नियंत्रित रखने वाली स्वर्ण रेखा की सांसों को धीरे-धीरे घोंट दिया है। हर चुनाव की तरह इस विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा गरमा सकता है।

यह प्रयास हुए

"इन नेताओं ने किए थे प्रयास : स्व. शीतला सहाय, मुरैना सांसद अनूप मिश्रा, महापौर विवेक शेजवलकर, पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता"

जीवन देने वाली नदी

रियासत काल से स्वर्ण रेखा शहर को जीवन देने वाली मानी जाती रही है। सन २०११-१२ में सर्वश्रेष्ठ नदी का खिताब भी इस नदी को मिल चुका है। यह शहर की पानी की जरूरत पूरी करती थी। नदी में पानी रहने पर आसपास के कुएं बावड़ी और नलकूपों का वाटर लेवल हमेशा स्थिर रहता था। व्यावसायिक, व्यक्तिगत स्वार्थ, जमीन की हवस और नेता-अफसरों के गठजोड़ ने नदी को कीचड़ से भरे गंदे और बदबूदार नाले में तब्दील कर दिया है।

इस नदी में लश्कर और ग्वालियर क्षेत्र के 450 से अधिक छोटे-बड़े नालों की गंदगी समा रही है। नदी अगर दोबारा जीवित हो जाती तो वाटर लेवल को काबू किया जा सकता था।

यह भी बनी योजनाएं

किनारों पर सोलर प्लांट लगाकर बिजली बनाएंगे। 2009 से पहले स्वर्ण रेखा को सिंचाई विभाग के माध्यम से पक्का कराया गया। आसपास की दीवारों के साथ सरफेस भी पक्का किए जाने से पानी जमीन में बैठना बंद हो गया। बारिश का पानी व्यर्थ बहकर शहर से बाहर चले जाने से जल स्तर नीचे चला गया। पीएचई ने शहर के सीवर को बाहर ले जाने के लिए स्वर्ण रेखा के नीचे सीवर लाइन बनाई है। सीवर लाइन की गंदगी लगातार नदी में घुलती जा रही है। नदी में बने सीवर के चैंबर्स से गंदगी निकलती हुई साफ देखी जा सकती है।

तीन अफसरों के प्रयास नाकाम
तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी और पी.नरहरि ने शहर में अतिक्रमण हटाने के दौरान स्वर्ण रेखा से भी अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए थे। उनके जाने के बाद सब पहले जैसा हो गया। तत्कालीन निगमायुक्त विनोद शर्मा ने स्वर्ण रेखा को सैलानी स्पॉट बनाने की कोशिश की थी, इसके लिए नदी का बहुत सा हिस्सा साफ भी किया गया था, इसके बाद इसके दोनों किनारों पर सर्विस रोड भी डालने का प्लान बनाया था, ताकि शहर की यातायात व्यवस्था काबू में आए और नदी को प्रदूषित होने से बचाया जा सके, लेकिन आज नदी के दोनों ओर अतिक्रमण हो चुके हैं।