लगभग 50 लाख की लागत से हुआ था भवन का निर्माण, बाल अपराधियों को रखने की जगह नहीं है
हरदा. कम उम्र में अपराध करने वाले बच्चों के आचरण में सुधार करने के लिए शासन ने खंडवा बायपास के बाजू से लाखों रुपए की लागत से बाल सुधार गृह का निर्माण किया गया था, किंतु आज तक ऐसे नाबालिग बच्चों को इस सुविधा का लाभ नहीं मिल पाया है। इन बाल अपराधियों को इंदौर, भोपाल, इंदौर, खंडवा, बैतूल के बाल सुधार गृह भेजा जाता है। लाखों रुपए की लागत से बनाए गए इस भवन में शासकीय कार्यालय संचालित हो रहे हैं। किंतु शासन-प्रशासन द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
जानकारी के अनुसार महिला एवं बाल विकास विभाग के माध्यम से लगभग दस साल पहले खंडवा बायपास करीब ५० लाख रुपए की लागत से बाल सुधार गृह भवन का निर्माण किया गया था, ताकि जिले के बाल अपराधियों को यहां रखकर उन्हें अपराध की आदतों से दूर किया जा सके। बिल्डिंग में ५० बच्चों के रहने, खाने और जीवन जीने के लिए विभिन्न कार्यकरने के प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाना थी। किंतु भवन तैयार होने के बाद विभाग द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। बाल सुधार गृह भवन शासकीय कार्यालयों के उपयोग आ रहा है। ऐसे नाबालिग बच्चों को जिले में रखने की बजाय आसपास के जिलों के बाल सुधार गृह में भेजा जा रहा है। पुलिस कर्मियों को भी बच्चों को वहां तक पहुंचाने में काफी दिक्कतें होती हैं।
हर हफ्ते किशोर न्याय बोर्डमें आते हैं नाबालिग
जिले के तीनों ब्लाकों में विभिन्न अपराधों में पकड़ाए नाबालिग इंदौर, भोपाल, खंडवा, बैतूल के बाल सुधार गृह में रखे गए हैं। इन बाल अपराधियों को हर हफ्ते किशोर न्याय बोर्डमें पेशी के लिए लाया जाता है। इन्हें लाने के लिए हर बाल सुधार गृह से दो पुलिस कर्मियों को बस या ट्रेन से आना पड़ता है। दिनभर यहां आने के बाद लौटने के लिए इन्हें रात भी हो जाती है। इसमें बच्चों के साथ-साथ पुलिस कर्मियों को भी काफी परेशानियां होती हैं। यदि बाल गृह यहां पर ही संचालित होता तो बच्चों के परिजनों को भी राहत मिलती। किंतु इसे शुरू करने के लिए विभाग ने कोईप्रयास नहीं किए। नतीजतन लाखों रुपए का यह भवन महज सरकारी दफ्तरों के काम का रहा गया है।
वृद्धाश्रम और आरईएस विभाग भी संचालित हुआ
दस साल पहले बिल्डिंग बनने के बाद से ही इसका अलग-अलग रूप में उपयोग किया गया। काफी समय तक इसे वृद्धाश्रम के रूप में संचालित किया गया।वहीं आरईएस विभाग ने भी इसमें कब्जा जमा लिया था। नईबिल्डिंग में उक्त विभाग शिफ्ट होने के बाद अब इस भवन में बाल कल्याण समिति, महिला एवं बाल विकास विभाग का जिला महिला सशक्तिकरण कार्यालय एवं किशोर न्याय बोर्डका ऑफिस संचालित हो रहा है। इसके अलावा अन्य कमरों का उपयोग महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ी गतिविधियों के लिए किया जा रहा है। लिहाजा, कोई भी अधिकारी नाबालिगों के लिए बनाए गए बाल सुधार को चालू कराने की तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं।
निराश्रित बच्चों के लिए भी नहीं है जगह
ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता जीवित नहीं है, उनका कोईरिश्तेदार नहीं हैै या फिर जो किसी न किसी कारणवश घर से भागे हुए हैं। इस तरह के निराश्रित बच्चों को रखने के लिए भी जिले में अब तक कोईव्यवस्था नहीं हुईहै। ऐसे बच्चों के मिलने पर उन्हें बाहर के बाल गृह में भेजना पड़ रहा है। जबकि प्रदेश के अन्य जिलों में बाल गृह का संचालन हो रहा है, लेकिन यहां पर इसका अता-पता नहीं है। गत 1 अक्टूबर को दध्यंग श्रद्धा शिक्षण समिति कमताड़ा ने बाल गृह संचालन की मान्यता के लिए कलेक्टर को आवेदन दिया था। जिस पर उन्होंने अनुविभागीय अधिकारी राजस्व, अनुविभागीय अधिकारी पुलिस और जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला बाल विकास विभाग की संयुक्त समिति गठित की थी। जिन्हें सात दिनों में बाल गृह के लिए जगह का निरीक्षण कर रिपोर्ट देना था, किंतु इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
इनका कहना है
बाल गृह संचालन की मान्यता के लिए एक स्वयंसेवी संस्था ने आवेदन दिया था। अधिकारियों की संयुक्त समिति बनाई गईथी।उन्हें बालगृह स्थल का निरीक्षण कर रिपोर्ट देना थी। महिला सशक्तिकरण विभाग में इसकी प्रक्रिया चल रही है। अधिक जानकारी उनके पास ही है।बाल सुधार गृह बड़े जिलों में ही रहते हैं।
ललित कुमार डेहरिया, महिला एवं बाल विकास विभाग अधिकारी, हरदा