जिला अस्पताल प्रशासन ने एक ही एमएस गायनी के रहने से व्यवस्था नहीं बिगड़े, इसके लिए प्राइवेट अस्पताल की तीन एमएस गायनी का एक पैनल बना रखा था। जिला अस्पताल में कार्यरत एमएस गायनी के अवकाश पर जाने या डेऑफ होने पर प्राइवेट अस्पताल की एमएस गायनी को ऑनकॉल बुलाकर सिजेरियन करवाए जाते थे। गौरतलब है कि 2020 में भी जिला अस्पताल प्रशासन ने आउट सोर्स के जरिए यह व्यवस्था की थी। लेकिन ज्यादा दिन तक चल नहीं पाई थी। इन आउट सोर्सेज के पैनल में शामिल चिकित्सकों का भुगतान भी अटक गया था। 2020 में जिला अस्पताल की एमसीएच यूनिट में एक भी एमएस गायनी नहीं होने के कारण करीब 46 दिन तक ताला लटका रहा था। एमएस गायनी नहीं होने के कारण परिजन साधारण प्रसव करवाने के लिए भी गर्भवती को जिला अस्पताल में लाने से कतराते थे। जिला अस्पताल में तीन माह में तीन एमएस गायनी सरकारी सेवाएं छोड़कर प्राइवेट अस्पताल से जुड़ चुकी थी।
एमसीएच यूनिट में एक माह में 125 से अधिक सर्जरी होती है। कई बार यह आंकड़ा 150 से अधिक भी पहुंच जाता है। हालांकि यह आंकड़ा 70 से भी नीचे चला गया है। वर्तमान में जिला अस्पताल में सात एनस्थेसिया चिकित्सक है और छह पीडियाट्रिशन हैं। चार एमएस गायनी में से एक ही अपनी सेवाएं निरंतर दे रही है। नियमों के अनुसार सौ बेड के एमसीएच यूनिट के लिए चार एमएस गायनी होनी चाहिए। जिला अस्पताल को लेबर रूम व जेएसएसवाई वार्ड में बेहतर व्यवस्था होने पर राज्य स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है। लेकिन अब एक ही एमएस गायनी होने के कारण प्रसव की संख्या बेहद कम हो गई है।
राज्य सरकार जिला अस्पताल में दो एमएस गायनी लगा दे तो लोगों को सर्जरी के लिए प्राइवेट अस्पताल की चरफ रूख नहीं करना पड़ेगा। प्राइवेट अस्पताल में सिजेरियन पर 35 हजार के करीब खर्च आता है।
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