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बच्चों ने बनाए कागज और मिट्टी के खिलौने

चार दिवसीय रक्कू नामक शिविर का समापन

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हरदा

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Pradeep Sahu

Oct 08, 2018

Children made paper and clay toys

बच्चों ने बनाए कागज और मिट्टी के खिलौने

हरदा. मप्र जनजाति संग्रहालय भोपाल द्वारा प्रोत्साहन एजुकेशन सोसायटी हरदा के सहयोग से आयोजित रक्कू नामक चार दिवसीय शिविर का रविवार को समापन हुआ। मिडिल स्कूल मैदान पर रोज सुबह साढ़े 11 बजे से शाम साढ़े 4 बजे तक आयोजित शिविर में बच्चों को रचनात्मक गतिविधियों से जोडऩे का प्रयास किया गया। सोसायटी सदस्य एवं कार्यक्रम की संयोजक रेखा चौबे ने बताया कि शिविर में क्रॉफ्ट, मिट्टी के खिलौने, पत्थर की कलाएं, रंगों की पहचान, चित्रकारी,गीत, खेल, कागज के खिलौने आदि का प्रशिक्षण दिया गया। शिविर में प्रतिदिन अलग-अलग शासकीय, अशासकीय स्कूलों एवं छात्रावासों के अधिकांशत: आदिवासी बच्चे शामिल हुए। इनकी उम्र 12 से 16 वर्ष रही। चार दिवसीय शिविर में ८०० बच्चे शामिल हुए। शिविर में हर दिन तीन से चार गतिविधि कॉर्नर बनाए गए। हर कॉर्नर के लिए प्रशिक्षक नियुक्त किए गए थे। इनमें आर्ट एंड क्रॉफ्ट के लिए आरिफ खान व शादाब खान (सतवास), रिंकू दुबे (खिरकिया) ओरिगेमी के लिए कार्तिक शर्मा (भोपाल), मिट्टी के खिलौने के लिए प्रेमलता पंडित (पिपरिया) स्टोन आर्ट के लिए रश्मि बंसल (हरदा), रितेश एवं मधुर तथा वाटर एंड डॉट पेंटिंग के लिए प्रेमलता शर्मा ने प्रशिक्षक रहीं। चौबे के मुताबिक सरकारी स्कूल के आदिवासी बच्चों को गतिविधि में शामिल करने का यह पहला मौका था। बच्चों में बेहद उत्साह देखा गया। उनमें सीखने की बहुत ललक थी। समापन अवसर पर देवास से संदीप नाइक, अजय जैन, महेश यादव एवं हरदा से मनोज जैन, सुनीता जैन, स्वाति जैन, प्रतिमा चौब, कोमलचंद्र अग्रवाल आदि मौजूद रहे।

कन्याओं ने बनाई संजा होली

दूधकच्छ कला/ सोंडलपुर. ग्राम पानतलाई में कन्याओ के द्रारा सुन्दर संजा होली बनाई जा रही हे संजा होली को फूलो से सजा रही हे गीत संजा की आरती कर रही हे व संजा कुंवारी कन्याओं का अनुष्ठानिक व्रत है। कुंवारी कन्याएं इस व्रत का शुभारंभ करती है जो संपूणज़् पितृपक्ष में सोलह दिन तक चलता है। सोलह की संख्या में यूं भी किशोरियों के लिए पूणज़्ता की द्योतक होती है। रोजाना गोधूलि बेला में घर के बाहर दहलीज के ऊपर की दीवार पर या लकड़ी के साफ-स्वच्छ पटिए पर गोबर से पृष्ठभूमि लीपकर तैयार की जाती है। यह पृष्ठभूमि विशिष्ट आकार लिए होती है। चौकोर वगाकज़र आकृति के ऊपरी तथा दाएं-बाएं हिस्से में समरूप छोटे वगज़् रेखा के मध्य में बनाए जाते हैं। सूर्यास्त से पूर्व संजा तैयार कर ली जाती है एवं सूर्यास्त के बाद आरती की तैयारी की जाती है। इन दिनों गोबर, फूल, पत्तियां, पूजन सामग्री प्रसाद इत्यादि के साथ-साथ मंगल गीतों को गाने के लिए सखियां जुटाती मालव बालाओं को सहज ही देखा जा सकता है।