जिले में पिछले करीब छह साल में राजकार्य में बाधा के कितने प्रकरण दर्ज हुए। उनमें कितनों में एफआर लगी और कितनों में समझौता आदि हुआ, इस संबंध में सूचना का अधिकार जागृति मंच के अध्यक्ष प्रवीण मेहन ने आरटीआई के तहत जिला पुलिस से जानकारी मांगी। पुलिस ने दर्ज प्रकरणों की सूचना तो दे दी। मगर प्रकरणों में एफआर, समझौते आदि की सूचना देने को लेकर हाथ खड़े कर दिए। इस संबंध में जवाब दिया कि यह सूचना अनुमानित है। संकलित नहीं है। अत: सूचना खोजकर उपलब्ध नहीं कराई जा सकती है। हालांकि पुलिस ने अनुमानित सूचना भी नहीं दी।
कितनी बार पहुंची बाधा
पुलिस से मिली सूचना के अनुसार जिले में एक जनवरी 2015 से 31 दिसम्बर 2020 मतलब करीब छह बरस में राजकार्य में बाधा पहुंचाने के 294 प्रकरण दर्ज कराए गए। सालाना औसत के हिसाब से हर वर्ष लगभग पचास बार सरकार के कार्यों में बाधा पहुंचाई जा रही है।
करनी चाहिए शेयर
कई बार देखने में आता है कि सामान्य विवाद की स्थिति में भी उसे राजकार्य में बाधा का रूप दे दिया जाता है। सरकारी कागज फाड़ दिए जैसे रटे-रटाए आरोप हैं। बहुत से प्रकरणों में समझौता भी हो जाता है। इस तरह की सूचना भी पुलिस प्रशासन को शेयर करनी चाहिए ताकि दबाव बनाने के लिए लगाए जाने वाले आरोप-प्रत्यारोप की सही स्थिति लोगों के सामने आ सके। – प्रवीण मेहन, अध्यक्ष, आरटीआई जागृति मंच।
आवाज दबाने का माध्यम
भारतीय दंड संहिता की धारा 353 ब्रिटिश हुकूमत में जन आंदोलनों के दमन के मकसद से बनाई गई थी। इसकी अब कोई जरूरत नहीं है। प्रशासनिक अधिकारी इस धारा का दुरुपयोग कर रहे हैं। यह जनता की आवाज को दबाने का माध्यम बन गया है। इसे निरस्त किया जाना जरूरी है – हनीश ग्रोवर, वरिष्ठ अधिवक्ता।