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झगड़े में गई बेटे की जिंदगी, अब बूढे कंधों पर परिवार का भार

जंक्शन की सुरेशिया बस्ती में बीपीएल परिवार के बुजुर्ग मेजरसिंह मजहबी को उसका इकलौता लाल छोड़ गया तो उसके साथ परिवार का पेट भरने का जुगाड़ भी चला गया।

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Old man Major singh with his family in Hanumangarh

Old man Major singh with his family in Hanumangarh

पृथ्वीराज शर्मा. हनुमानगढ़. जंक्शन की सुरेशिया बस्ती में बीपीएल परिवार के बुजुर्ग मेजरसिंह मजहबी को उसका इकलौता लाल छोड़ गया तो उसके साथ परिवार का पेट भरने का जुगाड़ भी चला गया। अब खुद सहित दो बुजुर्ग तथा दिवंगत बेटे बलविंद्रसिंह उर्फ बब्बू के पांच सदस्यों वाले कुल सात जनों के परिवार का पेट पालने का भार मेजरसिंह के बूढे कंधों पर आ गया है पर उसे इसका कोई रास्ता नहीं सूझ रहा। हालांकि बेटे बब्बू के बारहवें के बाद उसे अपने बाप सहित पोते-पोतियों का पेट भरने के लिए मुश्किल पर शहर में काम की तलाश में निकलना है। यही चिंता इस बुजुर्ग को सताए जा रही है।

मेजरसिंह मजबी के इकलौते बेटे बलविंद्र उर्फ बब्बू का झगड़े में घायल होने के कारण एक सितम्बर को निधन हो गया। मृतक जंक्शन के औद्योगिक क्षेत्र में चाय की रेहड़ी लगाकर पिता मेजरसिंह व दादा 90 वर्षीय गुरदेवसिंह सहित अपने पांच सदस्यों वाले परिवार की रोटी कमाता था। उसके परिवार में पत्नी सहित तीन बेटियां 12 वर्षीय अमनदीप, 10 वर्षीय किरणदीप व आठ वर्षीय कर्मजीत तथा पांच वर्ष का बेटा मनविंद्र हैं। उसके तीन बच्चे सुरेशिया के एक सरकारी स्कूल में व एक निजी स्कूल में अध्ययनरत हैं। पिता मेजरसिंह भी उम्र अधिक होने के कारण भारी काम करने की क्षमता नहीं होने के कारण छोटा-मोटा काम कर कुछ कमा लेेते थे। इससे परिवार की सहायता हो जाती थी। मेहनत-मजदूरी के अलावा इस अनुसूचित जाति के परिवार के पास आय का कोई दूसरा साधन नहीं है। अब पोते-पोतियों को पढ़ाना भी वृद्ध मेजरसिंह की जिम्मेदारी मेेें शामिल हो गया।

परिवार बना चुनौती

आठ सदस्यों वाले पूरे परिवार में केवल बलविंद्र ही कमाने वाला था। पर काल ने उसे छीन लिया तो अब उसके जाने के बाद परिवार पर संकट छा गया है तथा 60 की उम्र पार वाले बलविंद्र के पिता मेजरसिंह के सामने परिवार को पालने की चुनौती है। उसे आराम करने के दिनों में काम करना और परिवार को जिंदा रखने की जंग में जीतना होगा। सोमवार को सुरेशिया स्थित घर में मातम पर बैठे बलविंद्र उर्फ बब्बू के पिता मेजरसिंह ने भविष्य के बारे में पूछने पर जवाब दिया कि 'क्या होगा, पता नहीं।Ó बेटे का अंतिम क्रिया कर्म करने के बाद मजदूरी ही करनी है। वह बोले-कोई सहयोग करे तो शायद परिवार पालने में आसानी हो जाए।

देखना है जवान बेटे की मौत का दुख व उससे बड़े परिवार पालने के बोझ में वृद्ध मेजरसिंह के लिए राहत का रास्ता कहां से निकलता है।

वार्ड के पूर्व पार्षद निरंजन नायक ने बताया कि मृतक बब्बू के परिवार में अब कमाने वाला कोई नहीं है। इसलिए इस परिवार को सहायता की जरूरत है।

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