कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार भूमि में विद्युत चालकता ०.५ मिली म्हौज प्रति सेमी होने पर बीज का अंकुरण तीव्र से गति से होता है। इस मात्रा के कम ज्याद होने पर जमीन की अंकुरण क्षमता क्षीण यानि खत्म होने लगती है। वर्तमान में हनुमानगढ़ की जमीन में विद्युत चालकता 1.० से ५.० मिली म्हौज प्रति सेमी है। जो भविष्य में आने वाली खतरनाक स्थिति की आहट देता है। जिले में सेमग्रस्त क्षेत्र पीलीबंगा में बड़ोपल, जाखड़ावाली व गोलूवाला के आसपास में भूमि की विद्युत चालकता चार से पांच मिली म्हौज तक पहुंच गई है।
पृथ्वी की उपजाऊ क्षमता बढ़ाने के लिए बारिश जरूरी है। जमीन की उर्वरा शक्ति बनी रहे इसके लिए जरूरी है कि हर साल कम से कम 500 मिमी बारिश हो। हनुमानगढ़ में बीते एक दशक की बात करें तो औसतन सलाना २५० से ३०० मिमी बारिश भी मुश्किल से हो रही है। इसके कारण किसान खेती के लिए ट्यूबवैल के पानी से सिंचाई करते हैं। ट्यूवबैल के पानी में लवणता तथा क्षारयीता अधिक होने से जमीन की उपजाऊ क्षमता कम हो रही है।
हनुमानगढ़ जिले की मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा औसतन ०.२५ प्रतिशत रही है। जबकि ०.५ प्रतिशत तक होना चाहिए। खेती में जैविक व गोबर खाद का उपयोग कम होने तथा रासायनिक खाद का अधिक उपयोग करने के कारण ऐसी स्थिति बन रही है। जैविक खाद का अधिकाधिक उपयोग करके मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा बढ़ाई जा सकती है।
मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला हनुमानगढ़ टाउन की ओर से लगातार किसानों को जागरूक कर अपने खेतों का सॉयल हेल्थ कार्ड बनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। जिले में वर्ष २०१५-१६ में कुल ४१०६० सॉयल हेल्थ कार्ड जारी किए गए। इसी तरह वर्ष २०१६-१७ में ८५२१२, २०१७-१८ में ३१५०९९, २०१८-१९ में ३८३२०६, वर्ष २०१९-२० में ३९९७ तथा वर्ष २०२०-२१ में ५२९३ किसानों के खेतों का सॉयल हेल्थ कार्ड जारी किया गया है।
-अब तक जिले में आठ लाख से अधिक सॉयल हेल्थ कार्ड जारी किए गए हैं।
-जिले की मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा औसतन ०.२५ प्रतिशत रही है। जबकि ०.५ प्रतिशत तक होना चाहिए।
-वर्तमान में हनुमानगढ़ की जमीन में विद्युत चालकता 1.० से ५.० मिली म्हौज प्रति सेमी है। ०.५ मिली म्हौज प्रति सेमी होने पर बीज का अंकुरण तीव्र से गति से होता है।
-जमीन की उर्वरा शक्ति बनी रहे इसके लिए जरूरी है कि हर साल कम से कम 500 मिमी बारिश हो।
नमूनों की रिपोर्ट ठीक नहीं
बीते छह वर्षों में जिले में आठ लाख से अधिक सॉयल हेल्थ कार्ड जारी किए गए हैं। इनके नमूने जांचने पर जो स्थिति सामने आई है, वह खेती के लिहाज से ठीक नहीं है। इन नमूनों में जैविक कार्बन, पीएच मान, विद्युत चालकता आदि की मात्रा स्थिर नहीं है। जैविक खाद का अधिकतम उपयोग करके ही भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाया जा सकता है।
-गुरसेवक सिंह तूर, प्रभारी, मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला, हनुमानगढ़
….पत्रिका व्यू…..
खेती के लिए ठीक संकेत नहीं
कहते हैं जैसा हम अन्न खाते हैं, हमारा मन भी वैसा ही बनता है। वर्तमान समय की बात करें तो हम इतने बदनसीब हैं कि हमें शुद्ध अनाज भी नसीब नहीं हो रहा। हालात ऐसे हैं कि अधिकाधिक उत्पादन लेने की सनक में जैविक खाद को दरकिनार कर रासायनिक खाद का उपयोग किसान धड़ल्ले से कर रहे हैं। यह अलग बात है कि किसानों की अपनी-अपनी मजबूरियां है। इसे सरकारों को समझने की जरूरत है। आज के वक्त में जरूरत इस बात की है कि सरकार जैविक खेती को प्रोत्साहन देने को ठोस योजना बनाए। किसानों को जैविक खेती पर पर्याप्त अनुदान मिलने पर ही जहर मुक्त खेती खत्म हो सकती है। आज के वक्त में हमारी सेहत के लिए शुद्ध अनाज और आबोहवा क्यों जरूरी है, इस बात का पता कोरोना काल में शायद सबको लग ही गया होगा। महज एक संक्रमण से पूरी दुनियां में त्रासदी का माहौल बना हुआ है। जरा सोचिए…यदि मिट्टी की सेहत को लेकर यदि हम इसी तरह बेफिक्र रहे तो भविष्य में खेती का हाल कैसा होगा। कम बारिश और रासायनिक खाद का अधिक उपयोग करने के कारण भूमि की अंकुरण क्षमता जिस तरह से प्रभावित हो रही है, वह भविष्य के लिए ठीक संकेत नहीं है। बेहतर इसी में है कि प्रकृति के इस संकेत को समय रहते हम सभी समझ लें। नहीं तो समय आने पर प्रकृति अपने तरीके से तो सबको समझा ही देगी।