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आजादी दिलाने में रंगमंच ने भी निभाई भूमिका

 रंगकर्मी वाय सदाशिव ने शहर के रंगकर्मियों के साथ मिलकर 1937 में की थी नाट्य मंदिर की स्थापना

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Avdesh Shrivastava

Aug 15, 2016

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Natya Mandir, gwalior

ग्वालियर।
बात सन 1937 की थी जब देश आजाद नहीं हुआ था। देश पर अंग्रेज हुकूमत कर रहे थे। अंग्रेजों का जुल्म लगातार बढ़ रहा था। इस सबके कारण लोगों के मन में विद्रोह का गुबार उठ रहा था। लेकिन लोग सही ढंग से विरोध नहीं कर पा रहा था। उस समय रंगकर्मी वाय सदाशिव ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर दाल बाजार में नाट्य मंदिर की स्थापना की। आजादी की लड़ाई में नाट्य मंदिर ने भी रंगकर्म के जरिए अपनी भूमिका निभाई है। लोगों में देश प्रेम की भावना को जागृत करने के लिए यहां नाटकों का मंचन किया गया। जिनमें क्रांतिकारियों की वीर गाथाएं शामिल थीं। देश को जब आजादी मिली तो फिर नाट्य मंदिर में जनजागरण और सामाजिक उत्थान का रास्ता थाम लिया। इसके बाद से ही यह इसी रास्ते पर अग्रसर है।


रंगकर्मी वाय सदाशिव ने शहर के रंगकर्मियों के साथ मिलकर 1937 में की थी नाट्य मंदिर की स्थापना

नाट्य मंदिर की स्थापना आर्टिस्ट कम्बाइन द्वारा की गई। आर्टिस्ट कम्बाइन ने कई कलाकार शहर को दिए जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। इसमें डॉ. कमल वशिष्ट, बसंत परांजपे, नाना गड़वाइकर, वीरेन्द्र शर्मा, रवि उपाध्याय, विजय मोडक, आनंद पर्णिकर, प्रदीप गोस्वामी, अशोक आनंद, प्रदीप गोस्वामी, आनंद गुप्ता, धीरेन्द्र पचौरी आदि रंगकर्मी शामिल हैं। इन्होंने नाट्य मंदिर में ही रंगकर्म के जरिए अपनी कला को निखारा और पहचान बनाई।